Murli related questions and answers - PART 5. इस PART (भाग) में ३ प्रश्न लिए गए है.
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प्रश्न १ (Question 1)
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''Kuchh dino se yog ni ho raha Yog nahi lag raha. Samajh nahi aa raha. Kahin bhi man ni lg raha... Kya karu?''
* उत्तर (+ Guidance): ओम शांति। हमारे पूर्व संचित विकर्म ही हमारी आत्मा को बोझिल करते है, जिससे सहज योगयुक्त अवस्था का निर्माण नही हो पाता। और दूसरा, हमारा अनियमित ब्राह्मण जीवन की मर्यादाएं जैसे अमृतवेला का मिस करना, मुरली मिस करना, अन्न दोष और संग दोष के कारण भी मेजोरिटी आत्माओ की स्थिति हलचल में रहती है। मुख्य रूप से अन्न दोष और संग दोष ही सबसे मुख्य है, जिस कारण अमृतवेले से लेकर कोई भी अन्य धारणा नही हो पाती।
कहते है, जैसा होगा अन्न वैसा होगा मन ; जैसे होगी दृष्टि वैसी होगी वृति; जैसा होगा पानी वैसी होगी वाणी। अन्न से मन का डायरेक्ट कनेक्शन है। इसलिए योगयुक्त विधि से बनाये हुए भोजन को योगयुक्त अवस्था मे खाने से मन की अनेको बीमारी समाप्त हो मन शक्तिशाली होता है। और जब मन शक्तिशाली होगा तो उसके संकल्प भी पावरफुल और पॉजिटिव होंगे, जिससे योगयुक्त अवस्था का निर्माण करना सहज हो जाएगा। .. इसलिए आप मुख्य अन्न और संग की संभाल करने पर विशेष ध्यान केंद्रित करें। सात्विक अन्न के संबंध में तो आप को ज्ञात होगा ही। और संग दोष में नेगेटिव और व्यर्थ चिंतन, परचिन्तन, परदर्शन और प्रदर्शन करने वाली आत्माओ से स्वयं की संभाल करना है। इसके लिए खाली समय मे उस दिन के मुरली के सार, वरदान, स्लोगन का चिंतन करना या विशेष आप के लिए बाबा ने जो बात कही है, उस पर विचार मनन करे। अमृतवेले में अगर योग की स्थिति नही बन पा रही हो तो बाबा का कोई सुमधुर गीत ही लगा कर सुने या बाबा से मीठी रूह-रिहान करे या ब्राह्मण जन्म लेते ही मीठे बाबा ने आप को जो भी प्रत्यक्ष यादगार अनुभव कराए है, उनकी स्मृति करे अर्थात अपने ज्ञान के बचपन के दिन को याद करे। इससे भी आप का बाबा से कनेक्शन आसानी से जुड़ सकेगा। . ओम शांति .
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प्रश्न २ (Question 2)
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Om shanti. Chandra Grahan aur surya Grahan kya ye Grahan brahman atmayo ko bhi prabhavit krte h. Please btaye. * उत्तर : हांजी बहन। मुख्य रूप से ये सूर्यग्रहण और चंद्र ग्रहण , जिसे विशेष भारत वर्ष में बहुत महत्व देते है, उसका प्रत्यक्ष रूप से कनेक्शन हम ब्रह्मामुखवंशावली ब्राह्मणों से ही है । हम ब्राह्मण सो देवी-देवता धर्म की आत्माये ही समस्त मनुष्य जाति की आत्माओ के पूर्वज है। हम सतयुगी सूर्यवंशी और त्रेतायुगी चंद्रवंशी घरानों की आत्माये जब द्वापर में वानमार्गी हो जाते है अर्थात हमारे कुल पर विकार रूपी कलंक का ग्रहण लग जाता है तो परोक्ष-अपरोक्ष रूप से हमारी वंश बेल भी इस विकार रूपी ग्रहण से अछूती नही रह पाती।
इसलिए ज्ञान की गुह्यता के आधार से ऐसा समझ सकते है कि ये सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण हम सूर्यवंशी और चंद्रवंशी घराने की आत्माओ को कलयुग अंत तक ग्रसित करती है । परंतु संगम पर जब ज्ञानसूर्य शिवबाबा से हमारा यथार्थ और डायरेक्ट परिचय और कनेक्शन हो जाता है तो हम महावीर हनुमान बन जाते है और फिर राहु केतु जैसे विकार रूपी ग्रहण हमारा कुछ नही बिगाड़ सकते। ... परंतु ये ध्यान रखे कि इस संगमयुगीन ब्राह्मण जीवन मे भी जैसे ही हमे अपने स्वरूप की विस्मृति होगी, वैसे ही ये राहु केतु वा माया रावण रूपी विकार वा ग्रहण हम ब्राह्मणों को पुनः लग जायेगी। इसलिए ही बाबा हमे सदा देह अभिमान से दूर आत्मिक स्थिति में बापदादा से कंबाइंड होकर रहने का डायरेक्शन देते है। ओम शांति
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प्रश्न ३ (Question 3)
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भटकती आत्मा होती है वो क्यों दूसरे शरीर मे प्रवेश करती है ? क्या हम पहचान सकते है ? उसका इलाज क्या है उस शरीर से बाहर निकालने के लिए ?
* उत्तर:
किसी भटकती आत्मा के किसी भी दूसरे मनुष्य के शरीर मे प्रवेश का कारण मेजोरिटी उस मनुष्यात्मा से उसका पिछला कार्मिक अकाऊंट है। और दूसरा किसी प्रकार की स्थूल भासना लेने के लिए भी कोई भटकटी रूह अपने हिसाब किताब वाली मनुष्यात्मा के शरीर का आधार लेती है। जब कोई भटकती आत्मा किसी के शरीर मे प्रवेश करती है, तो उस मनुष्यात्मा की एक्शन एक्टिविटी, बोल, चाल में एकाएक बहुत परिवर्तन आ जाता है, जिससे सहज पता लगाया जा सकता है कि ये मनुष्यात्मा किसी रूह की परकाया प्रवेश से ग्रस्त है।
भक्तिमार्ग में तो ओझाई, झाड़-फूंक द्वारा ऐसी आत्मा को बाहर निकालते है। लेकिन हम ज्ञान मार्ग की आत्माये शायद ऐसा नही कर सकती। पर पावरफुल योग स्थिति द्वारा ऐसी मनुष्यात्मा से बात करना और उसके प्रवेश का कारण जानकर उसका निदान करना या उस मनुष्यात्मा प्रति संगठित योग विधि द्वारा पवित्रता की ऑरेंज और शक्ति की लाल किरणों से उसको पावरफुल सकाश देने की विधि द्वारा उसका निदान किया जा सकता है। क्योंकि इस विधि द्वारा परकाया प्रवेश की हुई आत्मा स्वयं को मुक्ति का अनुभव करती है, लिहाज़ा वो अत्यंत सरलता से बिना उस व्यक्ति को कोई नुकसान पहुचाये, सदा के लिए छोड़ देती है। ओम शांति...
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