Day 1: आत्मा क्या है? - स्वयं की पहचान
आत्मा शाश्वत, चेतना,आध्यात्मिक प्रकाश, मैं व मौलिक वास्तविकता है। इसलिए 'मैं' शब्द आत्मा के लिए है, शरीर के लिए नहीं। शारीरिक उपस्थिति से परे, आत्मा प्रकाश का एक छोटा सा बिंदु है। यह प्रकाश आत्मा के गुण वा शक्तियो का एक प्रतीक है। आत्मा मन और बुद्धि के संकाय के माध्यम से सोच सकती है और निर्णय ले सकती है। हम इस भौतिक शरीर के माध्यम से जीवन जीते हैं और हमारे साथ होने वाली हर चीज हमारे कर्म (पिछले कार्यों / कर्मों) का परिणाम है।
मानव जीवन अमूल्य है। हम अपने भविष्य को अपने फैसलों और कर्मों द्वारा आकार दे सकते हैं। हमारे पास सही और गलत मे अंतर करने के लिए बुद्धि है। सबसे प्यारे भगवान कहते है, ''स्वयं को आत्मा पहचानो।'' इसके बिना, सबकुछ बेकार है और आत्म-प्राप्ति के साथ, सबकुछ प्राप्त हो गया है।
अपने सारे दिन की बातचीत में मनुष्य प्रतिदिन न जाने कितनी बार ‘मैं’ शब्द का प्रयोग करता है। परन्तु यह एक आश्चर्य की बात है कि प्रतिदिन ‘मैं’ और ‘मेरा’ शब्द का अनेकानेक बार प्रयोग करने पर भी मनुष्य यथार्थ रूप में यह नहीं जानता कि ‘मैं’ कहने वाले सत्ता का स्वरूप क्या है, अर्थात ‘मैं’ शब्द जिस वस्तु का सूचक है, वह क्या है? आज मनुष्य ने साइंस द्वारा बड़ी-बड़ी शक्तिशाली चीजें तो बना डाली है, उसने संसार की अनेक पहेलियों का उत्तर भी जान लिया है और वह अन्य अनेक जटिल समस्याओं का हल ढूंढ निकलने में खूब लगा हुआ है, परन्तु ‘ मैं ’ कहने वाला कौन है, इसके बारे में वह सत्यता को नहीं जानता अर्थात वह स्वयं को नहीं पहचानता।
मे कौन हूँ ? - हिन्दी फिल्म
चेतना, आध्यात्मिक प्रकाश, मौलिक वास्तविकता, स्वयं, शाश्वत आत्मा है। इसलिए 'मैं' शब्द आत्मा के लिए है, शरीर के लिए नहीं । शारीरिक उपस्थिति से परे, आत्मा प्रकाश का एक छोटा सा बिंदु है। यह प्रकाश आत्मा के गुण वा शक्तियो का एक प्रतीक है l आत्मा मन और बुद्धि के संकाय के माध्यम से सोच सकती है और निर्णय ले सकती है l हम इस भौतिक शरीर के माध्यम से जीवन जीते हैं और हमारे साथ होने वाली हर चीज हमारे कर्म (पिछले कार्यों / कर्मों) का परिणाम है।
मानव जीवन अमूल्य है। हम अपने भविष्य को अपने फैसलों और कर्मों द्वारा आकार दे सकते हैं। हमारे पास सही और गलत मे अंतर करने के लिए बुद्धि है। सबसे प्यारे भगवान कहते है, ''स्वयं को आत्मा पहचानो।'' इसके बिना, सबकुछ बेकार है और आत्म-प्राप्ति के साथ, सबकुछ प्राप्त हो गया है।
अपने सारे दिन की बातचीत में मनुष्य प्रतिदिन न जाने कितनी बार ‘ मैं ’ शब्द का प्रयोग करता है | परन्तु यह एक आश्चर्य की बात है कि प्रतिदिन ‘ मैं ’ और ‘ मेरा ’ शब्द का अनेकानेक बार प्रयोग करने पर भी मनुष्य यथार्थ रूप में यह नहीं जानता कि ‘ मैं ’ कहने वाले सत्ता का स्वरूप क्या है, अर्थात ‘ मैं’ शब्द जिस वस्तु का सूचक है, वह क्या है ? आज मनुष्य ने साइंस द्वारा बड़ी-बड़ी शक्तिशाली चीजें तो बना डाली है, उसने संसार की अनेक पहेलियों का उत्तर भी जान लिया है और वह अन्य अनेक जटिल समस्याओं का हल ढूंढ निकलने में खूब लगा हुआ है, परन्तु ‘ मैं ’ कहने वाला कौन है, इसके बारे में वह सत्यता को नहीं जानता अर्थात वह स्वयं को नहीं पहचानता |
देह अभिमान - दुख का मूल कारण
हम एक चैतन्य आत्मा है। जब हम अपने असली स्वरूप को भूल, अपने को शरीर देखते वा समझते है, तो इसे ही देह अभिमान कहा जाता है। वास्तव मे, यह देह का भान ही सभी विकार और दुख का कारण है। देह के भान वाली आत्मा अपने को निर्बल महसूस करेगी, क्योंकि देह की शक्ति सीमित होती है, जैसे देह स्वयं भी सीमित है। तो अब परमात्मा कहते है - 'अपने को आत्मा-अभिमानी बनाओ, यह पुरुषार्थ करो। एक दूसरे को आत्मा देखो।'
आत्माभिमान (आत्मा की पहचान)- आनंदमय जीवन की अखूट कुंजी
आत्म जागृति अर्थात स्वयं की वास्तविकता को जानना l जेब हम आत्मा अभिमानी स्थिति मे थे, तो हम इस दुनिया के मालिक थे। आत्मा प्रकृति की मालिक अर्थात इस देह (शरीर) की मालिक थी। जैसे एक रथी रथ का मालिक होता है। सभी मे दिव्य गुण रहते थे, क्योंकि शांति, आनंद, प्रेम और पवित्रता - यह आत्मा के निजी संस्कार है जो हमे परमपिता परमात्मा से मिले है।
तो जब हम आत्मा अभिमानी बने, तो सहज ही यह सभी गुण हम मे आ जाते है - जिससे हमारा जीवन मूल्यवान बनता है। जो कहा जाता है - मनुष्य जीवन अति मूल्यवान जीवन है - यह अभी के समय के लिए गायन है l