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  • 6 May - BK murli today in Hindi

    Brahma Kumaris murli today in Hindi for 6 May 2018 - BapDada - Madhuban - प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 30-07-83 मधुबन (दीदी मनमोहिनी जी के शरीर त्याग करने पर बापदादा के महावाक्य) आज अटल राज्य अधिकारी, अटल, अचल स्थिति में रहने वाले विजयी बच्चों को देख रहे हैं। अभी से अटल बनने के संस्कारों के आधार पर अटल राज्य की प्रालब्ध पाने के पहले पुरुषार्थ में कल्प-कल्प अटल बने हो। ड्रामा के हर दृष्य को ड्रामा चक्र में संगमयुगी टाप प्वाइंट पर स्थित हो कुछ भी देखेंगे तो स्वत: ही अचल अडोल रहेंगे। टाप प्वाइंट से नीचे आते हैं तब ही हलचल होती है। सभी ब्राह्मण श्रेष्ठ आत्मायें सदा कहाँ रहते हो? चक्र में संगमयुग ऊंचा युग है। चित्र के हिसाब से भी संगमयुग का स्थान ऊंचा है और युगों के हिसाब से छोटा सा युग प्वाइंट ही कहेंगे। तो इसी ऊंची प्वाइंट पर, ऊंचे स्थान पर, ऊंची स्थिति पर, ऊंची नॉलेज में, ऊंचे ते ऊंचे बाप की याद में, ऊंचे ते ऊंची सेवा स्मृति स्वरूप होंगे तो सदा समर्थ होंगे। जहाँ समर्थ है वहाँ व्यर्थ सदा के लिए समाप्त है। हरेक ब्राह्मण पुरुषार्थ ही व्यर्थ को समाप्त करने का कर रहे हो। व्यर्थ का खाता वा व्यर्थ का हिसाब-किताब समाप्त हुआ ना! वा अभी भी कुछ पुराना व्यर्थ का खाता है? जबकि ब्राह्मण जन्म लेते प्रतिज्ञा की - तन-मन-धन सब तेरा तो व्यर्थ संकल्प समाप्त हुआ, क्योंकि मन समर्थ बाप को दिया।दो-तीन दिनों में मन तेरा के बदले मेरा तो नहीं बना दिया। ट्रस्टियों को डायरेक्शन है कि मन से सदा समर्थ सोचना है। तो व्यर्थ की मार्जिन है क्या? व्यर्थ चला? आप कहेंगे कि स्नेह दिखाया। परिवार के स्नेह के धागे में तो सभी बंधे हुए हो, यह तो बहुत अच्छा। अगर स्नेह के मोती गिराये तो वह मोती अमूल्य रहे। लेकिन क्यों, क्या के संकल्प से आंसू गिराये तो वह व्यर्थ के खाते में जमा हुआ। स्नेह के मोती तो आपकी स्नेही दीदी के गले में माला बन चमक रहे हैं। ऐसे सच्चे स्नेह की मालायें तो दीदी के गले में बहुत पड़ी हैं। लेकिन एक परसेन्ट भी हलचल की स्थिति में आये, ऑसू बहाये, वह वहाँ दीदी के पास नहीं पहुँचें, क्यों? वह सदा विजयी, अचल, अडोल आत्मा रही है और अब भी है तो अचल आत्मा के पास हलचल वाले की याद पहुँच नहीं सकती। वह यहाँ की यहाँ ही रह जाती है। मोती बन माला में चमकते नहीं हैं। जैसी स्थिति वाले, जैसी पोजीशन वाली आत्मा वैसी पोजीशन में स्थित रहने वाली आत्माओं की याद आत्मा को पहुँचती है। स्नेह है, यह तो बहुत अच्छी निशानी है। स्नेह है तो अर्पण भी स्नेह करो ना! जहाँ सच्चा श्रेष्ठ स्नेह है वहाँ दु:ख की लहर नहीं क्योंकि दु:खधाम से पार हो गये ना।मीठे-मीठे उल्हनें भी सब पहुँचे। सभी का उल्हना यही रहा कि हमारी मीठी दीदी को क्यों बुलाया। तो बापदादा बोले, जो सबको मीठी लगती वही बाप को मीठी लगेगी ना। अगर आवश्यकता ही मिठास की हो तो और किसकों बुलायें। मीठे ते मीठे को ही बुलायेंगे ना।आप लोग ही सोचते हो और बार-बार पूछते हो कि एडवांस पार्टी की विशेष आत्मायें अब तक गुप्त क्यों? तो प्रत्यक्ष करने चाहते हो ना। समय प्रमाण कुछ एडवांस पार्टी की आत्मायें श्रेष्ठ आत्माओं का आवाह्न कर रही हैं। ऐसे आदि परिवर्तन के विशेष कार्य अर्थ आदिकाल वाली आदि रत्न आत्मायें चाहिए। विशेष योगी आत्मायें चाहिए, जो अपने योगबल का प्रयोग कर सकें। भाग्य विधाता बाप की भागीदार आत्मायें चाहिए। भाग्य विधाता ब्रह्मा को भी कहा जाता है। समझा क्यों बुलाया है। यह सोचते हो यहाँ क्या होगा? कैसे होगा? ब्रह्मा बाप अव्यक्त हुए तो क्या हुआ और कैसे हुआ, देखा ना। दादी को अकेले समझते हो? वह नहीं समझती है, आप लोग समझते हो। ऐसे है ना? (दादी की ओर ईशारा) आपकी डिवाइन युनिटी नहीं है, है ना? तो डिवाइन युनिटी की भुजायें नहीं हैं क्या? डिवाइन युनिटी है ना? किसलिए यह ग्रुप बनाया? सदा एक दो के सहयोगी बनने के लिए। जब चाहो जिसको चाहो सभी सेवा के लिए जी हाजिर हैं। इन दादियों की आपस में बहुत अन्दरूनी प्रीति है, आप लोगों को पता नहीं है इसलिए समझते हो अभी क्या होगा! एक दीदी ने यह साबित कर दिखाया कि हम सभी आदि रत्न एक है। दिखाया ना? ब्रह्मा बाप के बाद साकार रूप में 9 रत्नों की पूज्य आत्मायें सेवा की स्टेज पर प्रत्यक्ष हुई तो 9 रत्न वा आठ की माला सदा एक दो के सहयोगी हैं। कौन हैं आठ की माला? जो ओटे सेवा में वह अर्जुन अर्थात् अष्ट माला है। तो सेवा की स्टेज पर अष्ट रत्न, 9 रत्न अपना पार्ट बजा रहे हैं और पार्ट बजाना ही अपना पार्ट वा अपना नम्बर प्रत्यक्ष करना है। बापदादा ऐसे नम्बर नहीं देंगे लेकिन पार्ट ही प्रत्यक्ष कर रहा है। तो अष्ट रत्न हैं - आपस में सदा के स्नेही और सदा के सहयोगी, इसलिए सदा आदि से सेवा के सहयोगी आत्मायें सदा ही सहयोग का पार्ट बजाती रहेंगी। समझा। और क्या क्वेश्चन है? बताया क्यों नहीं, यह क्वेश्चन है? बतलाते तो दीदी के योगी बन जाते। ड्रामा का विचित्र पार्ट है, विचित्र का चित्र पहले नहीं खींचा जाता है। हलचल का पेपर अचानक होता है। और अभी भी इस विशेष आत्मा का पार्ट, अभी तक जो आत्मायें गई हैं उन्हों से न्यारा और प्यारा है। हर एक क्षेत्र में इस श्रेष्ठ आत्मा का साथ, सहयोग की अनुभूति करते रहेंगे। ब्रह्मा बाप का अपना पार्ट है, उन जैसा पार्ट नहीं हो सकता। लेकिन इस आत्मा की विशेषता सेवा के उमंग-उत्साह दिलाने में, योगी, सहयोगी और प्रयोगी बनाने में सदा रही है, इसलिए इस आत्मा का यह विशेष संस्कार समय प्रति समय आप सबको भी सहयोगी रहने का अनुभव कराता रहेगा। यह भी हर एक आत्मा का अपना-अपना विचित्र पार्ट है। अच्छा।मधुबन में आये स्नेह का स्वरूप दिखाया उसके लिए यह भी विश्व में सेवा के निमित्त पार्ट बजाया। यह आप सबका आना विश्व में स्नेह की लहरें, स्नेह की खुशबू, स्नेह की किरणें फैलाना है, इसलिए भले पधारे। दीदी की तरफ से भी बापदादा सभी को स्नेह की, सेवा के स्वरूप की बधाई दे रहे हैं। दीदी भी देख रही है, टी.वी. पर बैठी है। आप भी वतन में जाओ तब देखो ना। यह भी सर्विस की एक छाप है।आज के संगठन में कमल बच्ची (दीदी जी की लौकिक भाभी) भी याद आई, वह भी याद कर रही है और जिन्होंने भी स्नेही श्रेष्ठ आत्मा के प्रति अपना सहयोग दिया उन अथक बच्चों को चाहे यहाँ बैठे हैं वा नहीं भी बैठे हैं लेकिन सभी बच्चों ने शुभ भावना, शुभ कामना और एक ही लगन से जो अपना स्नेह दिखाया वह बहुत ही श्रेष्ठ रहा। इसके लिए विशेष बापदादा को दीदी ने कहा कि हमारी तरफ से ऐसे स्नेही सेवाधारी परिवार को याद और थैंक्स देना। तो दीदी का काम आज बापदादा कर रहे हैं। आज बापदादा सन्देशी बन सन्देश दे रहे हैं। जो हुआ बहुत ही राज़ों से भरा हुआ ड्रामा हुआ। आप सबको दीदी प्रिय हैं और दीदी को सेवा प्रिय है, इसलिए सेवा ने अपनी तरफ खींच लिया। जो हुआ बहुत ही परिवर्तन के पर्दे को खोलने के लिए अच्छे ते अच्छा हुआ। न भगवती का (डाकटर का) दोष है, न भगवान का दोष है। यह तो ड्रामा का राज़ है। इसमे न भगवती कुछ कर सकता, न भगवान। कभी भी उसके प्रति नहीं सोचना कि इसने ऐसा किया, ऐसा आपरेशन कर लिया, नहीं। उसका स्नेह लास्ट तक भी माँ का ही रहा, इसलिए उसने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं की। यह तो ड्रामा का खेल है। समझा - इसलिए कोई संकल्प नहीं करना।आज तो सिर्फ आज्ञाकारी बन दीदी की तरफ से सन्देशी बन आये हैं। सभी अटल स्थिति में स्थित रहने वाले, अटल राज्य अधिकारी, निश्चय बुद्धि निश्चिन्त, विजयी बच्चों को आज त्रिमूर्ति याद-प्यार दे रहे हैं, और नमस्ते कर रहे हैं। अच्छा।डिवाइन युनिटी यहाँ आ जाए:- (स्टेज पर बापदादा ने सभी दादियों को बुलाया और माला के रूप में बिठा दिया) माला तो बन गई ना। (दादी जी से) अभी यह (जानकी दादी) और यह (चन्द्रमणी दादी) आपके विशेष सहयोगी हैं। इस रथ का (गुल्ज़ार बहन का) तो डबल पार्ट है। बापदादा का पार्ट और यह पार्ट - डबल पार्ट। सहयोगी तो सभी हैं आपके। इसको (निर्मलशान्ता दादी को) सिर्फ थोड़ा सा जब मौसम अच्छी हो तब बुलाना। उड़ता पंछी हैं ना सभी? कोई सेवा का बन्धन नहीं। स्वतंत्र पंछी तो ताली बजायी और उड़े। ऐसे हैं ना। स्वतंत्र पंछी, किसी भी विशेष स्थान और विशेष सेवा का बन्धन नहीं । विश्व की सेवा का बन्धन, बेहद सेवा का बन्धन, इसलिए स्वतंत्र हो। जब भी जहाँ आवश्यकता है वहाँ पहले मैं। हरेक आत्मा का अपना-अपना पार्ट है। डिवाइन युनिटी है पालना वाली और मनोहर पार्टी है सेवा के क्षेत्र में आगे-आगे बढ़ने वाली। तो अभी सेवा के साथ-साथ पालना की विशेष आवश्यकता है। जैसे दीदी को पालना के हिसाब से कई आत्मायें माँ के स्वरूप में देखती रहीं, वैसे तो मात-पिता एक है, लेकिन साकार में निमित्त बन पार्ट बजाने के कारण पालना देने का विशेष पार्ट बजाया। ऐसे ही जो आदि रत्न हैं, उन्हों को पालना देने का, बाप की पालना लेने का अधिकारी बनाने की पालना देना है। लेनी बाप की पालना है लेकिन बाप की पालना लेने के भी पात्र तो बनाना पड़ेगा ना। तो वह पात्र बनाने की सेवा इस आत्मा ने (दीदी जी ने) बहुत अच्छी नम्बरवन की। तो आप भी सभी नम्बरवन हो ना। सेकण्ड माला में तो नहीं हो ना। पहली माला में हो ना। तो पहली माला वाले तो सभी नम्बरवन हैं। अच्छा - पाण्डवों को भी बुलाओ।बापदादा के सामने सभी मुख्य भाई स्टेज पर आये:- पाण्डव भी आदि रत्न हो ना। पाण्डव भी माला में हैं, ऐसे नहीं सिर्फ शक्तियाँ हैं, पाण्डव भी हैं। किस माला में अपने को देखते हो। वह तो हरेक आप भी जानते हो और बाप भी जानते हैं लेकिन पाण्डव भी इसी विशेष याद माला में हैं। कौन हैं? कौन समझते हैं अपने को? बिना पाण्डवों के कोई भी कार्य सिद्ध नहीं हो सकता। जितनी शक्तियों की शक्ति है वैसे पाण्डवों की भी विशाल शक्ति है इसलिए चतुर्भुज रूप दिखाया है। कम्बाइन्ड। दोनों ही कम्बाइन्ड रूप से इस सेवा के कार्य में सफलता पाते हैं। ऐसे नहीं समझना - यही (दादियाँ) अष्ट देव हैं या यही 9 रत्न हैं। लेकिन पाण्डवों में भी हैं। समझा - इतनी जिम्मेवारी का ताज सदा पड़ा रहे। सदा ताज पड़ा है ना। सभी एक दो के सहयोगी बनें। यह सब बाप की भुजायें हैं वा साकार में निमित्त बनी हुई दादी की सहयोगी आत्मायें हैं। "सदा हम एक हैं" - यही नारा सदा ही सफलता का साधन है। संस्कार मिलाने की रास करने वाले, सदा ही हर जन्म में श्रेष्ठ आत्माओं के संगठन में रास करते रहेंगे। यहाँ की रास मिलाना अर्थात् सदा क्या पार्ट बजायेंगे। सदा श्रेष्ठ आत्माओं के फ्रैन्डस बनेंगे, सम्बन्धी बनेंगे। बहुत नजदीक सम्बन्धी लेकिन सम्बन्धी और मित्र के दोनों स्वरूप के साथी। मित्र के मित्र भी, सम्बन्धी के सम्बन्धी भी। तो निमित्त हो। यही दीदी की रूह-रिहान रही। तो सब पाण्डव और शक्तियाँ एक बाप की श्रीमत के गुलदस्ते में गुलदस्ता बनें। दीदी से विशेष स्नेह है ना आप सबका। अच्छा!आज तो ऐसे ही मिलन मनाने आये हैं इसलिए अभी छुट्टी लेते हैं। (दादी जी ने बापदादा के सामने भोग रखा तो बाबा बोले) आज आफीशल मिलने आये हैं इसलिए कुछ स्वीकार नहीं करेंगे। पहले बच्चे स्वीकार करते हैं फिर बाप। फिर तो सदा ही मिलते रहेंगे, खाते रहेंगे, खिलाते रहेंगे लेकिन आज दीदी के सन्देशी बनकर आये हैं, सन्देशी सन्देश देकर चला जाता है। दीदी ने कहा है दादी से हाथ मिलाकर आना।(बापदादा ने दादी जी को हाथ दिया और वतन में उड़ गये।) वरदान:-स्वराज्य अधिकारी बन कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाले अकालतख्त सो दिलतख्तनशीन भव l मैं अकाल तख्तनशीन आत्मा हूँ अर्थात् स्वराज्य अधिकारी राजा हूँ। जैसे राजा जब तख्त पर बैठता है तो सब कर्मचारी आर्डर प्रमाण चलते हैं। ऐसे तख्तनशीन बनने से यह कर्मेन्द्रियां स्वत: आर्डर पर चलती हैं। जो अकालतख्त नशीन रहते हैं उनके लिए बाप का दिलतख्त है ही क्योंकि आत्मा समझने से बाप ही याद आता है, फिर न देह है, न देह के संबंध हैं, न पदार्थ हैं, एक बाप ही संसार है इसलिए अकालतख्त नशीन बाप के दिल तख्तनशीन स्वत: बनते हैं। स्लोगन:-निर्णय करने, परखने और ग्रहण करने की शक्ति को धारण करना ही होली-हंस बनना है। #brahmakumaris #Hindi

