आईये अब हम ‘ओम शान्ति' महा-मंत्र का सत्य व यथार्थ अर्थ जानते हैं। आपने देखा होंगा कि जो जन ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय से जुड़े हैं वे एक दूसरे को 'ओम शांति' कह कर मिलते और अभिवादन करते हैं। और यह दो शब्दों का अर्थ है 'मैं शांत स्वरुप आत्मा हूँ' व 'मेरा स्व-धर्म शांति है'। ओम का यहाँ सामान्य सा अर्थ है 'मैं' और शांति अर्थात शांत अवस्था, व इसके संदर्भ में स्व-धर्म।
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Also read English version: Om Shanti meaning
➥ वास्तव में ॐ शांति... शांति... शांति... भारत का प्राचीन मंत्र है जिसे अक्सर सतसंग में, यज्ञ में और भोजन से पहले बोला जाता है। अगर आपने स्कूली शिक्षा भारत से ली है, तो आपको अवश्य ही पता होगा कि प्राथमिक विद्यालयों में दोपहर भोजनावकाश (lunch-break) के समय भोजन परोसने से पहले भी यह गाया जाता है। इस वाक्यांश का २३००-वर्ष-पुरानी प्रार्थना 'असतो माँ सद्गमय' में भी पता लगाया जा सकता है। यह प्रार्थना परमात्मा से आने का निवेदन करती है कि वे आएं और शांति,अविनाशी ज्ञान व धर्म की दुनिया पुनः स्थापन करे। परन्तु वास्तव में इसका अर्थ आत्मा के सम्बन्ध में है , नाकि देह के। आइये अब विस्तार में अन्वेषण करे।
ओम शांति - मेरा मूल धर्म शांति है
अधिक सटीक रूप से, 'ओम शांति' वाक्यांश का उपयोग हमें यह याद दिलाने के लिए है कि 'शांति' हमारा मूल धर्म है। यह हमारे परम पिता (परमात्मा) का व्यक्तित्व है और हम सभी आत्माएं शांति का प्रतीक हैं। यह जानते हुए कि मनुष्य सच्ची शांति, सच्चा प्यार, और सच्ची खुशी की तलाश में व्याकुल है, परमात्मा पिता आते हैं और हमें याद दिलाते हैं कि वास्तव में ये आपके स्वाभाविक गुण हैं। अधिक जानिए : आत्मा के ७ गुण
"जिस शांति या प्रेम को आप बाहर खोज रहे हैं वह वास्तव में आपके भीतर ही है।"
तुम शांति हो -हम प्रकृति को याद दिलातें हैं
व्यापक रूप में, जब हम अनुभव करते हैं कि 'मैं शांत हूँ', है, तो हम वही स्पंदन (वाइब्रेशन) ब्रह्मांड में भेजते हैं। हम पूरे अस्तित्व को याद दिलाते हैं कि 'आप शांति हैं'। प्रत्येक आत्मा का स्वाभाविक स्वरुप शांति है, जैसे इस भौतिक शरीर के बिना, एक आत्मा अपने आप में एक पवित्र चेतना बिंदु शक्ति है। भगवान कहते हैं: "सब कुछ एक जैसी वाइब्रेशन से बना है, जिसे आप शांति, प्रेम या आनंद कहते हैं ... इस प्रकार, हम नदियों, समुद्र, पहाड़ों, पेड़ों, आकाश और पृथ्वी, जानवरों और पक्षियों और सामान्यतः पूरे विश्व को यही स्मरण कराते हैं। एक योगी आत्मा का शक्तिशाली स्पंदन निश्चित रूप से विश्व के हर कोने तक पहुंचता है। जैसा ही हम दुनिया को उसकी मूल स्थिति की याद दिलाते हैं, परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। प्रत्येक जीवित प्राणी या निर्जीव वस्तु हमारी चिन्तन की शक्ति का उत्तर देते है। क्या आप यह जानतें हैं कि पौधे जैसी निर्जीव वस्तु भी पूरी तरह से विकसित हो जाती है यदि उच्च शक्ति चिन्तन, जैसे कि प्रेम और शांति, दिए जाएं तो, जबकि कम ऊर्जा के विचार, जैसे घृणा या अपवित्रता, से जल्दी ही मर भी जाते हैं। यह हमारे विचारों की ही शक्ति है जिसे अब हम रचनात्मक (परमात्मा के निर्देशानुसार) तौर पर नई दुनिया बनाने के लिए उपयोग कर रहे हैं।
'ओम शांति' शब्द का मुरली से सम्बन्ध
साकार मुरलियाँ (प्रजापिता ब्रह्मा के साकर/भौतिक माध्यम से शिव बाबा द्वारा बोली जाने वाली मुरली) के संबंध में, 'ओम शांति' मौलिक शब्द है जिसे बाबा प्रत्येक मुरली की शुरुआत और अंत में बोलते थे। आप वास्तविक मुरली (स्वयं ब्रह्मा बाबा की आवाज़ में) भी सुन सकते हैं।
एक अव्यक्त मुरली में, बापदादा ने कहा:
"जितनी सरलता से आप आवाज़ में आते हैं और शब्दों का उपयोग कर बोलते हैं, उतनी ही आसानी से आप मौन में रहने और अपनी संकल्प शक्ति व योग शक्ति के माध्यम से संदेश देने का अभ्यास कर सकते हैं।"
✱स्पष्टीकरण: हम शब्दों/भाषा द्वारा अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं। यही है आवाज में आना। लेकिन आत्मा विचारों के द्वारा संदेश पहुंचा सकती है। यहाँ मौन रहने का अर्थ बोलना बंद करना नहीं है, बल्कि बोलते या बातचीत में आते समय और अपने दैनिक कार्यों को करते समय, हमारी आंतरिक स्थिति शांत होनी चाहिए। बुद्धि स्थिर और मन शांत, ऐसी आत्मिक स्थिति में, यदि कोई आत्मा किसी अन्य आत्मा को विचार भेजती है, तो यह मौन की शक्ति को बढ़ाता है। प्रेम और शांति आत्मा की भाषा है। इस प्रकार बाबा हमें प्रेरित करते रहते हैं कि हम स्वयं के 'आत्मा' होने की अनुभूति से और अधिक जागरूक हो जाएँ।
Useful Links
Revelations from Murli (advance)
राजयोग का कोर्स (online)
General Articles (Hindi & English)
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