  • 6 May 2018 - BK Murli today in English

    Brahma Kumaris murli today in English - 6 may 2018 - 06/05/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti - Revision - 30/07/83 Where there is true love, there cannot be any wave of sorrow (BapDada's elevated versions on Didi Manmohiniji leaving the body.) Today, Baba is seeing the children who have claimed a right to the unshakeable kingdom, the victorious children who stay in an unshakeable stage. On the basis of having the sanskars of being unshakeable now, you have been unshakeable every cycle in making the first effort of attaining the reward of the unshakeable kingdom. If you watch every scene of the drama while remaining stable at the confluence-aged top point of the drama cycle, you will automatically remain unshakeable and immovable. It is only when you come down from the top point that there is upheaval. Where do all of you Brahmins, you elevated souls, live? In the cycle, the confluence age is the highest age. In terms of the picture, the confluence age is shown at the highest point and, in terms of the ages, the smallest age would be said to be a point. If you remain on that highest point, in the highest place, in an elevated stage, with this elevated knowledge, in remembrance of the highest-on-high Father, doing the highest-on-high service and being embodiments of remembrance, you will remain constantly powerful. Where there is power, all waste is ended for all time. Every Brahmin is making effort to end waste. The account of waste and the karmic accounts of waste have ended, have they not? Or are there still some old accounts of waste? When you took your Brahmin birth, you promised “The body, mind and wealth all belong to You.” Therefore, all waste thoughts ended because you gave your mind to the Almighty Father. In the last two or three days, you haven't made your mind belong to yourself instead of making it belong to Baba, have you? The trustees have been given the direction to have powerful thoughts constantly in their minds. So, is there any margin for anything wasteful? Did you have waste thoughts? You would say that you showed your love. All of you are tied in the thread of the family's love and that is very good. If you shed pearls of love, those pearls became invaluable, but if you shed tears of wasteful thoughts of “Why?” or “What?” that is accumulated in the account of waste. The pearls of love have become a sparkling garland around your loving Didiji's neck. There are many such garlands of such true love around Didi's neck. However, if you had a stage of upheaval - of even one percent - and shed tears, they didn't reach Didi. Why? She was constantly a victorious, unshakeable, immovable soul and is that even now, and so the remembrance of those who have upheaval cannot reach those who are unshakeable. That just remains here. These cannot become pearls and sparkle in the garland. Whatever the stage and position of a soul are, the remembrance of other souls in the same stage and position reaches that soul. You have love and this is a very good sign. If you love her, then surrender your love. Where there is true elevated love, there cannot be any waves of sorrow, because you have gone beyond the land of sorrow. All the sweet complaints also reached here. Everyone's complaint was: Why was our sweet Didi called? BapDada said: The one whom everyone finds to be so sweet, the Father, would also find her sweet. If there is a need for sweetness, who would be called? Those who are the sweetest of all. All of you think and also repeatedly question why the special souls of the advance party are still incognito. You want them to be revealed, do you not? According to the time, some of the souls of the advance party are invoking the elevated souls. Souls who are the original jewels are required for the special task of the original transformation. Special yogi souls who are able to experiment with their power of yoga are required. Souls who are partners with the Bestower of Fortune are needed. Even Brahma is called the bestower of fortune. Do you understand why she has been called? Do you think about what is going to happen here and how it will happen? When Father Brahma became avyakt, you saw what happened and how it happened. Do you think that Dadi is alone now? She doesn't think that. All of you think that. It is like this, is it not? (Signalling towards Dadiji.) You have your divine unity (one of the groups of the sakar days), do you not? So, do you not have the arms of those who belong to the divine unity? There is the divine unity, is there not? Why was that group formed? In order for you to co-operate with one another. Whenever you want and whoever you call, everyone is ready to serve. The Dadis have a lot of love inside for one another. None of you know about it and so you ask: What will happen now? Didi alone proved that all of you original jewels are one. She showed this, did she not? After Father Brahma, in the corporeal form, the nine worship-worthy jewels revealed themselves on the field of service. So, the nine jewels or the rosary of eight are constantly co-operating with one another. Who are in the rosary of eight? Those who take responsibility in service are Arjuna, that is, part of the rosary of eight. So the eight special jewels or the nine jewels are playing their parts on the stage of service, and to play your part is to reveal your part and your number. BapDada would not give a number like that, but it is your part that reveals your number. So the eight jewels are constantly loving and co-operative with one another. This is why the souls who have been co-operating in service from the beginning will always continue to play their parts of co-operating. Do you understand? What other questions do you have? Do you question why you were not told before? If Baba had told you this, you would have become yogis of Didi. The part of the drama is unique (vichitra – without an image) and a picture cannot be taken of something that is without an image. A test paper of upheaval comes suddenly and, even now, this special soul has a part; her part is lovely and unique to the souls who have already gone. You will continue to experience the company and co-operation of this elevated soul in every field. Father Brahma has his own part and her part cannot be like his. However, the speciality of this soul has always been to give zeal and enthusiasm to service and to make others yogi and co-operative and for them to experiment. This is why this special sanskar of this soul will, from time to time, give you all the experience of remaining co-operative. Every soul has his own unique part. Achcha. You came to Madhuban, showed the form of your love and played your parts for the sake of service in the world. You all have come here to spread waves of love, the fragrance of love and rays of love. Therefore, welcome! BapDada is congratulating everyone on behalf of Didiji for their love and their service. Didi is also watching this; she is sitting in front of the TV. You can also see it if you go to the subtle region. This is also a stamp of service. Baba also remembered the daughter Kamal (Didi's sister-in-law) in this gathering. She is also remembering you and all of those who gave their co-operation to the loving and elevated souls. All the tireless children, whether they are sitting here or not, all of you showed your love with good wishes, pure feelings for just the One. That too has been very elevated. For that, Didi especially told BapDada: Give special remembrance and thanks on my behalf to such a loving and serviceable family. So, today, BapDada is carrying out Didi's wish. Today, BapDada is giving a message as the Messenger. Whatever happened in the drama is filled with a lot of significance. All of you love Didi and Didi loved service. This is why service pulled her to itself. Whatever happened was the best of all for opening many curtains of transformation. Neither was it Bhagwati's (doctor) fault, nor was it God's fault. This is a secret in the drama. In this, neither Bhagwati nor Bhagawan (God) could do anything. Never think about a doctor that they did this or performed that operation. Never think that. The love she gave till the end was that of a mother. This is why she didn't fall short of doing anything from her side. This is the performance of the drama. Do you understand? Therefore, don't have any thoughts. Today, I am just being obedient and have come as the Messenger to give a message on behalf of Didi. To all those who remain stable in an unshakeable stage, to those who have claimed a right to the unshakeable kingdom, to those whose intellects have faith and who remain carefree, Trimurti love remembrance and namaste to the victorious children. Achcha. BapDada called all the Dadis onto the stage and made them sit in a semi-circle: The Divine Unity has come here. The rosary is created, is it not? (Speaking to Dadiji) Now, this one (Dadi Janki) and this one (Dadi Chandermani) are your especially co-operative souls. This chariot (Gulzar Dadi) has a double part: BapDada's part and this part is a double part. Everyone co-operates with you. Call this one (Dadi Nirmal Shanta - Brahma Baba's physical daughter) when the weather is fine. All of you are flying birds, are you not? You don't have any bondage of service. Free birds fly as soon as you clap. It is like that, is it not? You are free birds, you are not bound to a special place or special service. There is the bond of world service and unlimited service. This is why you are free. Wherever and whenever there is a need, let it be, "I first". Each of you soul has your own part. The group of Divine Unity is the group that gives sustenance and the Manohar Party is a group that moves forward on the field of service. Now, together with service, there is a special need for sustenance. Just as many souls saw Didi as a mother in terms of sustenance, in the same way, the Mother and Father are one. However, because of being an instrument to play this part in the corporeal form, she played a special part of giving sustenance. In the same way, the original jewels have to give sustenance – you have to give sustenance to enable souls to claim a right to receive the Father's sustenance. It is the Father's sustenance that you have to receive, but you also have to be made worthy of receiving it. So, this soul (Didiji) did very good, number one service of making souls worthy of that. So, all of you are number one, are you not? You are not in the second rosary, are you? You are in the first rosary, are you not? So, all of you who are in the first rosary are number one, are you not? Achcha. Call the Pandavas! All the main senior brothers came onto the stage in front of BapDada: You Pandavas too are the original jewels, are you not? Pandavas are also in the rosary; it isn't just Shaktis in the rosary, there are Pandavas too. In which rosary do you see yourselves? All of you know this and the Father also knows this, but you Pandavas are also especially in this rosary of remembrance, are you not? Who are you? Who understands the self? No task can be accomplished without the Pandavas. To the extent that the Shaktis have power, the Pandavas too have unlimited power for this is why the four-armed image is shown. The combined form: both of you, in the combined form, are achieving success in the task of service. Don't think that just these Dadis are the eight special deities, or that they are the nine jewels, for the Pandavas are among them. Do you understand? Constantly have the crown of this much responsibility. You always have the crown, do you not? All of you co-operate with one another. All of you are the Father's arms and Dadi's co-operative souls and instruments in the corporeal form. The one slogan "We are all one" is the means of constant success. You are those who perform the dance of harmonising sanskars. You will constantly continue to perform this dance in the gathering of elevated souls in every birth. When you perform the dance here, what part does it mean you will constantly play? You will always be friends with elevated souls. You will be their relatives. You will be very close relatives and also be companions as friends and relatives. You will all be friends and also be relatives. So you are the instruments. This was the heart-to-heart conversation with Didi. Therefore, all of the Shaktis and Pandavas became the flowers in the bouquet of shrimat. All of you have special love for Didi, do you not? Achcha. Today, I have come to celebrate a meeting just like that. So, I am now taking leave. (Dadiji placed bhog in front of BapDada and Baba said): Today, I have come to meet you all officially and so Baba won't accept bhog. First, let the children accept it and then the Father. We will continue to meet again and eat and feed one another, but today, I have come as Didi's Messenger. A messenger departs after giving the message. Didi had asked Me to shake hands with Dadi. (BapDada shook hands with Dadiji and then flew to the subtle region. Blessing: May you be seated on your immortal throne and the heart-throne and use your physical senses according to your orders as the master of yourself. “I am a soul seated on the immortal throne, that is, I am a self-sovereign king.” When a king is seated on his throne, all his workers do everything according to his orders. By being seated on the throne, your physical senses automatically do everything according to your orders. Those who are seated on their immortal thrones always have the Father’s heart-throne, because, by considering yourself to be a soul, you remember the Father. There is then neither the body, nor are there bodily relations or possessions: the one Father is your world. Therefore, being seated on the immortal throne, you are automatically seated on the Father’s heart-throne. Slogan: To imbibe the powers to discern, decide and adopt is to be a holy swan. #brahmakumari #english

  • 5 May 2018 - BK murli today in Hindi

    5 May - Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban - 'प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - स्वयं की सम्भाल करने के लिए रोज़ दो बार ज्ञान स्नान करो। माया तुमसे भूलें कराती, बाप तुमको अभुल बनाते l "प्रश्नः-किस निश्चय वा पुरुषार्थ के आधार पर बाप की पूरी मदद मिलती है? उत्तर:-पहले पक्का निश्चय हो कि मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। साथ-साथ पूरी बलि चढ़े अर्थात् ट्रस्टी बन प्यार से सेवा करे। तो ऐसे बच्चे को बाप की पूरी पूरी मदद मिलती है। गीत:-हमें उन राहों पर चलना है... ओम् शान्ति।गीत में यह कौन कहते हैं? परमपिता परम आत्मा, ज्ञान का सागर कहते हैं - बच्चे, हम तुम्हें अभी जिस राह पर चला रहे हैं वा माया पर जीत पाने की जो मत अथवा राय दे रहे हैं, उसमें यह तो होगा ही - कोई गिरेंगे तो कोई उठते वा सम्भलते रहेंगे। सुरजीत और मूर्छित होते रहेंगे। सुरजीत होने लिए यह संजीवनी बूटी है। परमपिता परमात्मा की है ज्ञान बूटी। रामायण में भी कहानी है ना कि राम और रावण की युद्ध हुई, लक्ष्मण मूर्छित हो गया, हनूमान संजीवनी बूटी ले आया। अब वास्तव में रामायण तो पीछे बैठ बनाया है। ऐसी कोई बातें हैं नहीं, न कोई मनुष्यों की बनाई हुई गीता भगवान ने बैठ गाई है। बाप तो ज्ञान का सागर है। किसका ज्ञान? सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान देते हैं। जिसका ही मनुष्यों ने गीता शास्त्र बनाया है, उस पर नाम रख दिया है श्रीकृष्ण का। जैसे बाप की जीवन कहानी में अगर कोई बच्चे का नाम लिख दे तो क्या होगा! वैसे ही शिवबाबा ने जन्म दिया गीता को, उस गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है इसलिए अनर्थ हो गया है। गीता खण्डन होने से सभी मनुष्य आत्माओं का बुद्धियोग परमात्मा से टूट गया है। तो मनुष्य पवित्र कैसे बनें! इस योग अग्नि से ही हम पवित्र बनते हैं, न कि गंगाजल से। बाबा है ज्ञान का सागर। ज्ञान अमृत से मनुष्य को देवता बनाते हैं। बाकी अमृत पानी को नहीं कहा जाता है। यह है पढ़ाई। पढ़ाई माना नॉलेज। यह शास्त्र तो भारतवासियों ने द्वापर से बनाये हैं। मनुष्य कहते हैं शास्त्र अनादि हैं। हम कहते हैं ड्रामा ही अनादि है। परन्तु ऐसे नहीं कि यह कोई शास्त्र सतयुग से शुरू हुए हैं। यह सब अनादि है माना ड्रामा में नूँध है। द्वापर से लेकर मनुष्य लिखते ही आये हैं। अब बेहद के बाप ने अपनी सारी जीवन कहानी बताई है। कहते हैं सतयुग त्रेता में मेरा पार्ट नहीं है। सृष्टि ड्रामा अनुसार चलती रहती है। मेरा भी ड्रामा के अन्दर पार्ट नूँधा हुआ है। मैं ड्रामा के बंधन में बाँधा हुआ हूँ। सतयुग-त्रेता में मेरा पार्ट नहीं है। जैसे क्राइस्ट, बुद्ध आदि का सतयुग-त्रेता में पार्ट नहीं है। सब आत्मायें मुक्तिधाम में रहती हैं। ऐसे नहीं, देवी-देवताओं की भी सब आत्मायें उस समय आ जाती हैं। नहीं, वे भी धीरे-धीरे नम्बरवार आती हैं। फिर सतोप्रधान से बदल सतो, रजो, तमो स्टेजेस में आती हैं। फिर सूर्यवंशी ही चन्द्रंशी बनते हैं फिर वृद्धि होती जाती है। यह पूरा राज़ समझना है।तुम जानते हो जो अधूरा पवित्र बनेंगे उन्हें राज्य भी अधूरा मिलेगा। जो ज्ञान-योग में तीखे जायेंगे वे ही पहले राजे बनेंगे। यह राजधानी बन रही है। पूरा पुरुषार्थ करना है। शिवबाबा समझाते हैं - तुमको हीरे समान बनना है। मैं ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर हूँ। तुमको फिर मास्टर ज्ञान सागर बनना पड़े। शान्ति का अर्थ एक दो से लड़ना नहीं है। सन्यासी समझते हैं प्राणायाम चढ़ा दें, यहाँ ऐसे नहीं है। बाबा रस्सी खींच लेते हैं। छोटी बच्चियों की भी बाबा रस्सी खींच लेते हैं तो ध्यान में चली जाती हैं। इसको कहा जाता है ईश्वरीय वरदान। भक्ति में भी साक्षात्कार होता है। यह दिव्य दृष्टि देना बाप के सिवाए और किसकी ताकत नहीं है। अब तो बाप सम्मुख है, कहते हैं भक्तों के पास भगवान को आना पड़ता है - माया की जंजीरों से लिबरेट करने। बाबा कहते हैं - मैं जानता हूँ, यह माया की युद्ध है, कभी चढ़ेंगे, कभी गिरेंगे। योग टूटता है तो मन्सा, वाचा, कर्मणा में भी भूलें होती हैं। परीक्षा सब पर आती है। कुछ भी माया का वार न हो, फिर तो शरीर ही छूट जाए। सम्पूर्ण कोई बना नहीं है। यह घुड़दौड़ है। राजस्व अश्वमेध यज्ञ कहते हैं। राजाई के लिए अश्व यानी रथ को शिवबाबा पर बलि चढ़ाना है अर्थात् बच्चा बन पूरी सेवा करनी है। ट्रस्टी बन फिर पुरुषार्थ करना है तो मदद भी मिलेगी। पक्का निश्चय चाहिए - मेरा तो एक शिव-बाबा दूसरा न कोई। मरना तो सबको है।परमपिता परमात्मा जो कि बाप-टीचर-सतगुरू है, उनसे अपना वर्सा लेने का हर एक को हक है। सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। सबको इकट्ठा मरना है। जब आफ्तें आती हैं तो सब इकट्ठे मरते हैं ना। थोड़े बहुत गोले गिरेंगे तो मकान टूट पड़ेंगे। तो अभी सबका मौत है, इसलिए बच्चों को भी कमाई कराओ। यह है सच्ची कमाई। जो करेगा सो पायेगा। ऐसे नहीं, बाप कमाई करेगा तो बच्चों को मिल जायेगी। नहीं। बच्चों को भी यह सच्ची कमाई करानी है। यह हैं समझने की बातें। इसमें परहेज बहुत चाहिए। हम देवता बन रहे हैं तो कोई अशुद्ध वस्तु खा नहीं सकते हैं। कोई समझते हैं मछली खाने में पाप नहीं है, ब्राह्मणों को भी खिलाते हैं। सब रस्म-रिवाज ही उल्टा हो गया है। बाप कहते हैं बिल्कुल पवित्र बनना है। पहले ज्ञान चिता पर बैठना है। मन्सा में विकल्प कितने भी आयें परन्तु कर्मेन्द्रियों से कोई भी विकर्म नहीं करना। जब तुम बाबा के बनते हो तो माया की युद्ध शुरू हो जाती है। प्रजा बनने वालों से माया इतना टक्कर नहीं खाती है। माया-जीत जगत-जीत बनना है। प्रजा जगत-जीत नहीं बनती है। जगत-जीत माना सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी बनना। मेहनत कर 3-4 वर्ष पवित्र रह फिर थप्पड़ खा लेते हैं। फिर चिट्ठी लिखते हैं - बाबा म़ाफ करना। यहाँ कायदे भी हैं। बच्चा बना तो सारे जीवन के पाप भी लिखने पड़े - धर्मराज शिवबाबा, इस जन्म में मैंने यह-यह पाप किये हैं तो आधा माफ हो जाता है। यह भी लॉ है। आगे जज के आगे सच बोलते थे तो सजा कम हो जाती थी। भूल करके लिखे नहीं तो 100 गुणा दण्ड हो जाता। बच्चों के लिए बहुत परहेज है। बाहर वालों के लिए इतनी नहीं है इसलिए डरते हैं। बेहद का बाप अथवा साजन जो सौभाग्यशाली बनाते हैं उनके बनते नहीं। भूलें तो होती हैं परन्तु आखरीन अभुल जरूर बनना है। यहाँ बहुत परहेज रखनी है। समर्थ का हाथ पकड़ा है तो बाप सम्भाल भी करेंगे। सौतेले बच्चों की थोड़े-ही करेंगे। सगे बहुत थोड़े हैं तो भी कितने बच्चे हैं जो बाबा को चिट्ठी लिखते हैं। कितनी पोस्ट रोज़ आती है। बाप का तो एक हाथ है, हरेक लिखे मुझे अलग पत्र लिखो... अभी तो बहुत वृद्धि होगी। इतनी बैग पोस्ट की और कोई की नहीं निकलती होगी। यह है ही गुप्त गवर्मेन्ट। अन्डरग्राउण्ड है। रिलीजोपोलिटीकल है। कोई हथियार आदि नहीं है। मंजिल ऊंची है। चढ़े तो चाखे... गिरे तो राजाई गँवाए प्रजा बन जाते हैं। समझा।तुम बच्चे जानते हो भारत जो हीरे मिसल था वह कौड़ी मिसल बन गया है। अभी तो तुम कहेंगे हम नर्क-वासी से स्वर्गवासी बनने का पुरुषार्थ करते हैं। हम सदा सौभाग्यशाली बनने आये हैं। बाबा पतित से पावन बना रहे हैं। फिर यह रावण राज्य नीचे चला जायेगा। यह चक्र फिरता है ना। रावण राज्य नीचे तो राम राज्य ऊपर आ जायेगा। अपने को बहुत सम्भालना भी है। सम्भाल वही सकेंगे जो रोज़ ज्ञान-स्नान करेंगे। रॉयल मनुष्य दिन में दो बारी स्नान करते हैं। यह भी अमृतवेले और नुमाशाम दो बारी ज्ञान-स्नान जरूर करना चाहिए। एक बारी एक घण्टा पढ़कर फिर दूसरा बारी मुरली को रिवाइज जरूर करना है। धारणा करनी और करानी है। बच्चों को, स्त्री को भी सच्ची कमाई करानी है। 21 जन्मों का राज्य-भाग्य लेना कोई मासी का घर नहीं है। समझा जाता है कौन-कौन तीखा पुरुषार्थ करते हैं। बीमार हो तो डोली में बिठाकर ले आना चाहिए। ज्ञान-अमृत मुख में हो तब प्राण तन से निकलें। अन्धा-बहेरा कोई भी कमाई कर सकता है। ज्ञान तो बड़ा सहज है। बाप से वर्सा लेना है। एक ही बार बाप सम्मुख आकर बादशाही देते हैं। बच्चे सुखी हुए तो बाप वानप्रस्थ में चले जाते हैं। बेहद का बाप सबको सुखी कर खुद परमधाम में जाए बैठ जाते हैं। फिर आत्मायें नम्बरवार वहाँ से आती रहती हैं। कोई को भेजते नहीं हैं। यह कहने में आता है लेकिन यह आटोमेटिकली ड्रामा चलता रहता है। अपने टाइम पर धर्म स्थापन करने आना ही है। तुम जानते हो हम ब्रह्मा वंशी ब्राह्मण हैं। शिव वंशी तो सारी दुनिया है। फिर जिस्मानी बाप हो गया ब्रह्मा। ब्रह्मा के बच्चे हम भाई-बहन ठहरे। अभी हम हैं ईश्वरीय धर्म के। सतयुग में होंगे देवी-देवता धर्म के। अब ईश्वर के पास जन्म लिया है। अभी हम उनके बन गये हैं। मनुष्य रचता को न जानने कारण, रचना के आदि-मध्य-अन्त को भी नहीं जानते हैं। उनको कहा जाता है नास्तिक, कौड़ी तुल्य। बरोबर अभी हम आस्तिक बने हैं तो हम हीरे तुल्य बन जाते हैं। रचता और रचना को जानने से हमको राजाई मिलती है। बाबा हमको वर्थ पाउण्ड बनाते हैं तो बनना चाहिए ना। सचखण्ड का बादशाह, सचखण्ड का मालिक बना रहा है। चमड़ापोश कहा जाता है। एक खुदा दोस्त की कहानी भी है। तो अब वह खुदा हमारा दोस्त है। खुदा दोस्त, अल्लाह अवलदीन और हातमताई का खेल सारा अभी का है। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) सच्ची कमाई करनी और सबको करानी है। परीक्षायें वा तूफान आते भी कर्मेन्द्रियों से कोई भूल नहीं करनी है। माया-जीत जगत-जीत बनना है।2) देवता बनने के लिए खान-पान की पूरी परहेज रखनी है। कोई भी अशुद्ध वस्तु नहीं खानी है। दो बारी ज्ञान स्नान जरूर करना है। वरदान:-ब्राह्मण जीवन की विशेषता को जानकर उसे कार्य में लगाने वाले सर्व विशेषता सम्पन्न भव l ड्रामा के नियम प्रमाण संगमयुग पर हर एक ब्राह्मण आत्मा को कोई न कोई विशेषता मिली हुई है। चाहे माला का लास्ट दाना हो, उसमें भी कोई न कोई विशेषता है, तो ब्राह्मण जन्म के भाग्य की विशेषता को पहचानो और उसे कार्य में लगाओ। एक विशेषता कार्य में लगाई तो और भी विशेषतायें स्वत: आती जायेंगी, एक के आगे बिन्दी लगते-लगते सर्व विशेषताओं में सम्पन्न बन जायेंगे। स्लोगन:-मनमनाभव के मंत्र की सदा स्मृति रहे तो मन का भटकना बन्द हो जायेगा। #brahmakumaris #Hindi

  • 5 May 2018 - BK murli today in English

    5 May - Brahma Kumaris murli today in English for 5 05 2018 - BapDada - Madhuban - 'Sweet children, in order to take care of yourself, bathe in knowledge twice a day. Maya makes you make mistakes and the Father frees you from making mistakes.' Q- On the basis of which faith and effort do you receive full help from the Father? A- First of all, there has to be the firm faith: “Mine is one Shiv Baba alone and none other.” Together with this, you have to surrender yourself completely to the Father, that is, you have to become a trustee and serve with love. Such children receive full help from the Father. Song: We follow the path on which we may fall and have to remain careful. Om Shanti Who says this in the song? The Supreme Father, the Supreme Soul, the Ocean of Knowledge, says: Children, on the path that I am now making you follow, and in the directions and advice that I now give you to conquer Maya, this will happen: some will fall and some will get up and some will remain careful. They will continue to remain conscious or unconscious. This is the life-giving herb to remain conscious. The life-giving herb of the Supreme Father, the Supreme Soul, is knowledge. There is the story in the Ramayana of how there was a battle between Rama and Ravan and how Lakshman became unconscious and then how Hanuman brought the life-giving herb to make him conscious again. In fact, the Ramayana was written later. There were no such things; nor did God sit and speak the Gita that human beings have written. The Father is the Ocean of Knowledge; knowledge of what? He gives you the knowledge of the beginning, the middle and the end of the world. Human beings then wrote the Gita from this and put Krishna’s name into it. What would happen if someone were to print the name of the child in the biography of his father? In the same way, Shiv Baba gave birth to the Gita, but they put Krishna’s name in it, and this is why it has become meaningless. Because the Gita has been falsified, the intellect’s yoga of every human being has been broken away from God. So, how can human beings become pure? We become pure with this fire of yoga, not with the water of the Ganges. Baba is the Ocean of Knowledge. He changes human beings into deities with the nectar of knowledge. However, water is not called nectar. This is a study. Study means knowledge. The people of Bharat began writing the scriptures in the copper age. They say that the scriptures are eternal and we say that the drama is eternal. It isn't that the scriptures began in the golden age. When they say that all of them are eternal, they actually mean that they are fixed in the drama. People have been writing them since the copper age. The unlimited Father has now told you His whole biography. He says: I play no part in the golden and silver ages. The world continues according to the drama. My part is also fixed in the drama. I am bound by the bond of the drama. I have no part in the golden and silver ages, just as Christ and Buddha have no part in the golden and silver ages. All of those souls reside in the land of liberation. It isn't that all the souls of the deity religion also come down at that time. No, they too come down gradually, numberwise. Then they change from satopradhan and go through the stages of sato, rajo and tamo and those of the sun dynasty become part of the moon dynasty and expansion continues to take place. The significance of this has to be understood fully. You know that those who become half pure will receive an incomplete kingdom. Those who go ahead in knowledge and yoga are the ones who will become kings first. A kingdom is being established. Full effort has to be made. Shiv Baba explains: You have to become like a diamond. I am the Ocean of Knowledge, the Ocean of Peace. You have to become master oceans of knowledge. Peace doesn’t just mean the absence of fighting with one another. Sannyasis believe that they have to do breathing exercises etc. It isn't like that here. Here, Baba pulls the strings (of the yoga of your intellect). Baba pulls the strings of even the young daughters and so they go into trance. This is called a Godly blessing. There are visions on the path of devotion too. No one except the Father has the power to grant divine visions. The Father is now personally in front of you. He says: God has to come to the devotees to liberate them from the chains of Maya. Baba says: I know that there is a war with Maya. Sometimes you will ascend and sometimes you will fall. When your yoga breaks, you make mistakes with your thoughts, words or deeds. Everyone faces tests. If you were not to have any attacks from Maya, you would leave your body. No one has yet become perfect. This is a horse race. It is called the sacrificial fire in which the horse is sacrificed. In order to attain the kingdom, you have to sacrifice the horse, that is, the chariot, to Shiv Baba. That is, you have to become a child of His and serve fully. Become a trustee and make effort and you will receive help. You need to have the firm faith: “Mine is one Shiv Baba and none other.” Everyone has to die. Each one of you has a right to claim your inheritance from the Supreme Father, the Supreme Soul, who is the Father, Teacher and Satguru. It is everyone's stage of retirement. Everyone has to die together. When calamities come, so many people die together. When a few bombs are dropped, all the buildings are destroyed. So, there is now to be death for everyone. This is why you have to make children earn an income. This is the true income. Those who do something will receive the return of it. It isn't that when the father earns an income, the children would receive from that. No; children too have to be made to earn this true income. This is something to be understood. A lot of precautions have to be taken for this. We are becoming deities and so we cannot eat anything impure. Some think that it isn't wrong to eat fish for they even feed brahmin priests that. All the customs and systems have become wrong. The Father says: You have to become completely pure. First of all, sit on the pyre of knowledge. No matter how many sinful thoughts your mind has, you mustn't put them into practice through your physical organs. When you belong to Baba, your war with Maya begins. Maya doesn't clash so much with those who are going to become subjects. You have to become conquerors of Maya and thereby conquerors of the world. Subjects don't become conquerors of the world. To become a conqueror of the world means to become part of the sun and moon dynasties. Some make effort, remain pure for three to four years and are then slapped. Then they write to Baba: Baba, forgive Me! There are rules and regulations here. When you become child of Baba, you have to write about all the sins you have committed in your life. “Dharamraj, Shiv Baba, I have committed these sins in this birth.” Then, half of them will be forgiven. This is the law. Earlier, when someone confessed in front of a judge, his punishment would be reduced. If you make a mistake and then don't write to Baba about it, there will be one hundred-fold punishment. There are many precautions that you children have to observe. There aren't as many for people outside. This is why they are afraid. They then do not belong to the unlimited Father and the Bridegroom who makes everyone one hundred times fortunate. Of course, mistakes are made but, eventually, you definitely have to become free from making mistakes. Many precautions have to be observed here. When you hold on to the hand of the Powerful One, that Father will also look after you. He would not look after the stepchildren as much. There are very few real children, but, nevertheless, there are many children who write to Baba. So much post comes to Baba every day. Baba has only one hand and if each child were to ask Baba to send him or her a personal letter… There is to be a lot of expansion now. No one else would have such a big bag of post. This is the incognito Government. It is underground. It is religio-political. There are no weapons etc. The destination is high. Those who climb taste the sweetness of heaven, and those who fall lose their kingdom and become subjects. Do you understand? You children know that the Bharat which was like a diamond has become like a shell. You would say that you are now making effort to change from residents of hell into residents of heaven. We have come here to become one hundred times fortunate for all time. Baba is making us pure from impure. Then this kingdom of Ravan will go down below. This cycle continues to turn. When the kingdom of Ravan goes down, the kingdom of Rama comes up. You have to take very good care of yourselves. Only those who bathe in knowledge every day will be able to take care of themselves. Royal people bathe twice a day. Here, too, you definitely have to bathe in knowledge twice: at amrit vela and in the evening at dusk. The first time, study for an hour and then the second time, definitely revise the murli. You have to imbibe knowledge and inspire others to imbibe it. Enable your wife and children to earn the true income. To claim the fortune of a kingdom for 21 births is not like going to your aunty's home! It can be understood which ones are making intense effort. If someone is ill, you can carry that person on a ‘doli’ (carriage in which the bride is carried on her wedding day) and bring him here. Let that person leave the body with the nectar of knowledge on his lips. A deaf or blind person can also earn this income. Knowledge is very easy. You have to claim your inheritance from the Father. Only once does the Father personally come and give you the sovereignty. When children become happy, their father goes away into retirement. The unlimited Father makes everyone happy and then He goes and sits in the supreme abode. Souls then continue to come down from there, numberwise. It isn't that He sends anyone down; that is just said because this drama continues automatically. They have to come to establish their religions at their own time. You know that you Brahmins are the clan of Brahma. The whole world is part of Shiva's clan. Then the corporeal father is Brahma. We children of Brahma are brothers and sisters. We now belong to the Godly religion and in the golden age we will belong to the deity religion. We have now taken birth to God. We now belong to Him. Because of not knowing the Creator, people don't even know the beginning, the middle or the end of creation. They are called atheists, worth shells. We have now truly become theists and so we become worth diamonds. By knowing the Creator and creation, we receive the kingdom. Baba is making us worth a pound and so we should become that, should we not? He is making us into emperors of the land of truth, the masters of the land of truth. It said that a king went around in disguise to see the condition of his kingdom. There is also the story of God, the Friend. That God is now our Friend. The stories of God, the Friend, Allah-Avaldin and Hatamtai (bead in the mouth) are all of this time. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Earn a true income and inspire others to do the same. Even though tests and storms come, don't make any mistakes through your physical organs. Become a conqueror of Maya and a conqueror of the world. 2. In order to become deities, maintain full precautions with your food and drink. Don't eat any impure food. Definitely bathe in knowledge twice a day. Blessing: May you be full of specialities by knowing the specialities of Brahmin life and using them. At the confluence age, according to the discipline of the drama, each Brahmin has received one or another speciality. Even if it is the last bead of the rosary, that one has one or another speciality. So, recognise the speciality of the fortune of a Brahmin birth and use it practically. When you use one speciality, other specialities automatically develop. Then, by adding a zero to one, you will become full of all specialities. Slogan: Always have the awareness of the mantra of “Manmanabhav” and your mind will stop wandering. #brahmakumari #english

  • BK murli today in English 3 May 2018

    Brahma Kumaris murli today in English for 3 05 2018 - BapDada - Madhuban - 03/05/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, elevated directions are of the one Father. Constantly continue to follow them. Become real children and claim your full inheritance from the Father. Question: Due to not having faith in which aspect do stepchildren not become the Father’s full helpers? Answer: Stepchildren don't have the faith that they will become the masters of the pure world by becoming pure now that without them becoming pure, the pure world cannot be established. If they had this faith, they could become full helpers. Real children recognise the Father fully and make effort to become worthy. They follow the Father's shrimat and become elevated. Song: I have come having awakened my fortune. Om Shanti You children heard the song. You children say that you have come to a school. This is not called a common satsung (company of truth). Only you have the company of the Truth. The Supreme Father, the Supreme Soul, is called the Truth. You children are now sitting in the company of that Truth, that is, the One who is the unlimited Father. There are, in fact, two fathers: a limited father and the unlimited Father. One is the incorporeal Father of all souls and the other is Prajapita Brahma. You children have now found both fathers. Only the unlimited Father, who is called the Supreme Father, the Supreme Soul, is the God of all the devotees. There are many devotees but only one God. He is the incorporeal, unlimited Father. The other is Prajapita Brahma, the unlimited father and the third is your physical father. Bodies are born through vice. Such children are called a physical creation. This world of the iron age is called the world of sinful souls. The other world is the viceless world of charitable souls, the new world. There is just one world, not two. There is only one home, not two. In the beginning, it is called the new home and then it becomes old. When Bharat was new, it was called the golden age. It has now become old and so it is called the iron age. This is called the vicious world that causes sorrow. When the world was new, Bharat was also new. Now that the world has become old, Bharat too has become old. There was no religion other than the deity religion in new Bharat. There was only the kingdom of Lakshmi and Narayan. There were no other lands at that time. It is a matter of 5000 years. Bharat was called heaven. When there was a reduction of two degrees in the silver age, it became the kingdom of Rama and Sita. The deities then went into the warrior religion. The golden and silver ages together are called the land of happiness. When the land of sorrow begins in the copper age, the path of devotion begins. Bharat which is in salvation then goes into degradation. First of all, there is 16 degrees salvation, then 14 degrees salvation and then, in the copper age, the path of sin begins and so the people of Bharat begin to become unhappy. It is Ravan who makes you unhappy. Now all are following the dictates of Ravan. No one knows God. His directions are remembered as the highest of all. You have now come to awaken your fortune for the new world. People all make effort for the old world. You know that there is now to be the Mahabharat War for the destruction of this old world. However, before destruction takes place, the new world is needed. The Father is now making the world new. All of you are children of God. Previously, you were the devilish children and you have now become the children of the One who is ever pure in order to claim your inheritance of the land of happiness, that is, to claim a deity status. You have come to make your fortune with the unlimited Father. The Father has come once again to give you children unlimited happiness. The people of Bharat have become completely like shells. There are no kings now; it is the rule of people over people. The deities who were pure have now become impure. They sing: O Purifier, come! They burn an effigy of Ravan, but Ravan doesn't burn. You will not burn him in the golden age. In the golden age, there was the kingdom of the world almighty authority deities. At this time, all have become residents of hell. You now have to go from this side across to the other side. There is just the one Boatman. He comes and takes you from the ocean of poison to the ocean of milk. Wealthy people here believe that they are in heaven and that those who are poor are in hell. They don't know what is meant by heaven. You know that there was the kingdom of lords and ladies of divinity in the golden age. You recognise the unlimited Father and call Him the Father and so you will surely receive your inheritance. You have to remember that you are residents of the land of peace. You have come here from the supreme abode to play your parts. The Father sits here and explains the full account of how you take 84 births. The Father says: Children, it is now the end of the iron age. You are studying easy yoga here with the Father. You say: Baba, we will definitely go into the sun-dynasty clan. That is your aim and objective. This is God's school. God speaks: Children, I have come to change you from humans into deities, to become kings of kings. Become real children and claim your full inheritance. If you follow shrimat, you will become the most elevated. The Father is the Highest on High. Incorporeal God is neither subtle nor corporeal. The deities Brahma, Vishnu and Shankar are subtle; they cannot be called God. God is only One and devotees are many. Baba asks: How many devotees are there? Five to six billion. Devotees are now stumbling around on the path of devotion. Some are stumbling at one place and others somewhere else. All of you are actors in the drama and so you should know the Creator and Director of the drama. However, you don't know anything. In the golden age there were sun-dynasty deities. Their praise is sung. Both are human beings, so why are they praised? Because God made them like they are. The Father is now changing you from human beings into deities. Then, from deities, you will become warriors etc. Deities reside in the new world and then they become tamopradhan and impure in the old world. The Father comes and makes you worthy once again. He changes you from shells into diamonds. Some of you recognise Him clearly, whereas others have semi recognition of Him. Those who have semi recognition of Him are called stepchildren. They don't have the faith: Baba, I will definitely become pure and become a master of the pure world. They don't become His helpers. First of all, you have to belong to the Mother and Father. Baba, I belonged to You. Then I forgot You for half the cycle and I was then influenced by Maya. I now belong to You once again. Only impure ones are respected in this impure world. There are no such things in the golden age. Baba has explained that when people shed their bodies in the golden age, they have a vision beforehand: I will now shed this body and become a baby again. The lifespan of the body has finished. There, there is no untimely death. They shed their old bodies and take new ones. There are the examples of the snake and the buzzing moth. Even a buzzing moth has that wisdom. People of today don't have that wisdom. You are the true buzzing moths. You buzz knowledge to a variety of insects and change them from human beings into deities. The Father has come to make you happy. He has come to teach you easy yoga. No one knows when the Father taught you Raja Yoga. This is why the Father says: Children, follow My directions and become elevated. At this time, all give devilish directions. The notion of omnipresence has made Bharat as completely worthless as a shell. Bharat continues to take loans. Human beings don't know anything about who God is or where He resides. He is incorporeal, so why are you looking for Him here? God says: You say that you are followers of Shivananda, but you do not follow him. Nowadays, they are given so much respect. However, only the shrimat of the one Supreme Father, the Supreme Soul, is remembered. You have now come here to follow God's directions and claim your inheritance from Him. The Father says: Those who stumble around don't know Me. They don't know that the Father teaches you, gives you your inheritance and makes you into the masters of the world. You have now become free from stumbling around. God speaks: I have come to make you into deities. You BKs know that God comes and gives you children the inheritance of the mastery of the world. You become masters of the world by making effort. The Father is the Creator of the world. You no longer have to stumble around. Those who stumble around don't find God. You are claiming your inheritance of happiness from the Father. All the rest will receive their inheritance of the land of peace. You have now ended the account of sorrow and are accumulating your account of happiness. All the rest will experience punishment and go to their own sections. You children heard the song. You have come here to make your new fortune for the new world. Then, when you have taken 21 births, that fortune becomes old. Whether you claim the sun-dynasty kingdom, whether you become wealthy subjects or poor subjects, you now have to make effort. Some subjects too are very wealthy. Some kings even take loans from them. Even now, some subjects are wealthy. It will not be like that in the golden age. The subjects there are a lot wealthier than those who become kings and queens later on. They live in big palaces. You can become whatever you want. Everyone is now unhappy. Baba has come to make you constantly happy in heaven, that is, to make you into residents of heaven. At this time, the residents of hell take birth again in hell. You are making effort to become residents of heaven. Baba has no bodily name. Human beings receive 84 names in 84 births. There are different names, forms, lands and time periods. Shiv Baba receives neither a subtle body nor a corporeal body. He says: I take this one on loan. I come when it is this one's stage of retirement. This drama continues to be shot second by second. You and I met in the previous cycle, we meet now and we will meet again. Each second that passes by is the drama. The Father too is bound by the bond of the drama. The Father says: I come and make you children become like diamonds. I am your most obedient and most beloved Father. I also become your Teacher and Satguru. I don't have a Father, Teacher or Guru. I Myself am the Father of all. I am knowledge-full. I don’t have a guru. I Myself am the Bestower of Salvation for All. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Buzz knowledge like a buzzing moth and do the service of changing human beings into deities. Follow the Father's shrimat and become constantly happy and make others the same. 2. In order to make your fortune elevated, definitely become pure. In order to take everyone from the ocean of poison to the ocean of milk, become a boatman, the same as the Father. Blessing: May you be an embodiment of all attainments and enable everyone to experience peace and power from your vibrations of spiritual happiness. The vibrations of spiritual happiness from the faces of the children who are full of all Godly attainments and are embodiments of all attainments reach many souls so that they experience peace and power. Just as a fruitful tree gives people the experience of its shade of coolness and they become happy, similarly, the vibrations of your happiness through the shadow of your attainments give others the experience of peace and power in their bodies and minds. Slogan: Those who remain embodiments of awareness experience any adverse situation to be a game. #brahmakumari #english

  • Hindi - BK murli today 3-05-2018

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki madhur Murli - BapDada - 03-05-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - ऊंची मत एक बाप की है, उसी पर सदा चलते रहो, मातेले बन बाप से पूरा-पूरा वर्सा लो" प्रश्नः- सौतेले बच्चों को किस बात का निश्चय न होने के कारण बाप के पूरे मददगार नहीं बन सकते हैं? उत्तर:- सौतेले बच्चों को यह निश्चय ही नहीं होता कि अभी पवित्र बनने से ही पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। बिना पवित्र बनें पवित्र दुनिया स्थापन नहीं हो सकती। यह निश्चय हो तो पूरे-पूरे मददगार बनें। मातेले बच्चे बाप को पूरा पहचान लायक बनने का पुरुषार्थ करते हैं। बाप की श्रीमत पर चल श्रेष्ठ बनते हैं। गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ.... ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना। यह बच्चों का कहना है कि हम पाठशाला में आये हुए हैं। इनको कामॅन सतसंग नहीं कहेंगे। सत के साथ संग तुम्हारा ही है। सत कहा जाता है एक परमपिता परमात्मा को। अब तुम बच्चे उस सत अर्थात् बेहद बाप के संग में बैठे हो। बाप हैं वास्तव में दो। हद का बाप और बेहद का बाप। एक है सभी आत्माओं का निराकारी बाप, दूसरा है प्रजापिता ब्रह्मा। तुम बच्चों को अब दोनों बाप मिले हैं। बेहद का बाप, जिसको परमपिता परमात्मा कहा जाता है, वह एक ही सब भक्तों का भगवान है। भक्त तो अथाह हैं। भगवान है एक। वह है निराकार बेहद का बाप। दूसरा है प्रजापिता ब्रह्मा बेहद का बाप और तीसरा है लौकिक बाप। शरीर तो विकार से जन्म लेने वाला है। उनको कुख वंशावली कहा जाता है। इस कलियुगी दुनिया को पाप आत्माओं की दुनिया कहा जाता है। दूसरी है पुण्य आत्माओं की दुनिया - वाइसलेस वर्ल्ड, नई दुनिया। दुनिया एक ही है, दो नहीं हैं। घर एक ही होता है, दो नहीं। शुरू में उसको नया घर कहा जाता है, फिर पुराना हो जाता है। भारत नया था तो उसको सतयुग कहा जाता है। अब पुराना है, तो उनको कलियुग कहा जाता है। इनको दु:ख देने वाली विकारी दुनिया कहा जाता है। जब विश्व नई थी तो भारत भी नया था। अब सृष्टि पुरानी है तो भारत भी पुराना हो गया है। नये भारत में सिवाए देवी-देवताओं के और कोई धर्म नहीं था। एक ही लक्ष्मी-नारायण का राज्य था और कोई खण्ड नहीं था, 5 हज़ार वर्ष की बात है। भारत को स्वर्ग कहा जाता था। दो कला कम हुई तो त्रेता में राम-सीता का राज्य हुआ। देवता, क्षत्रिय धर्म में आ गये। सतयुग त्रेता दोनों को मिलाकर सुखधाम कहा जाता है। जब दु:खधाम द्वापर से शुरू होता है तो भक्ति मार्ग शुरू होता है। भारत जो सद्गति में था सो दुर्गति में आ जाता है। पहले 16 कला सद्गति फिर 14 कला सद्गति फिर जब द्वापर से वाम मार्ग शुरू हुआ तो भारतवासी दु:खी होने शुरू हुए। दु:खी बनाया है रावण ने। अब सब रावण मत पर चल रहे हैं। ईश्वर को कोई जानते नहीं। ऊंचे ते ऊंची मत उनकी गाई हुई है। अब तुम आये हो नई दुनिया के लिए तकदीर जगाने। मनुष्य तो सब पुरानी दुनिया के लिए मेहनत करते हैं। तुम जानते हो अभी इस पुरानी दुनिया के विनाश के लिए महाभारत लड़ाई है। परन्तु विनाश होने के पहले नई सृष्टि भी चाहिए। अब बाप नई सृष्टि रच रहे हैं। तुम सब हो ईश्वर की सन्तान। पहले आसुरी सन्तान थे। अभी सदा पावन की सन्तान बने हो - सुखधाम का वर्सा पाने अर्थात् देवता पद पाने। तुम बेहद के बाप से तकदीर बनाने आये हो। बाप तुम बच्चों को बेहद का सुख देने फिर से आया है। भारतवासी बिल्कुल कौड़ी तुल्य बन पड़े हैं। अब राजा कोई नहीं, प्रजा का प्रजा पर राज्य है। देवी-देवता जो पवित्र थे, अब पतित बन पड़े हैं। गाते हैं पतित-पावन आओ। रावण को जलाते हैं परन्तु रावण जलता नहीं। सतयुग में थोड़ेही जलायेंगे। सतयुग में वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी देवी-देवताओं का राज्य था। इस समय सब नर्क-वासी बन पड़े हैं। अब इस पार से उस पार जाना है। खिवैया एक ही है, वह आकर विषय सागर से क्षीर-सागर में ले जाते हैं। यहाँ के साहूकार लोग समझते हैं हम तो स्वर्ग में हैं। जो गरीब हैं वह नर्क में हैं। उनको मालूम नहीं स्वर्ग किसको कहा जाता है। तुम जानते हो सतयुग में था पारसनाथ और पारसनाथियों का राज्य। बेहद के बाप को तुम पहचान कर बाप कहते हो तो जरूर वर्सा मिलना चाहिए। तुमको यह याद रखना है कि हम शान्तिधाम के वासी हैं। परमधाम से यहाँ आये हैं पार्ट बजाने। 84 जन्म कैसे लेते हो - यह बाप बैठ सारा हिसाब समझाते हैं। बाप कहते हैं - बच्चे, अब कलियुग का अन्त है। यहाँ तुम बाप से सहज योग सीख रहे हो। तुम कहते हो - बाबा, हम सूर्यवंशी घराने में जरूर आयेंगे। यह एम ऑब्जेक्ट है। यह पाठशाला है भगवान की। भगवानुवाच - बच्चे, मैं तुमको मनुष्य से देवता बनाने आया हूँ। तुम राजाओं का राजा बनो। मातेले बन पूरा वर्सा लो। श्रीमत पर चलेंगे तो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनेंगे। बाप है ऊंचे ते ऊंचा। निराकार भगवान, न साकारी, न आकारी। आकारी है ब्रह्मा-विष्णु-शंकर देवतायें। उनको भगवान नहीं कहा जाता है। भगवान है एक, भक्त हैं अनेक। बाबा पूछते हैं भक्त कितने हैं? 5-6 सौ करोड़। भक्ति मार्ग वाले भक्त अब धक्के खा रहे हैं। कोई कहाँ, कोई कहाँ। तुम सब ड्रामा के एक्टर्स हो तो ड्रामा के क्रियेटर, डायरेक्टर का मालूम होना चाहिए। परन्तु कुछ भी नहीं जानते। सतयुग में सूर्यवंशी देवतायें थे उन्हों की महिमा गाते हैं। हैं तो दोनों मनुष्य फिर उन्हों की महिमा क्यों गाते हैं? क्योंकि उन्हों को ईश्वर ने ऐसा बनाया है। तुमको भी बाप मनुष्य से देवता बना रहे हैं। फिर तुम देवता से क्षत्रिय... आदि बनेंगे। नई दुनिया में रहने वाले देवतायें फिर पुरानी दुनिया में तमोप्रधान पतित बन जाते हैं। बाबा आकर फिर लायक बनाते हैं। कौड़ी से हीरे जैसा बनाते हैं। तुम्हारे में कोई अच्छी रीति पहचानते हैं कोई सेमी। सेमी को सौतेला कहा जाता है। निश्चय नहीं करते कि बाबा हम जरूर पवित्र बन पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। मददगार नहीं बनते। पहले तो मात-पिता का बनना पड़े। बाबा हम आपके थे फिर आधा कल्प बाप को भूल माया के वश हो गये। अब फिर आपके बने हैं। इस पतित दुनिया में पतितों का ही मान है। स्वर्ग में ऐसी कोई बात नहीं होती। बाबा ने समझाया है स्वर्ग में शरीर छोड़ने के पहले साक्षात्कार होता है। अभी हम यह शरीर छोड़ जाए बालक बनेंगे। शरीर की आयु पूरी हुई है। अकाले मृत्यु होता नहीं। पुराना शरीर छोड़ नया ले लेते हैं। सर्प का मिसाल, भ्रमरी का मिसाल... भ्रमरी में भी अक्ल है। आज के मनुष्य में यह अक्ल नहीं रहा है। तुम सच्ची-सच्ची भ्रमरियाँ हो। वैरायटी कीड़ों को भूँ-भूँ करके मनुष्य से देवता बनाती हो। तुमको बाप सुखी बनाने आया है। सहज योग सिखलाने आया है। बाप ने राजयोग कब सिखलाया था, यह कोई नहीं जानते इसलिए बाप कहते हैं - बच्चे, तुम मेरी मत पर चलकर श्रेष्ठ बनो। इस समय सबकी आसुरी मत है। सर्व-व्यापी के ज्ञान ने भारत को बिल्कुल कौड़ी मिसल बनाया है। कर्जा लेते रहते हैं। भगवान कौन है, कहाँ रहते हैं - मनुष्य कुछ भी नहीं जानते। वह तो निराकार है फिर यहाँ कैसे ढूँढते हो। भगवान कहते हैं तुम कहते हो हम शिवानंद के फालोअर्स हैं फिर उनको फालो कहाँ करते हो। आजकल उन्हों का कितना मान है। परन्तु श्रीमत तो एक ही परमपिता परमात्मा की गाई हुई है। अब तुम आये हो ईश्वर की मत पर चल ईश्वर से वर्सा लेने के लिए। बाप कहते हैं जो धक्के खाते हैं वह मुझे नहीं जानते हैं। उनको पता ही नहीं कि बाप पढ़ाकर वर्सा दे विश्व का मालिक बनाते हैं। तुम अभी धक्का खाने से छूट गये हो। भगवानु-वाच - तुम्हें देवता बनाने आया हूँ। तुम बी.के.जानते हो भगवान आकर बच्चों को विश्व के मालिकपने का वर्सा देते हैं। तुम पुरुषार्थ से विश्व के मालिक बनते हो। बाप है विश्व का रचता। अब तुमको धक्का नहीं खाना है। धक्के खाने वाले को भगवान नहीं मिलता है। तुम तो बाप से सुख का वर्सा लेते हो। बाकी सबको शान्तिधाम का वर्सा मिल जायेगा। अब दु:ख का खाता खलास कर सुख का जमा करते हो। बाकी सब सजा खाकर अपने-अपने सेक्शन में चले जायेंगे। बच्चों ने गीत सुना। नई दुनिया के लिए नई तकदीर बनाने आये हैं। वही तकदीर फिर 21 जन्म पूरा होने से पुरानी बनती है। अब पुरुषार्थ करना है - चाहे सूर्यवंशी राज्य लो, चाहे साहूकार प्रजा बनो, चाहे गरीब प्रजा बनो। प्रजा भी बहुत साहूकार होती है जो कई राजे लोग भी उन्हों से कर्जा लेते हैं। अभी भी प्रजा साहूकार है। सतयुग में ऐसे नहीं होता। जो पिछाड़ी में राजा-रानी बनते हैं उनसे प्रजा में बहुत साहूकार होते हैं। बड़े-बड़े महलों में रहते हैं। अब जो चाहे बनो। अभी सब दु:खी हैं, बाबा आये हैं तुमको स्वर्ग में सदा सुखी अथवा स्वर्गवासी बनाने। इस समय नर्क के वासी फिर भी जन्म नर्क में ही लेंगे। तुम स्वर्गवासी बनने का पुरुषार्थ कर रहे हो। बाबा के शरीर का कोई नाम नहीं है। मनुष्यों को 84 जन्म में 84 नाम मिलते हैं। भिन्न नाम, रूप, देश, काल। शिवबाबा को न आकारी, न साकारी शरीर मिलता है। कहते हैं मैं लोन लेता हूँ। आता तब हूँ जब इनकी वानप्रस्थ अवस्था होती है। यह ड्रामा सेकेण्ड बाई सेकेण्ड शूट होता जाता है। हम तुम कल्प पहले मिले थे, अब मिले हैं, फिर मिलेंगे। जो सेकेण्ड बीता सो ड्रामा। बाप भी ड्रामा के बंधन में बाँधा हुआ है। बाप कहते हैं तुम बच्चों को आकर हीरे जैसा बनाता हूँ। मैं तुम्हारा मोस्ट ओबिडियेन्ट, मोस्ट बिलवेड फादर, टीचर और सतगुरू भी बनता हूँ। मेरा कोई बाप, टीचर, गुरू नहीं। सबका बाप मैं स्वयं हूँ। नॉलेजफुल हूँ। मेरा कोई गुरू नहीं। स्वयं सबका सद्गति दाता हूँ। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) भ्रमरी की तरह भूँ-भूँ कर मनुष्य को देवता बनाने की सेवा करनी है। बाप की श्रीमत पर सदा सुखी बनना और बनाना है। 2) ऊंच तकदीर बनाने के लिए पावन जरूर बनना है। सबको विषय सागर से क्षीरसागर में ले चलने के लिए बाप समान खिवैया बनना है। वरदान:- रूहानी प्रसन्नता के वायब्रेशन द्वारा सर्व को शान्ति और शक्ति की अनुभूति कराने वाले सर्व प्राप्ति स्वरूप भव जो परमात्म प्राप्तियों से सम्पन्न, सर्व प्राप्ति स्वरूप बच्चे हैं, उनके चेहरे द्वारा रूहानी प्रसन्नता के वायब्रेशन अन्य आत्माओं तक पहुंचते हैं और वे भी शान्ति और शक्ति की अनुभूति करते हैं। जैसे फलदायक वृक्ष अपने शीतलता की छाया में मानव को शीतलता का अनुभव कराता है और मानव प्रसन्न हो जाता है, ऐसे आपकी प्रसन्नता के वायब्रेशन अपने प्राप्तियों की छाया द्वारा तन-मन के शान्ति और शक्ति की अनुभूति कराते हैं। स्लोगन:- जो स्मृति स्वरूप रहते हैं उन्हें कोई भी परिस्थिति खेल अनुभव होती है। #brahmakumaris #Hindi

  • Hindi - BK murli today 2 May 2018

    Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban - 02-05-2018 - प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन "मीठे बच्चे - पहले अपने ऊपर रहम करो, फिर आपका फ़र्ज है अपने परिवार को स्वर्ग में चलने का सही रास्ता बताना, इसलिए उन्हें भी लायक बनाने का पूरा पुरुषार्थ करो" प्रश्नः- तुम किस रेस के आधार से शिवालय के मालिक बन जायेंगे? उत्तर:- फालो फादर-मदर। सिर्फ एक जन्म पवित्रता की प्रतिज्ञा करो। नर्क से दिल हटा दो। शिवबाबा तुम्हारे लिए शिवालय स्थापन कर रहे हैं, जहाँ तुम चैतन्य में राज्य करेंगे। धन्धाधोरी करते बाप और स्वर्ग को याद करने से राजाई का तिलक मिल जायेगा अर्थात् शिवालय के मालिक बन जायेंगे। गीत:- तुम्हीं हो माता पिता..... ओम् शान्ति। कुछ-न-कुछ कहना पड़ता है। ओम् शान्ति या शिवाए नम:। परमात्माए नम: कहते हैं ना। ओम् शान्ति हम कहते हैं। यह है अपना और बाप का परिचय देना। वह महिमा भक्त लोग करते हैं - त्वमेव माताश्च पिता.. तुम तो बच्चे हो। जिसकी महिमा भक्त लोग भक्ति मार्ग में करते हैं, आज वह बाप आपके सम्मुख बैठा हुआ है। जरूर सम्मुख था, अब फिर सम्मुख बैठे हुए हैं। यह बातें अभी तुम बच्चे ही जानते हो। भक्त नहीं जानते हैं। तुम बच्चे जानते हो एक ही बाप है, जिसकी महिमा हो रही है। वह बाप तुम बच्चों को कितना सुख दे रहे हैं! जो तुम फिर 21 जन्मों के लिए कभी दु:खी नहीं होने वाले हो। ऐसे बाप के सम्मुख तुम बैठे हो। तुम जानते हो यह हमारा बेहद का बाप है। जो हमको स्वर्ग के सुख देने लिए सर्विस कर रहे हैं। बाप हमेशा बच्चों को रचकर उन्हों की सेवा कर लायक बनाते हैं। बाप जैसेकि बच्चों का गुलाम बन जाता है। लौकिक बाप भी बच्चों की पालना करने में कितनी मेहनत करते हैं। रात-दिन यह चिन्तन रहता है कि बच्चों की सेवा कर बच्चों को लायक बनायें। वो हैं हद की रचना के गुलाम। यह है फिर बेहद का बाप। यह भी कहते हैं - बच्चे, पूरा फालो करो और पूरा वर्सा लेकर स्वर्ग के मालिक बनो। बच्चों पर हमेशा रहम करना होता है। जो सेन्सीबुल बाप होगा वह कहेगा - बच्चों को भी क्यों न साथ-साथ यह सच्ची कमाई भी करायें। लौकिक बच्चों की स्थूल पालना तो आधाकल्प से करते हैं। बच्चों की पालना कर बड़ा बनाया, लायक बनाया। बच्चों के लिए विल किया बस, शरीर छोड़ा, जाकर दूसरा जन्म लेंगे। वह हुआ हद का बाप, यह है फिर बेहद का बाप। वह हद का ब्रह्मा है। रचना रच फिर उनका गुलाम बनते हैं। बहुत मेहनत करनी पड़ती है। कहाँ बच्चे कुसंग में खराब न हो जायें। नाम बदनाम न करें। परन्तु वह हो गया अल्पकाल का सुख। उन्हें यह पता नहीं - बच्चा सपूत निकलेगा या कपूत? कई ऐसे कपूत निकलते हैं जो एकदम खाना खराब कर देते हैं। बाप की मिलकियत को एकदम उड़ाकर चट कर देते हैं, इसलिए बड़ी सम्भाल करनी पड़ती है। बेहद के बाप को कितना फुरना रहता है! कहते हैं तुम भी वर्सा लो और अपनी रचना को भी वर्सा दो। परन्तु फिर भी कपूत बच्चे होते हैं तो बाप का कहना नहीं मानते हैं। बाप कहते हैं पढ़ाई करो, तो पढ़ते नहीं। पवित्र नहीं बनते। कोई मुश्किल कोटों में कोई, कोई में भी कोई आज्ञाकारी निकलते हैं। यहाँ तो श्रीमत मिलती है। तुम मात-पिता... यह एक की ही महिमा है। परन्तु मनुष्य न जानने कारण कृष्ण के आगे, लक्ष्मी-नारायण के आगे कहेंगे तुम मात-पिता.... यह भी अन्धश्रद्धा है। अब लक्ष्मी-नारायण प्रालब्ध भोगते हैं। उनको अपने बच्चे हैं। हम उनको कैसे कहते हैं तुम मात-पिता... वास्तव में यह महिमा एक की ही है। गीत में सुना कि ऊंचे ते ऊंचा है शिवबाबा। सबका सद्गति दाता... सबको शान्तिधाम, सुखधाम में ले जाने वाला। तो ऐसे बाप की श्रीमत पर जरूर चलना चाहिए। समझते भी हैं मात-पिता से ही 21 जन्मों के लिए सुख घनेरे मिलते हैं। परन्तु ऐसी श्रीमत पर कोई मुश्किल चलता है। बहुत ऊंचा वर्सा मिलता है। बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों के लिए हथेली पर बहिश्त लाया हूँ। जब श्रीमत पर चलो तब लायक बनो। कदम-कदम पर मत लेनी है। मत पर नहीं चलते तो ऊंच पद पा न सके। स्वर्ग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। यह किसको पता ही नहीं। आगे हम भी कहते थे फलाना स्वर्गवासी हुआ अथवा सन्यासी कोई मरेंगे तो कहेंगे ज्योति ज्योत समाया। परन्तु जाता कोई नहीं है। जीवन्मुक्ति वा मुक्ति दाता एक ही बाप है, वह न आये तब तक कोई जा न सके। वह है निराकारी दुनिया। निराकारी बाप और निराकारी आत्मायें वहाँ रहती हैं, जिसको परमधाम भी कहा जाता है। साइन्स घमण्डी समझते हैं यहाँ ही जन्मते और मरते हैं। जैसे मच्छर। सृष्टि के चक्र का किसको भी पता ही नहीं। सर्वव्यापी के ज्ञान से कोई कुछ भी समझ न सके। अब तुमको बाप मिला है। कहते हैं - बच्चे, अब वापिस चलो। मैं कल्प पहले मुआफिक सबको ले जाने आया हूँ। तुम्हारी आत्मा में बहुत खाद पड़ी है। सबकी आत्मा तथा शरीर आइरन एजेड हो गये हैं। उनको फिर से सतोप्रधान बनना है। तुम बच्चों की आत्मा सतोप्रधान थी तब गोल्डन एजेड वर्ल्ड थी। पवित्र आत्मा का पवित्र सोने जैसा शरीर था। उसको सच्चा जेवर कहा जाता था। अब तो क्या हो गया है। एक परसेन्ट भी सच्चा सोना नहीं रहा है। खाद पड़ी हुई है। अब बाप कहते हैं सिर्फ मुझ बाप को याद करो तो सच्चा सोना बनते जायेंगे। आत्मा उड़ने लग जायेगी। अभी पंख टूटे हुए हैं। जैसा पुरुषार्थ करेंगे वैसा पद पायेंगे। कितनी ऊंची पढ़ाई है। भगवानुवाच - मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ, जिससे तुम राजाओं का राजा बनेंगे। विकारी पुजारी राजाओं के भी पूज्य बनेंगे। गाया भी है आपेही पूज्य, आपेही पुजारी। तुम जानते हो हम सो पूज्य देवी-देवता थे फिर हम सो पूज्य चन्द्रवंशी बने। हम सो पूज्य और पुजारी बनते हैं। बाप आकर पुजारी से पूज्य बना रहे हैं। अब ज्ञान जिन्दाबाद हो रहा है। ब्रह्मा सो ब्रह्माकुमार कुमारियों की रात अब पूरी होती है। रात कब से आरम्भ होती है - यह शास्त्रवादी नहीं जानते हैं। ब्रह्मा का दिन सतयुग त्रेता... द्वापर के आदि से रात शुरू होती है। यह सब बातें तुम बच्चों की बुद्धि में हैं। अब 84 जन्म पूरे कर हम फिर से राज्य-भाग्य भोगेंगे। सतयुग में यह ज्ञान नहीं रहेगा। वहाँ है प्रालब्ध। वहाँ भी तुम अपने बाप से वर्सा लेते हो। परन्तु वह इस समय की प्रालब्ध है जो 21 जन्म चलती है। भारत पर ही सारा खेल है। सतयुग में जो देवी-देवताओं का राज्य था वह अभी आसुरी बना है। प्रजा का प्रजा पर राज्य है। बाप कहते हैं - बच्चे, हियर नो ईविल, सी नो ईविल... बन्दर का एक चित्र दिखाते हैं। इस समय मनुष्य बन्दर मिसल बन पड़े हैं इसलिए बन्दर की शक्ल दिखाते हैं। बात इस समय की है। इसको कहा जाता है - रौरव नर्क। बिच्छू टिण्डन मिसल एक दो को काटते रहते हैं। बच्चे बाप का भी खून कर देते हैं। माया ने सबको डर्टी बना दिया है। भारत हेविन था, अब हेल है। 84 जन्म भी भारतवासियों के हैं। बाप कहते हैं मैं कितनी समझानी देता हूँ। कहते हैं - आई एम मोस्ट ओबिडियन्ट फादर। फादर सर्वेन्ट, टीचर सर्वेन्ट, गुरू सर्वेन्ट। अब मैं आया हूँ। पण्डे लोग भी यात्री के सर्वेन्ट होते हैं - रास्ता बताने वाले। अब मैं तुम बच्चों को स्वर्ग ले चलने लिए गाइड बना हूँ। लिबरेट करता हूँ। हिस्ट्री रिपीट जरूर होगी। ग्रन्थ में भी कहते हैं कि है भी सत, होसी भी सत... एकोअंकार... यह परमात्मा की महिमा है। एक तरफ कहते हैं अजोनी, दूसरे तरफ कहते हैं सर्वव्यापी है। जिधर देखता हूँ तू ही तू है। यहाँ हम आये हैं मौज करने। ऐसे बहुत ही कहते हैं। अब बाप कहते हैं - बच्चे, यह सब बातें तुम्हें डुबोने वाली हैं। सर्वव्यापी का ज्ञान डुबो देता है। बाप कितना समझाते हैं। कोई तो झट निश्चय करते हैं कि बाप से वर्सा लेना है। इन जैसा स्वीट फादर मिल नहीं सकता। स्वर्ग की स्थापना करने वाला बाप है। जब बाप मिले तब ही हम स्वर्ग के मालिक बनें। ऐसे बाप को झट अपना बनाना चाहिए। मुझे तो बच्चे चाहिए जो कल्प पहले बने थे, वो ही आकर सपूत या कपूत बनेंगे कल्प पहले मुआफिक। स्त्री की, बच्चों की जवाबदारी क्रियेटर बाप के ऊपर है। उनका फ़र्ज है बच्चों को भी स्वर्ग का मालिक बनाये। पहले तो अपने पर रहम करो। ऐसे नहीं कि बाबा कृपा करेंगे तो सब लक्ष्मी-नारायण बन जायेंगे। यह बड़ा इम्तहान है। 8 को ही स्कालरशिप मिलती है। फिर 108 हैं, लॉटरी होती है ना। बाप कहते हैं - देह सहित देह के सम्बन्ध जो कुछ हैं भूल जाओ। अपने को अशरीरी समझो और आत्मा निश्चय करो। ऐसे नहीं तुम परमात्मा हो। वह फिर आत्मा सो परमात्मा कह देते हैं। समझते हैं आत्मा जाकर परमात्मा में लीन होगी। जब तक लीन न हो तब तक उनको परमात्मा नहीं कहेंगे। परन्तु परमात्मा में लीन होते नहीं। यह ड्रामा अनादि बना हुआ है। 5-6 सौ करोड़ एक्टर्स हैं। उन सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है जो बजाना है। हरेक आत्मा में इमार्टल पार्ट भरा हुआ है। बाप बिगर कोई समझा न सके। बाप आकर तुम बच्चों को आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान दे त्रिकालदर्शी बनाते हैं। चित्रों में देवताओं को तीसरा नेत्र दिखाते हैं। वास्तव में तीसरा नेत्र न है देवताओं को, न शूद्रों को। तुम ब्राह्मणों को ही ज्ञान का तीसरा नेत्र है, जिससे तुम सबके आक्यूपेशन को जानते हो। सच खण्ड और झूठ खण्ड की हालत को भी तुम जानते हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं। यह है पाठशाला। इसमें अन्धश्रद्धा की कोई बात नहीं है। अपना धन्धाधोरी सब करते रहो। सिर्फ अपने बाप को और स्वर्ग को याद करो तो तुम्हारे ऊपर राजाई का तिलक आ जायेगा। आत्मा ही याद करती है। संस्कार आत्मा में है। आत्मा से ही बात करते हैं। मैं तुम्हारा बाप हूँ। कल्प पहले भी तुमने वर्सा लिया था। सूर्यवंशी राज्य किया था। फिर चन्द्रवंशी में गये। कलायें कमती होती जाती है। फिर वैश्य, शूद्र बने। अब स्मृति आई है कि नाटक पूरा हुआ है। मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। श्रीमत पर न चले, देह अभिमान आया तो लगी चोट। फिर ब्रहस्पति की दशा बदलकर राहू का ग्रहण बैठ जाता है। फारकती दी तो रौरव नर्कवासी बन जाते हैं। बाप कहते हैं ऊंच पद पाना है तो रेस करो। अभी ऊंच पद पायेंगे तो कल्प-कल्प पाते रहेंगे। सिर्फ एक जन्म के लिए पवित्रता की प्रतिज्ञा करो तो 21 जन्म स्वर्ग के मालिक बनेंगे। अब नर्क से दिल को हटा दो। शिवबाबा तुम्हारे लिये शिवालय स्थापन कर रहे हैं, जहाँ तुम चैतन्य देवतायें राज्य करेंगे। तो क्या शिवालय का मालिक बनने चाहते हो? फालो मदर-फादर। जो कुछ है सब तुम बच्चों के लिए है। राजा भी तुम बनेंगे। तुम ही थे। अब रंक बने हो। और धर्म वालों की बात नहीं। देवी-देवता धर्म वाले ही और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं इसलिए हिन्दुओं की संख्या कम हो गई है। नहीं तो भारत की संख्या सबसे जास्ती होनी चाहिए। तुमको भगवान पढ़ा रहे हैं! कितना ध्यान देना चाहिए! यह बड़ी वन्डरफुल पढ़ाई है। बूढ़े, बच्चे, जवान सब पढ़ते हैं। बीमार भी पढ़ सकते हैं। अगर बाप और वर्से को याद न किया तो माया थप्पड़ मार देगी। ब्लड से लिख देना चाहिए - मैं रात-दिन बाबा को याद करूंगा। शिवबाबा का हाथ पूरा पकडूँगा। जो बाबा कहेगा सो करुँगा। शिवबाबा कहते हैं बच्चों की सम्भाल करो। जो बचे, उनसे दो मुट्ठी शिवबाबा की सर्विस में लगा दो फिर उनका एवज़ा तुमको इतना मिलेगा जितना साहूकार का लाख देने से बनेगा। प्रत्यक्षफल मिल जाता है। अच्छा! मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) देह तथा देह के सर्व सम्बन्ध भूल अशरीरी आत्मा बनने का अभ्यास करना है। बाप से श्रीमत लेकर कदम-कदम उस पर चलना है। 2) पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है। दृढ़ संकल्प करना है कि "रात-दिन एक बाबा की ही याद में रहूँगा और बाबा जो कहेंगे वह अवश्य करूंगा"। हियर नो ईविल, सी नो ईविल... वरदान:- कोई भी ड्युटी बजाते हुए स्वयं को सेवाधारी समझ सेवा करने वाले डबल फल के अधिकारी भव कोई भी कार्य करते, दफ्तर में जाते या बिजनेस करते - सदा स्मृति रहे कि सेवा के लिए यह ड्युटी बजा रहे हैं। सेवा के निमित्त यह कर रहा हूँ - तो सेवा आपके पास स्वत: आयेगी और जितनी सेवा करेंगे उतनी खुशी बढ़ती जायेगी। भविष्य तो जमा होगा ही लेकिन प्रत्यक्ष-फल खुशी मिलेगी। तो डबल फल के अधिकारी बन जायेंगे। याद और सेवा में बुद्धि बिजी होगी तो सदा ही फल खाते रहेंगे। स्लोगन:- जो सदा खुशहाल रहते हैं वह स्वंय को और सर्व को प्रिय लगते हैं। #bkmurlitoday #Hindi #brahmakumaris

  • English - BK murli today 2 May 2018

    02/05/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban Sweet children, first of all, have mercy on yourselves. Then, it is your duty to show your family the true way to go to heaven. Therefore, make full effort to make them worthy too. Question: On the basis of which race will you become the masters of Shivalaya? Answer: Follow the Mother and Father. Make a promise of purity for just one birth. Remove your heart from hell. Shiv Baba is establishing Shivalaya for you where you will rule in the living form. By remembering the Father and heaven while at your business you will receive the tilak of sovereignty, that is, you will become the masters of Shivalaya. Song: You are the Mother and Father. Om Shanti You have to say something or other: “Om shanti” or “Salutations to Shiva”. They say "Salutations to the Supreme Soul" whereas we say "Om shanti". This is giving the introduction of the self and of the Father. Those devotees sing the praise: “You are the Mother and Father…”, whereas you are the children. The Father, whom devotees praise on the path of devotion, is personally sitting here in front of you today. He definitely was in front of you and is now once again sitting personally in front of you. Only you children now know these things. Devotees don't know this. You children know that there is only the one Father who is praised. That Father is giving you children so much happiness that you won't become unhappy again for 21 births. You are personally sitting in front of such a Father. You know that He is your unlimited Father and that He is now serving to give us the happiness of heaven. The Father always creates the children, serves them and makes them worthy. It is as though the Father becomes a slave of the children. A physical father also makes so much effort to sustain his children. Day and night, he is concerned to serve his children and make them worthy. He is the slave of a limited creation whereas this One is the unlimited Father. This One also says: Children, follow fully and become the masters of heaven by claiming your full inheritance. You always have to have mercy for children. A sensible father would say: Why should I not enable the children to earn this true income with me? Physical sustenance has been given to physical children for half the cycle. They sustained the children, brought them up and made them worthy. They made wills for the children, then shed their bodies and took other births. Those are limited fathers whereas this One is the unlimited Father. Those are limited Brahmas. They create creations and then become their slave. They have to work very hard to ensure that their children don't become spoilt through bad company and defame their name. However, that is temporary happiness. They don’t know whether their children will turn out to be worthy or unworthy. Some are so unworthy that they completely ruin everything. They completely waste their father’s wealth. This is why there has to be great caution. The unlimited Father is so concerned. He says: You claim your inheritance and also give the inheritance to your creation. However, even then, if the children are unworthy, they disobey the Father. The Father says: “Study” but they don't study; they don't become pure. Scarcely a few, a handful out of multimillions, emerge who are obedient. You receive shrimat here. “You are the Mother and Father.” This is praise of just the One. However, because of not knowing, people say in front of Krishna and Lakshmi and Narayan: You are the Mother and Father. That too is blind faith. Lakshmi and Narayan experience their reward. They have their own children. How can we call them the Mother and Father? In fact, this praise belongs to only the One. You heard in the song: The Highest on High is Shiv Baba. He is the Bestower of Salvation for All. He is the One who takes everyone to the land of peace and the land of happiness. Therefore, you must definitely follow the shrimat of such a Father. They understand that it is only from the Mother and Father that they receive a lot of happiness for 21 births. However, hardly anyone follows such shrimat. You receive a very elevated inheritance. The Father says: I have brought heaven on the palm of My hand for you children. You will become worthy when you follow shrimat. You have to take shrimat at every step. If you don't follow His directions, you won't be able to claim a high status. There was the kingdom of Lakshmi and Narayan in heaven. No one knows this. Previously, we also used to say: So-and-so became a resident of heaven. Or, when a sannyasis died, they would say that he merged into the light. However, no one goes there. Only the one Father is the Bestower of Liberation and Liberation-in-life. No one can go back until He comes. That is the incorporeal world. Incorporeal souls and the incorporeal Father reside there and that is also called the supreme abode. Those who have arrogance of science understand that they take birth here and die here too, just like mosquitoes. No one knows about the world cycle. No one can understand anything from the notion of omnipresence. You have now found the Father. He says: Children, now return home. I have come to take everyone back exactly as in the previous cycle. You souls have a lot of alloy in you. All souls and their bodies have become iron aged. They have to become satopradhan once again. When you souls were satopradhan, the world was golden aged. Pure souls had bodies that were like pure gold; they were called real jewellery. Look what they have become now. Not even one per cent real gold remains now. Alloy has been mixed in. The Father now says: Simply remember Me, your Father, and you will continue to become real gold and the soul will begin to fly. The wings are now broken. You will attain a status according to how much effort you make. This study is so elevated. God speaks: I teach you Raja Yoga through which you become the kings of kings. You will become worthy of being worshipped by even the kings who are worshippers and who indulge in vice. It is remembered: You are worthy of worship and you become a worshipper yourself. You know that you were worthy-of-worship deities and that you then became moon-dynasty worthy of worship. We become worthy of worship and worshippers. The Father comes and makes us worthy of worship from worshippers. There is now victory for knowledge. The night of Brahma and the Brahma Kumars and Kumaris is now coming to an end. Those who study the scriptures do not know when the night begins. The day of Brahma is the golden and silver ages. The night begins in the copper age. All of these things are in the intellects of you children. Having completed our 84 births we will once again experience our fortune of the kingdom. This knowledge will not remain in the golden age. There, there is the reward. There, too, you receive your inheritance from your father. However, that is the reward of this time that you receive for 21 births. The whole play is based on Bharat. The kingdom of deities that existed in the golden age has now become devilish. There is the rule of the people over the people. The Father says: Children, hear no evil, see no evil… They show an image of monkeys. At present, humans have become like monkeys. This is why they show the faces of monkeys, but it applies to this time. This is called the extreme depths of hell. They continue to sting one another like scorpions. Children even kill their father. Maya has made everyone dirty. Bharat was heaven and it is now hell. The 84 births are those of the people of Bharat. The Father says: I explain so much to you. He says: I am your most obedient Father, Father-Servant, Teacher-Servant and Guru-Servant. I have now come. Guides too are servants of the pilgrims; they show them the path. I have now become the Guide to take you children to heaven. I liberate you. History will definitely repeat. In the Granth, it says: I am the Truth and that which is true will take place… God is incorporeal. This is the praise of God. On the one hand, they say that He is beyond birth (ajoni) and, on the other hand, they say that He is omnipresent. Wherever I look, I only see You. We have come here to enjoy ourselves. Many people say this. The Father now says: Children, all of those things will make you drown. The notion of omnipresence drowns you. The Father explains so much to you. Some very quickly have the faith that they have to claim their inheritance from the Father. You cannot find another Father as sweet as this One. It is the Father who establishes heaven. Only when we find the Father do we become the masters of heaven. You should quickly make such a Father belong to you. I want the children who belonged to Me in the previous cycle; they are the ones who will come and become worthy or unworthy as they did in the previous cycle. The responsibility for the mother and the children is with the Father, the Creator. It is also His duty to make the children into the masters of heaven. First of all, have mercy on yourself. It isn't that Baba gives blessings, otherwise everyone would become Lakshmi or Narayan! This is a big examination. Only eight win the scholarship. Then, there are the 108. There is a lottery. The Father says: Forget your body and all bodily relations. Consider yourself to be bodiless and have the faith that you a soul. It isn't that you are God. They say that each soul becomes the Supreme Soul. They believe that a soul will merge into the Supreme Soul and that, until he merges into Him, a soul cannot be called the Supreme Soul. However, no one merges into the Supreme Soul. This drama is eternally predestined. There are five to six billons actors. All actors have received their own parts which they have to play. Every soul has an immortal part recorded in him. No one but the Father can explain to you. The Father comes and gives you children the knowledge of the beginning, the middle and the end and makes you trikaldarshi. In pictures, they show deities with a third eye. In fact, neither deities nor shudras have a third eye. Only you Brahmins have the third eye of knowledge with which you know the occupation of everyone. You know the condition of the land of truth and of the land of falsehood. Among you, too, it is numberwise according to the efforts you make. This is a school. There is no question of blind faith here. Continue to do your business etc. Simply remember your Father and heaven and the tilak of the sovereignty will be applied to you. It is the soul that remembers. The sanskars are in the soul. Baba speaks to souls: I am your Father. You claimed your inheritance in the previous cycle too. You ruled the sun-dynasty kingdom and you then went into the moon dynasty. The degrees continued to decrease as you became merchants and then shudras. You are now aware that the play is coming to an end. Constantly remember Me alone and your sins will be absolved. If you don't follow shrimat but become body conscious, you will be hurt. Then the omens of Jupiter will change and omens of Rahu will come. If you divorce the Father, you will become a resident of extreme hell. The Father says: If you want to claim a high status, then race. If you claim a high status now, you will claim it every cycle. Simply promise to remain pure for one birth and you will become the masters of heaven for 21 births. Now remove your heart from hell. Shiv Baba is establishing Shivalaya for you where you will rule as living deities. So, do you want to become a master of Shivalaya? Follow the Mother and Father. Whatever they have is all for you children. You are the ones who will become kings. You were that. You have now become beggars. It is not a question of those of other religions. It is those who belonged to the deity religion who have been converted into other religions. This is why the population of Hindus has declined. Otherwise, the population of Bharat should be the largest. God is teaching you. Therefore, you should pay so much attention. This is a very wonderful study. Old ones, children and young ones are all studying here. Even those who are ill can study. If you don't remember the Father and the inheritance, Maya will slap you. You should write in blood: I will remember Baba day and night. I will hold on to Baba's hand very tightly. I will do whatever Baba says. Shiv Baba says: Look after your children; give two handfuls for Shiv Baba's service from whatever is left and, in return for that, the reward you receive will be equal to what a wealthy person would receive by giving a hundred thousand. You receive the instant practical fruit. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for Dharna: 1. Forget your body and all bodily relations and practise becoming a bodiless soul. Take shrimat from the Father and follow it at every step. 2. Pay full attention to the study. Have the determined thought: I will remember Baba alone day and night and I will definitely do that which Baba tells me to do. Hear no evil, see no evil. Blessing: May you have a right to double fruit by considering yourself to be a server while doing service and performing any duty. While carrying out any task, going to the office or running your business, always have the awareness that you are performing that duty for service. I am doing this for the sake of service. Service will then automatically come to you and the more service you do, the more your happiness will increase. Of course, you will accumulate for your future and you will also receive the instant fruit of happiness. So, you will claim a right to double fruit. If your intellect is busy in remembrance and service, you will constantly continue to eat that fruit. Slogan: Those who are constantly happy are loved by themselves and by others. #brahmakumari #english

  • Hindi - BK murli today - 1 May 2018

    Brahma Kumaris murli today in Hindi for 1 May 2018 - BapDada - Madhuban - “मीठे बच्चे – तुम रूहानी सोशल वर्कर हो, तुम्हें भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है, दु:खधाम को सुखधाम बनाना है” प्रश्नः-संगम पर तुम ब्राह्मण बच्चे किस बात में बहुत एक्सपर्ट (तीखे) बन जाते हो? उत्तर:-सभी मनुष्यात्माओं की मनोकामना पूर्ण करने में अभी तुम एक्सपर्ट बने हो। मनुष्यों की कामना मुक्ति और जीवन्मुक्ति पाने की है, वह तुम्हें पूर्ण करनी है। तुम सभी को शान्ति का रास्ता बताते हो। शान्ति कोई जंगल में नहीं मिलती, लेकिन आत्मा का स्वधर्म ही शान्ति है। शरीर से डिटैच हो बाप को याद करो तो सुख-शान्ति का वर्सा मिल जायेगा। गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी… ओम् शान्ति। बेहद का बाप अपने सिकीलधे बच्चों को समझा रहे हैं। जिन बच्चों ने बाप को जाना है और बाप की शरण में आये हैं। कहते हैं प्रभू तेरी शरण आये। शरण मिले तब, जबकि बाप आये और बच्चों को समझावे। भगत भगवान की शरण में आते हैं क्योंकि यहाँ सब दु:खी हैं। भारत दु:खधाम है। एक दो को दु:ख देते रहते हैं। बाप ने समझाया है यह है तुम्हारी हंस मण्डली। यहाँ पावन बच्चों बिगर कोई भी आ नहीं सकता। बाप समझाते हैं – बच्चे, पावन भारत को ही सुखधाम कहा जाता है और कोई खण्ड को सुखधाम नहीं कहेंगे। भारत ही सुखधाम और भारत ही दु:खधाम बनता है। भारतवासी बहुत दु:खी हैं क्योंकि पतित हैं। परन्तु यह बात उन्हें कोई समझाते नहीं। बाप समझाते हैं – सन्यासी पावन हैं, घरबार छोड़ते हैं, परन्तु खुद भी गाते हैं – पतित-पावन सीताराम…। अभी तुम आये हो पतित-पावन बाप के पास। जो एक ही परमपिता परमात्मा है वही सारी दुनिया को पावन बनाते हैं। मनुष्य, मनुष्य को पावन बना न सके। यह है ही पतित दुनिया। कोई भी पावन नहीं। कहते भी हैं – हे परमपिता परमात्मा। फिर कह देते ईश्वर सर्वव्यापी है। शिवोहम्, तत् त्वम्। सब बिचारे बाप को भूले हुए हैं। जैसे मनुष्य शराब पीते हैं, तो भले वह देवाला मारा हुआ हो तो भी शराब से एकदम नशा चढ़ जाता है। वैसे ही मनुष्य को यह पता नहीं पड़ता कि यह विकार ही पतित बनाते हैं, तब तो सन्यासी भी पावन बनने के लिए घरबार छोड़ते हैं। परन्तु वह है निवृत्ति मार्ग। यहाँ तो बाप आये हैं। जो आधाकल्प से दु:खी हैं वह आकर शरण लेते हैं। दु:खी करने वाली है माया। पाँच विकारों के महारोगी हैं। मनुष्य को रावण ने बिल्कुल असुर बनाया है। जब बिल्कुल दु:खधाम बन जाता है, तब फिर बाप आकर सुखधाम स्थापन करते हैं। तुम हो रूहानी सोशल वर्कर। तुमसे बाप सेवा कराते हैं कि – बच्चे, तुम इस भारत को स्वर्ग बनाओ। सारा मदार योग पर है। योग में कोई 7 रोज अच्छी रीति रहे तो कमाल हो जाये। ऐसे कोई योग में मुश्किल टिक सकेंगे। घर याद आयेगा, मन भागता रहेगा। सात रोज़ मशहूर हैं। गीता, भागवत, ग्रन्थ का पाठ भी 7 रोज रखते हैं। यह रस्म-रिवाज इस संगमयुग की है। सात रोज़ भट्ठी में रहना पड़े। किसकी भी याद न आवे। एक बाप के साथ योग लगा रहे। सात रोज़ इस एकरस अवस्था में रहना – यह बड़ा मुश्किल है। तुम बच्चों के यादगार भी यहाँ ही हैं। तुम अभी झाड़ के नीचे बैठकर राजयोग की तपस्या करते हो। जगत अम्बा भी है तो तुम बच्चे भी हो। तुम हो सभी मनुष्यों की सर्व मनोकामनायें स्वर्ग में पूरी करने वाले अथवा मनुष्यों को मुक्ति-जीवन्मुक्ति का फल देने वाले। तुम एक्सपर्ट हो। दुनिया में कोई नहीं जानते कि मुक्ति-जीवन्मुक्ति किसको कहा जाता है? कौन देते हैं? पतित दुनिया में कौन पावन बना सकते हैं? सन्यासी लोग शान्ति के लिए घरबार छोड़ते हैं। जंगल में जाते हैं, परन्तु शान्ति तो मिल नहीं सकती। आत्मा का स्वधर्म है शान्त और मनुष्य बाहर ढूँढ़ते हैं। यह किसको पता नहीं कि आत्मा का स्वधर्म शान्त है। (रानी के हार का मिसाल) यह आरगन्स हैं, चाहे कर्मेन्द्रियों से काम लो या न लो। हम आत्मा इस शरीर से अपने को डिटैच कर लेते हैं। जैसे रात को आत्मा डिटैच हो जाती है ना। सब कुछ भूल जाती है। उसको फिर नींद कहेंगे। यहाँ सिर्फ शान्ति में तुम बैठते हो। आत्मा कहती है मैं कर्मेन्द्रियों से काम कर थक गयी हूँ। अच्छा, अपने को शरीर से डिटैच कर लो। यह आरगन्स हैं कर्म करने के लिए। यह नॉलेज बाप ही देते हैं। डिटैच कर बैठ जाओ, कुछ न बोलो। परन्तु ऐसे डिटैच हो कहाँ तक बैठेंगे? यह तो तुम जानते हो कर्म बिगर कोई रह न सके। डिटैच तो हुए परन्तु साथ में फायदा भी चाहिए। सिर्फ डिटैच हो बैठने से इतना फ़ायदा नहीं होगा। डिटैच हो फिर मुझे याद करो तो तुमको फायदा होगा, शक्ति मिलेगी। बाप अपने बच्चों को समझाते हैं – बच्चे, यह ज्ञान-इन्द्र-सभा है। यहाँ तुम सब रत्न बैठे हो। कोई पत्थर-बुद्धि बैठा होगा तो वायुमण्डल खराब कर देगा क्योंकि शिवबाबा की याद में रहेगा नहीं। उनको अपने मित्र-सम्बन्धी याद पड़ते रहेंगे। तुमको तो अपने बाप को निरन्तर याद करना है। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं है। यह बड़ी युनिवर्सिटी है। मेडिकल कॉलेज में कोई अनपढ़ आकर बैठे तो कुछ नहीं समझेगा। उनको तो एलाउ नहीं करेंगे। सिर्फ देखने से कुछ समझ नहीं सकेंगे। इस नॉलेज को भी विकारी पतित समझ न सके, इसलिए ऐसे को एलाउ नहीं किया जाता है। कोई कहे कि हम क्लास में आवें, लेक्चर सुनें? परन्तु इससे कुछ समझ नहीं सकेगा। यह युनिवर्सिटी है – मलेच्छ से स्वच्छ देवता बनने के लिए। यहाँ ऐसे कोई को एलाउ नहीं किया जाता है। बाप को तो जान न सके। बाप है गुप्त। तुम जानते हो बेहद के बाप की शरण में आये हैं – बाप से सदा सुख का वर्सा लेने। बाप खुद कहते हैं यह ब्रह्मा का जो शरीर है यह बहुत जन्मों के अन्त का वानप्रस्थ वाला है। यह भी बहुत शास्त्र आदि पढ़ा हुआ है। अभी मैं सब वेद-शास्त्रों का सार इन द्वारा सुनाता हूँ। ब्रह्मा के हाथ में शास्त्र दिखाते हैं। विष्णु की नाभी-कमल से ब्रह्मा निकला। समझाया है विष्णु की नाभी-कमल से ब्रह्मा, ब्रह्मा की नाभी-कमल से विष्णु निकला है। ब्रह्मा-सरस्वती दोनों कैसे नारायण-लक्ष्मी बनते हैं। फिर 84 जन्म पूरा कर अन्त में ब्रह्मा सरस्वती बनते हैं। उन्होंने फिर गाँधी की नाभी-कमल से नेहरू दिखाया है। अभी यहाँ तो क्षीरसागर है नहीं। यह है विषय सागर। क्षीरसागर सतयुग में दिखाते हैं। तुम बच्चे जानते हो – आधाकल्प से माया ने दु:खी बनाया है। भारत जितना दु:खी और कोई नहीं है। भारत जितना सुखी भी और कोई हो नहीं सकता। बाप कहते हैं देवी-देवता धर्म तो प्राय: लोप होना ही है। तब तो मैं आकर फिर से नया धर्म स्थापन करूं। बरोबर अब स्थापन हो रहा है। तुम बच्चे आकर बाप से वर्सा ले रहे हो। जानते हो स्वर्ग में कौन राज्य करते हैं। बचपन में राधे-कृष्ण वही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। अब तो बाप आया हुआ है। भिन्न नाम-रूप से लक्ष्मी-नारायण पढ़ते हैं। श्रीकृष्ण का साँवरा रूप यहाँ बैठा है। बाप इसको उस पार ले जाते हैं। शास्त्रों में दिखाते हैं कृष्ण को टोकरी में उस पार ले गये। अब शिवबाबा आया हुआ है। तुम बच्चों को ऑखों पर बिठाकर स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। सारी वंशावली को पढ़ा कर बाप ले जाते हैं – कंसपुरी से कृष्णपुरी में। एक की तो बात नहीं है। रावणपुरी से तुम सबको निकाल, नयनों पर बिठाकर सुखधाम ले जाता हूँ। मैं तुम बच्चों को स्वर्ग तक पहुँचाने आया हूँ। फिर इस पुरानी दुनिया का विनाश हो जायेगा। लड़ाई की बात भी शास्त्रों में है। परन्तु समझते कुछ भी नहीं हैं। यह दादा भी बहुत शास्त्र पढ़ा हुआ था। अब बाबा कहते हैं इन सबको छोड़ मामेकम् याद करो। मैं सबका सद्गुरू हूँ। कंसपुरी कलियुग को, कृष्णपुरी सतयुग को कहा जाता है। अब तुमको रावणपुरी से रामपुरी वा कृष्णपुरी में ले चलता हूँ। चलेंगे सुखधाम कृष्णपुरी में? गाते हैं ना – भजो राधे-गोविन्द.. यह हुआ भक्ति मार्ग। अभी तुम राधे-गोविन्द फिर से बन रहे हो। अभी तुम्हारा दोनों ताज नहीं रहा है – न लाइट का, न राजाई का। पवित्र को ही लाइट का ताज देते हैं। लक्ष्मी-नारायण तो हैं ही सदा पवित्र। उनको कभी सन्यास नहीं करना पड़ता है। सन्यासी जन्म लेकर फिर घरबार छोड़ते हैं पवित्र बनने के लिए। तुम्हारा 21 जन्मों के लिए यह एक जन्म का सन्यास होता है। वह कोई 21 जन्म पवित्र नहीं होते हैं। वह पहले तो विकारियों के पास जन्म ले पतित बन जाते फिर पवित्र बनने लिए घरबार छोड़ते हैं। वह है रजो-गुणी सन्यास। बाप कहते हैं मैं नॉलेजफुल हूँ। नॉलेजफुल, ब्लिसफुल… मेरे में ही फुल नॉलेज है। सूक्ष्मव-तन, मूलवतन, स्थूलवतन और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की फुल नॉलेज तुम बच्चों को देता हूँ, जिससे तुम फुल बनते हो। देवी-देवतायें हैं ही फुल। तुम बच्चे बाप की गोद में आये हो। जानते हो हम श्रीमत पर चल फिर से राज्य-भाग्य लेते हैं। यह हार-जीत का खेल है। माया से हारे हार है, माया से जीते जीत है। तुम सर्वशक्तिमान बाप से योग लगाकर, शक्ति ले माया पर विजय पाते हो। समझते हो – हमारा 84 जन्मों का ड्रामा अब पूरा होता है। हम फिर से राज्य-भाग्य लेते हैं। लक्ष्मी-नारायण को क्षीरसागर में दिखाते हैं। यह है विषय सागर। राधे-कृष्ण तो छोटे बच्चे थे। कृष्ण को बहुत प्यार से झूले में झुलाते हैं। समझते हैं – वह स्वर्ग का प्रिन्स है। कृष्ण को 16 कला कहा जाता है, राम को 14 कला। वही कृष्ण फिर 16 कला से 14 कला बनते हैं। पुनर्जन्म तो लेना पड़े ना। बाबा ने समझाया है – पूरे 84 जन्म तो सब नहीं लेते होंगे। और धर्म वाले 84 जन्म नहीं लेंगे। समझने की बातें हैं। फादर से वर्सा जरूर मिलना चाहिए। वह है स्वर्ग का रचयिता। तो जरूर स्वर्ग का मालिक ही बनायेंगे। वह फादर परमधाम में रहते हैं। हम भी वहाँ से आते हैं। बाबा को अच्छी रीति याद करना है। याद से शान्ति मिलेगी। मनुष्य तो कहते हैं – परमात्मा से योग कैसे लगायें? मूँझ पड़ते हैं। तुमको तो सब समझ मिली है। बाप आते ही हैं दु:खधाम और सुखधाम के संगम पर। कलियुग अन्त है दु:खधाम, सतयुग आदि है सुखधाम। दु:खधाम को बदल सुखधाम में बाप ही बिठायेंगे। इतनी ही समझ की बात है। यह पढ़ाई पवित्रता के बिगर कोई पढ़ न सके इसलिए यहाँ पतित को नहीं बिठाया जाता है। समझाना है – तुम आधा कल्प के महारोगी हो। माया ने महारोगी बनाया है इसलिए पहले भट्ठी में रखा जाता है। तुम बच्चे हरेक के आक्यूपेशन को जान गये हो। शिव के मन्दिर में जायेंगे तो समझ जायेंगे – यह बाबा गति-सद्गति दाता है। सबसे बड़ा तीर्थ भी भारत है। परन्तु गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है। शिवबाबा का नाम गुम कर दिया है। शिवबाबा ही आकर सबको दु:ख से छुड़ाते हैं। बाकी पानी की गंगा तो पतित-पावनी है नहीं। वह तो पहाड़ों से निकली है। उसको पतित-पावनी कैसे कहेंगे। इसको अन्धश्रद्धा कहा जाता है। मनुष्य क्या-क्या करते रहते हैं। गाते हैं – मनुष्य जैसा दुर्लभ जन्म है नहीं। सो दुर्लभ जन्म तुम्हारा अभी का है जबकि बाप आया हुआ है। यह तुम्हारा अमूल्य जन्म है। तुम पवित्र बन भारत को स्वर्ग बना देते हो इसलिए शिव-शक्ति भारत-माता गाई हुई है। तुम जानते हो – बाबा पवित्रता की मदद से भारत तो क्या, सारी दुनिया को पवित्र बनाते हैं। जो-जो पवित्रता की अंगुली देते हैं, मनमनाभव रहते हैं, वही मददगार हैं। इसका अर्थ भी तुम समझते हो। यह दादा भी नहीं समझते थे। इनके बहुत गुरू किये हुए हैं। शास्त्र पढ़े हुए हैं। तब बाबा कहते हैं मामेकम् याद करो। मैं ही तुम्हारा सब कुछ हूँ। गति-सद्गति दाता हूँ। मनुष्य तो पतित हैं। अब तुम आये हो शिवबाबा के पास, ब्रह्मा द्वारा वर्सा लेने। इस निश्चय बिगर कोई आ न सके। आकर और ही अशान्ति फैला देंगे। तुम भारत को सुप्रीम शान्ति में ले जाते हो। यह है स्थापना का कार्य, जो मनुष्य कर न सके। तुम भी शिवबाबा की मदद से कर रहे हो। तुमको भी प्राइज़ क्या मिलती है? स्वर्ग के मालिक बनते हो। ऐसे बाबा के बनते भी फिर निश्चय-बुद्धि नहीं हैं तो माया एकदम हप कर लेती है। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) इस एक जन्म में पुरानी दुनिया से सन्यास कर बाप का मददगार बनना है। पवित्रता की अंगुली देनी है और मनमनाभव रहना है। 2) भारत को सुप्रीम शान्ति में ले जाने की सेवा करनी है। इस शरीर से डिटैच हो बाप की याद में रहकर शक्ति लेनी है। शान्ति का दान देना है। वरदान:- सदा बाप समान बन अपने सम्पन्न स्वरूप द्वारा सर्व को वरदान देने वाले वरदानी मूर्त भव भारत में विशेष देवियों को वरदानी के रूप में याद करते हैं। लेकिन ऐसे वरदानी मूर्त वही बनते हैं जो बाप के समान और समीप रहने वाले हों। अगर कभी बाप समान और कभी बाप समान नहीं लेकिन स्वयं के पुरुषार्थी हैं तो वरदानी नहीं बन सकते क्योंकि बाप पुरुषार्थ नहीं करता वो सदा सम्पन्न स्वरूप में है। तो जब समान अर्थात् सम्पन्न स्वरूप में रहो तब कहेंगे वरदानी मूर्त। स्लोगन:- याद की तीव्र दौड़ी लगाओ तो बाप के गले का हार, विजयी मणके बन जायेंगे। #Hindi #bkmurlitoday

  • English - BK murli today 1 May 2018

    Brahma Kumaris murli today in English for 1 05 2018 - BapDada -Madhuban - Essence: Sweet children, you are spiritual social workers. You have to serve Bharat to make it into heaven and make the land of sorrow into the land of happiness. Question: In which aspect do you Brahmin children become experts at the confluence age? Answer: You have now become experts at fulfilling the desires of all human souls. Human beings desire to attain liberation or liberation-in-life and you have to fulfil that desire. You have to show everyone the path to peace. Peace is not found in the forests, but the original religion of souls is peace. Become detached from your bodies and remember the Father and you will receive the inheritance of peace and happiness. Song:Look at your face in the mirror of your heart, o man! Om shanti. The unlimited Father explains to His long-lost and now-found children, the ones who know the Father and have taken refuge with Him. It is said: God, I have come to seek refuge with You. Refuge is taken when the Father comes and explains to you children. Devotees seek refuge with God because, everyone here is unhappy. Bharat is the land of sorrow; they continue to cause sorrow for one another. The Father has explained that this is your gathering of swans. No one except pure children can come here. The Father explains: Children, pure Bharat is called the land of happiness. No other land can be called the land of happiness. Bharat becomes the land of happiness and Bharat becomes the land of sorrow. People of Bharat are very unhappy because they are impure. However, no one explains these things to them. The Father explains: Sannyasis are pure and they leave their homes and families but they themselves sing: The Purifier is Rama who belongs to Sita. You have now come to the Purifier Father. The one Supreme Father, the Supreme Soul, purifies the whole world. Human beings cannot purify human beings. This is the impure world; not a single person is pure. They say: O Supreme Father, Supreme Soul! Then they say that God is omnipresent. Shivohum, tattwam! (I am Shiva, and the same applies to you.) All the poor helpless people have forgotten the Father. When a person is drunk, then, even though he may have gone bankrupt, he is very deeply intoxicated with alcohol. In the same way, people don’t know that it is these vices that make them impure. This is why, in order to become pure, sannyasis leave their homes and families. However, that is the path of isolation. The Father has come here. Those who have been unhappy for half a cycle come here and take refuge. It is Maya that makes you unhappy. Everyone is greatly diseased with the five vices. Ravan has made human beings into complete devils. When this land completely becomes the land of sorrow, the Father comes and establishes the land of happiness. You are spiritual social workers. The Father makes you do service: Children, make this Bharat into heaven. Everything depends on yoga. If someone stayed in yoga very well for seven days, it would be a wonder. Generally, hardly anyone is able to stay in yoga. They remember their homes or their minds wander everywhere. “Seven days” are very well known; they hold readings of the Gita, the Bhagawad, the Granth etc. for seven days. This system is one of this confluence age. You have to stay in a bhatthi for seven days. No one should be remembered. Your yoga should be connected to the one Father alone. It is very difficult to stay in this stage constantly for seven days. The memorial of you children is also here. You are now sitting beneath the tree and doing the tapasya of Raja Yoga. There is Jagadamba and also you children. You are the ones who fulfil all the desires of all human beings for heaven, that is, you are those who give the fruit of liberation and liberation-in-life. You are experts. No one in the world knows what liberation or liberation-in-life is. They don’t know who gives it or who can make everyone in the impure world pure. Sannyasis leave their homes and families for peace and go into the forests, but they cannot find peace. The original religion of souls is peace and yet people search for it outside. No one knows that the original religion of souls is peace. (The example of the queen’s necklace.) Those are your organs, and you can make them work or not. I, the soul, detach myself from this body, just as souls become detached at night. The soul forgets everything; that is called sleep. Here, you simply sit in peace. The soul says: Having made the physical organs work, I have become tired. Achcha. Detach yourself from your body. Those are your organs to work with. Only the Father gives you this knowledge. Detachyourself and sit down. Don’t say anything. However, for how long would you sit detached in that way? You know that no one can stay without performing actions. You become detached, but you also need the benefit of that. If you only detach yourself, there would not be that much benefit. Detach yourself and remember Me and you will be benefited and receive power. The Father explains to His children: Children, this is the court of the knowledge of Indra. All of you sitting here are jewels. If anyone with a stone intellect sits here, he would spoil the atmosphere because he would not stay in remembrance of Shiv Baba. He would continue to remember his friends and relatives. You have to remember the Father constantly. This is not a common spiritual gathering. This is a big university. If an uneducated person sat in a medical college, he wouldn’t understand anything. He wouldn’t be allowed in. He wouldn’t be able to understand anything by simply observing. Nor can impure, vicious human beings understand this knowledge. This is why such people are not allowed here. If they come to class to listen to a lecture , they wouldn’t be able to understand anything. This is a university to change from dirty beings into clean and pure deities. No such beings are allowed here just like that. They cannot know the Father. The Father is incognito. You know that you have taken refuge with the unlimited Father in order to claim the inheritance of constant happiness from the Father. The Father Himself says: This body of Brahma is the last one of many births and is in its stage of retirement. This one has also studied many scriptures. I am now telling you the essence of all the Vedas and scriptures through this one. They have shown the scriptures in the hands of Brahma. They show Brahma emerging from the navel of Vishnu. It has been explained how Brahma emerges from the navel of Vishnu and how Vishnu emerges from the navel of Brahma, how Brahma and Saraswati become Lakshmi and Narayan and then, having completed their 84 births, how they become Brahma and Saraswati at the end. They have then shown Nehru emerging from the navel of Gandhiji. There is no ocean of milk here. This is the ocean of poison. They show an ocean of milk in the golden age. You children know that Maya made you unhappy for half the cycle. No other place is as unhappy as Bharat. No other place can be as happy as Bharat either. The Father says: The deity religion has to disappear. Only then do I come and once again establish the new religion. It is truly being established now. You children have come and are claiming your inheritance from the Father. You know who rules in heaven. In their childhood they are Radhe and Krishna and they then become Lakshmi and Narayan. The Father has now come. Lakshmi and Narayan are studying with different names and forms. The ugly form of Shri Krishna is sitting here. The Father takes this one across to the other side. In the scriptures, they have shown Krishna being carried in a basket across to the other side. Shiv Baba has now come. He seats you children on His eyelids and makes you into the masters of heaven. The Father teaches the whole clan and then takes them from the land of Kans to the land of Krishna. It is not a question of just one. He removes all of you from the land of Ravan, He seats you on His eyelids and takes you to the land of happiness. I have come to enable you children to reach heaven. This old world will then be destroyed. They have mentioned the war in the scriptures. However, they don’t understand anything. This Dada has also studied many scriptures. Baba says: Now forget all of them and constantly remember Me alone. I am the Satguru of all. The iron age is called the land of Kans and the golden age is called the land of Krishna. I am now taking you from the land of Ravan to the land of Rama, the land of Krishna. Will you go to the land of happiness, the land of Krishna? They sing: Chant the name of Radhe-Govinda. That is the path of devotion. You are now once again becoming Radhe and Govinda. Now you have neither of the two crowns – neither the crown of light nor of the kingdom. Only those who are pure are given a crown of light. Lakshmi and Narayan are ever pure. They never have to renounce anything. Sannyasis take birth, then renounce their homes and families in order to become pure. You have renunciation in this one birth for 21 births (of purity). They don’t become pure for 21 births. They take birth to vicious ones, they become impure and then they leave home in order to become pure. That is rajoguni renunciation. The Father says: I am knowledge-full ; k nowledge-full, blissful – I alone have the full knowledge. I give you children the full knowledge of the subtle region, the incorporeal world and the corporeal world and the beginning, the middle and the end of the world through which you become full. Deities are full. You children have come into the lap of the Father. You know that you are following shrimat and are once again claiming your fortune of the kingdom. This is a game of victory and defeat. Those who are defeated by Maya are defeated by everything. Those who conquer Maya conquer everything. You have yoga with the Almighty Authority Father, you take power from Him and gain victory over Maya. You understand that your drama of 84 births is now coming to an end. We are once again claiming our fortune of the kingdom. Lakshmi and Narayan are shown in an ocean of milk. This is the ocean of poison. Radhe and Krishna are young children. People rock Krishna in a cradle with a lot of love because they believe that he was the prince of heaven. Krishna is said to be 16 celestial degrees full and Rama 14 degrees. That same Krishna also becomes 14 degrees from 16 celestial degrees full; he has to take rebirth. Baba has explained that not everyone takes the full 84 births. Those of other religions do not take 84 births. These things have to be understood. You definitely have to receive your inheritance from the Father. He is the Creator of heaven, and so He would surely make you into the masters of heaven. That Father resides in the supreme abode. We too come from there. You have to remember Baba very well. You will receive peace by having remembrance. People ask: How can we have yoga with Supreme Soul? They become confused. You have received this full understanding. The Father comes at the confluence of the land of sorrow and the land of happiness. The end of the iron age is the land of sorrow, and the beginning of the golden age is the land of happiness. Only the Father removes you from the land of sorrow and makes you sit in the land of happiness. This is a matter of understanding. No one without purity can study this knowledge. That is why impure ones are not allowed to sit here. You have to explain: You have been greatly diseased for half the cycle. Maya has made you greatly diseased and this is why you are first kept in a bhatthi. You children know the occupation of everyone. When you go to a Shiva Temple, you understand that that Baba is the Bestower of Liberation and Salvation. Bharat is the greatest pilgrimage place. However, they have put Krishna’s name in the Gita. They have made Shiv Baba’s name disappear. Shiv Baba Himself comes and liberates everyone from sorrow. The water of the Ganges is not the Purifier. That comes from the mountains. How can that be called the Purifier? That is called blind faith. Look what human beings continue to do! It is sung that no other birth is as valuable as a human birth. Your present birth, when the Father has come, is valuable. This is your most valuable birth. You become pure and make Bharat into heaven. That is why you Shiv Shaktis, you mothers of Bharat, have been remembered. You know that, with the help of purity, Baba makes not only Bharat, but the whole world, pure. Those who give their finger of purity and who remain “Manmanabhav” are helpers. You understand the meaning of this. This Dada didn’t understand at first either. He had adopted many gurus and studied many scriptures. This is why Baba says: Constantly remember Me alone. I alone am your everything. I am the Bestower of Liberation and Liberation-in-Life. Human beings are impure. You have now come to Shiv Baba to claim your inheritance through Brahma. No one can come here without this faith. If they did, they would spread even more peacelessness. You take Bharat into supreme peace. This is the task of establishment which human beings cannot carry out. You are doing this with Shiv Baba’s help. What prize do you receive? I make you into the masters of heaven. If, after belonging to such a Baba, your intellect doesn’t have faith, Maya completely swallows you. Achcha. To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. Essence for dharna: Renounce the old world in this one birth and become complete helpers of the Father. Give your finger of purity and remain “Manmanabhav”. Do the service of taking Bharat into supreme peace. Detach yourself from that body, stay in remembrance of the Father and take power from Him. Give the donation of peace. Blessing: May you become equal to the Father and through your perfect form of a blessed image grant blessings to everyone. In Bharat especially, goddesses are remembered as beings who grant blessings to everyone. However, only those who become equal to the Father and who remain close to Him become such images that grant blessings. If you are sometimes equal to the Father but not at other times and are just an effort-maker for yourself, you cannot then become an image that grants blessings because the Father does not make effort. He is constantly the Image of Perfection. When you are equal, that is, when you are in your form of perfection, you will then become one who grants blessing. Slogan: Run fast in the race of remembrance and you will become a victorious bead in the garland around the Father’s neck. #Murli #english

  • Time of God’s Descent for World Transformation

    When does God has to appear before us, and what does he come and do? Every aspect to the supreme being is NOW revealed.. Change has many stages. Everything in this world begins fresh and new, then it slowly grows old and decays, and finally it ends to begin anew. Thus see there is a constant cycle. The change that humanity has been waiting for for millennia is now happening. Every time humanity faced a social, moral or religious crisis, great souls emerged on earth to lead them towards a better future, closer to the truth of life, to the God. It is in times of moral decadence and social unrest that religious preceptors, prophets, messiahs and saints were born to deliver humanity from unrighteousness and suffering. However, in spite of all their efforts, the world has continued to fall deeper into the quagmire of immorality, unrighteousness and falsehood. The magnitude of human suffering has been compounded to extreme levels. Just as when a building becomes old and develops minor cracks it is repaired by skilled workers, but when it becomes very old and begins to fall apart, the builder pulls it down and builds it anew, the present world, in the Iron Age, has reached a stage of total decay. Now is not the time to talk about temporary fixes and change, but to bring about complete transformation. In perhaps the most famous passage in the Bhagavad Gita, God as represented by Shri Krishna is quoted as saying that He descends on Earth when unrighteousness reaches extreme proportions. God says that he comes to redeem all souls, destroy evil and re-establish a righteous order. But when in the history of this world does God perform this task? The passage in the Gita contains the words sambhavami yuge yuge, which has led people to believe that God’s descent takes place in each of the four yugas or Ages in the cycle of time. Is that the case? After some reflection it becomes clear that this is not possible. The cycle of time begins with the Golden Age, when both human souls and the elements of nature are in their purest state. In the Golden and Silver Ages all souls are happy and no one calls for God’s help. If God were to come at the end of both these Ages, then peace, prosperity and joy should continue and there should be no suffering. But pain and sorrow begin in the Copper Age, when humans lose the awareness that they are souls and begin to identify themselves with their bodies, which gives rise to vices such as lust, anger, greed and ego. As humans come increasingly under the influence of vices, their suffering increases. As the Copper Age gives way to the Iron Age, this process of degradation gathers pace – which would not have happened had God come to salvage humanity at the end of the Copper Age. Humans call out to God in times of sorrow and when things deteriorate beyond human tolerance. God, the redeemer, rejuvenator and remover of sorrow, then comes to restore peace and happiness in this world. God’s descent, thus, is meant to remove human suffering and rejuvenate the world. Finally, seeing that His children are unable to get out of the grip of vices and suffering, God comes to this world to remind them of their true, spiritual identity and their innate virtues. He also tells them about their relationship with Him and how they can regain their original, pure state by remembering Him. By this remembrance, souls fill themselves with power and virtues, gradually overcoming the influence of vices. Souls that make the effort to get cleansed in this way and attain a divine status become worthy of taking birth in the Golden Age that dawns after the Iron Age. All other souls are also liberated from sorrow in this process of change when God brings about the destruction of all evil and paves the way for the dawn of the Golden Age. In the entire cycle of time, it is only at the end of the Iron Age that this massive and positive process of world transformation takes place. It can only be carried out by God. During the rest of the cycle souls undergo a process of degradation – very slow in the beginning and faster as time goes by. It is only at the confluence of the Iron and Golden Ages, when God intervenes, that this process ends and there is a new beginning. One of the most quoted and famous verses of the Bhagavad Gita is this verse from Chapter 4 “Yada yada hi dharmansya glanirbhavti Bharatam abhuytthanam adharamasya tadatmaanaam srajamyham paritranayaye sadhunaam vinashaaya duskritam dharma sansthapanarthya...” According to this verse, God says that whenever there is decline of dharma or righteousness, He manifests Himself to destroy evil and re-establish the principles of dharma in every cycle of yugas or ages. In essence, God says that He manifests at the end of every cycle for the task of world transformation. He comes to transform the entire world from its degraded state to a pure, virtuous state .. (continues in next blog post) - See to know How God appears before us, among us.

  • First Avyakt Sandesh on 18 01 1969 morning through Dadi Gulzar

    18 जनवरी 1969 – पिताश्री जी के अव्यक्त होने के बाद – अव्यक्त वतन से प्राप्त दिव्य सन्देश" (गुलज़ार बहिन द्वारा) 1. आज जब हम वतन में गई तो शिवबाबा बोले - साकार ब्रह्मा की आत्मा में आदि से अन्त तक 84 जन्मों के चक्र लगाने के संस्कार हैं तो आज भी वतन से चक्र लगाने गये थे। जैसे साइंस वाले राकेट द्वारा चन्द्रमा तक पहुँचे - और जितना चन्द्रमा के नजदीक पहुँचते गये उतना इस धरती की आकर्षण से दूर होते गये। पृथ्वी की आकर्षण खत्म हो गई। वहाँ पहुँचने पर बहुत हल्कापन महसूस होता है। जैसे तुम बच्चे जब सूक्ष्मवतन में आते हो तो स्थूल आकर्षण खत्म हो जाती है तो वहाँ भी धरती की आकर्षण नहीं रहती है। यह है ध्यान द्वारा और वह है साइंस द्वारा। और भी एक अन्तर बापदादा सुना रहे थे - कि वह लोग जब राकेट में चलते हैं तो लौटने का कनेक्शन नीचे वालों से होता है लेकिन यहाँ तो जब चाहें, जैसे चाहें अपने हाथ में है। इसके बाद बाबा ने एक दृश्य दिखाया - एक लाइट की बहुत ऊँची पहाड़ी थी। उस पहाड़ी के नीचे शक्ति सेना और पाण्डव दल था। ऊपर में बापदादा खड़े थे। इसके बाद बहुत भीड़ हो गई। हम सभी वहाँ खड़े ऐसे लग रहे थे जैसे साकारी नहीं लेकिन मन्दिर के साक्षात्कार मूर्त खड़े हैं। सभी ऊपर देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन ऊपर देख नहीं सके। जैसे सभी बहुत तरस रहे थे। फिर थोड़ी देर में एक आकाशवाणी की तरह आवाज आई कि शक्तियों और पाण्डवों द्वारा ही कल्याण होना है। उस समय हम सबके चहरे पर बहुत ही रहमदिल का भाव था। उसके बाद फिर कई लोगों को शक्तियों और पाण्डवों से अव्यक्त ब्रह्मा का साक्षात्कार, शिवबाबा का साक्षात्कार होने लगा। फिर तो वह सीन देखने की थी कोई हसँ रहा था, कोई पकड़ने की कोशिश कर रहा था, कोई प्रेम में आंसू बहा रहा था। लेकिन सारी शक्तियाँ आग के गोले समान तेजस्वी रूप में स्थित थी। इस पर बाबा ने सुनाया कि अन्त समय में तुम्हारा यह व्यक्त शरीर भी बिल्कुल स्थिर हो जायेगा। अभी तो पुराना हिसाब-किताब होने के कारण शरीर अपनी तरफ खींचता है लेकिन अन्त में बिल्कुल स्थिर, शान्त हो जायेगा। कोई भी हल- चल न मन में, न तन में रहेगी। जिसको ही बाबा कहते हैं देही अभिमानी स्थिति। दृश्य समाप्त होने के बाद बाबा ने कहा - सभी बच्चों को कहना कि अभी देही अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करो। जितना सर्विस पर ध्यान है उतना ही इस मुख्य बात पर भी ध्यान रहे कि देही अभिमानी बनना है। 2. आज जब मैं वतन में गई तो बापदादा हम सभी बच्चों का स्वागत करने के लिए सामने उपस्थित थे। और जैसे ही मैं पहुँची तो जैसे साकार रूप में दृष्टि से याद लेते थे वैसे ही अनुभव हुआ लेकिन आज की दृष्टि में विशेष प्रेम के सागर का रूप इमर्ज था। एक-एक बच्चे की याद नयनों में समाई हुई थी। बाबा ने कहा याद तो सभी बच्चों ने भेजी है, लेकिन इसमें दो प्रकार की याद है। कई बच्चों की याद अव्यक्त है और कईयों की याद में अव्यक्त भाव के साथ व्यक्त भाव मिक्स है। 75 बच्चों की याद अव्यक्त थी लेकिन 25 की याद मिक्स थी। फिर बाबा ने सभी को स्नेह और शक्ति भरी दृष्टि देते गिट्टी खिलाई। फिर एक दृश्य इमर्ज हुआ - क्या देखा सभी बच्चों का संगठन खड़ा है और ऊपर से बहुत फूलों की वर्षा हो रही है। बिल्कुल चारों और फूल के सिवाए और कुछ देखने में नहीं आ रहा था। बाबा ने सुनाया - बच्ची, बाप- दादा ने स्नेह और शक्ति तो बच्चों को दी ही है लेकिन साथ-साथ दिव्य गुण रुपी फूलों की वर्षा शिक्षा के रूप में भी बहुत की है। परन्तु दिव्य गुणों की शिक्षा को हरेक बच्चे ने यथाशक्ति ही धारण किया है। इसके बाद फिर दूसरा दृश्य दिखाया - तीन प्रकार के गुलाब के फूल थे एक लोहे का, दूसरा हल्का पीतल का और तीसरा रीयल गुलाब था। तो बाबा ने कहा बच्चों की रिजल्ट भी इस प्रकार है। जो लोहे का फूल हैं - यह बच्चों के कड़े संस्कार की निशानी थे। जैसे लोहे को बहुत ठोकना पड़ता है, जब तक गर्म न करो, हथोड़ी न लगाओ तो मुड़ नहीं सकता। इस तरह कई बच्चों के संस्कार लोहे की तरह है जो कितना भी भट्टी में पड़े रहें लेकिन बदलते ही नहीं। दूसरे है जो मोड़ने से वा मेहनत से कुछ बदलते हैं। तीसरे वह जो नैचुरल ही गुलाब हैं। यह वही बच्चे हैं जिन्होंने गुलाब समान बनने में कुछ मेहनत नहीं ली। ऐसे सुनाते- सुनाते बाबा ने रीयल गुलाब के फूल को अपने हाथ में उठाकर थोड़ा घुमाया। घुमाते ही उनके सारे पत्ते गिर गये। और सिर्फ बीच का बीज रह गया। तो बाबा बोले, देखो बच्ची जैसे इनके पत्ते कितना जल्दी और सहज अलग हो गये - ऐसे ही बच्चों को ऐसा पुरुषार्थ करना है जो एकदम फट से पुराने संस्कार, पुराने देह के सम्बन्धियों रूपी पत्ते छट जायें। और फिर बीजरूप अवस्था में स्थित हो जायें। तो सभी बच्चों को यही सन्देश देना कि अपने को चेक करो कि अगर समय आ जाए तो कोई भी संस्कार रूपी पत्ते अटक तो नहीं जायेंगे, जो मेहनत करनी पड़े? कर्मातीत अवस्था सहज ही बन जायेगी या कोई कर्मबन्धन उस समय अटक डालेगा? अगर कोई कमी है तो चेक करो और भरने की कोशिश करो।

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