Murli Kavita. Part 1 of 2. This is a collection of Hindi poems from Shiv baba's Gyan Murli. These poems are being daily written by BK Mukesh ji (Rajasthan, India). If you like, do SHARE to other BKs.
कविता 1 - Poem 1 of 5
* ईश्वरीय ज्ञान का चमत्कार *
ईश्वरीय ज्ञान करता हमारे जीवन का श्रेष्ठ श्रृंगार
धारण करे हर कोई इसे अपनी क्षमता अनुसार
युग युग में इस ज्ञान का स्वरूप बदलता रहता
यही ज्ञान आत्माओं का दिग्दर्शन करता रहता
बहती रहे ये ज्ञान सरिता सब इसमें नहाते जाएं
अपने संग औरों को भी लाभान्वित करते जाएं
इस जग में अज्ञानी होना सबसे बड़ा अभिशाप
अज्ञानी आत्माओं से होते ना जाने कितने पाप
ईश्वरीय ज्ञान गंगा से मिलते अविनाशी वरदान
यही ज्ञान धारण करके मानव बनते देव समान
बांटो सबको ज्ञान छोड़कर जात पात का भान
इस जग से मिटा दो अज्ञानता का नाम निशान
ईश्वरीय ज्ञान का सबसे बड़ा एक ही चमत्कार
विश्व शांति की कल्पना होती इससे ही साकार
* ॐ शांति *
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कविता 2 - Poem 2
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* प्यार की शक्ति *
खुद पर भरोसा रख तूँ खुदा का प्यार पायेगा
गम की तीखी धूप में वो छम से बरस जाएगा
चलना होगा तुझे दिल में रखकर सच्चा प्यार
बिना मतलब के करना होगा सब पर उपकार
कीमत नहीं कोई इसकी प्यार सदा अनमोल
प्यार के बदले प्यार मिले यही प्यार का मोल
लेकिन उम्मीद ना रख बदले में प्यार पाने की
इंसानों को परखना भी रीत इसी जमाने की
प्यार देने में भी तुझे देनी होगी कड़ी परीक्षा
लेकिन प्यार के सागर से मिलेगी तुझे सुरक्षा
यही कहना खुदा का देते जाना सबको प्यार
प्यार की शक्ति से बनेगा स्वर्ग ये सारा संसार
*ॐ शांति *
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कविता 3 - Poem 3
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* प्यार लुटाओ अमरता को पाओ *
शायद कल ना हो पाये तुम आज ही ये कर लो
जो भी अपने हैं उनको जी भर के प्यार कर लो
सुख के सुनहरे सपने देखकर सबको दिखाओ
सपने साकार करने की कोशिश में लग जाओ
जीवन के सहयात्रियों से अपनी प्रीत निभाओ
मौका ना छोड़ो कोई तुम सब पर प्यार लुटाओ
खबर नहीं जाने कब ये जीवन पूरा हो जायेगा
प्यार बांटने का अवसर फिर नहीं मिल पायेगा
घड़ियां बड़ी अनमोल इनको मत करना बेकार
नफरत मिटाकर जगाओ सबके लिए तुम प्यार
नफरत करते रहे अगर तो प्यार कभी ना पायेंगे
दीवारों पर टंगी धूल भरी तस्वीर ही रह जायेंगे
यदि आपस में जीवन भर सबसे प्यार निभायेंगे
आने वाली पीढ़ियों की यादों में अमर हो जायेंगे
*ॐ शांति*
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कविता 4 - Poem 4
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* संस्कारों का मिलान *
जैसी अपनी बुद्धि हो बात समझ वैसी ही आती
बुद्धि की भिन्नता से ही जीवन में समस्या आती
हर युग और काल में बुद्धि का अंतर चला आता
कलियुग अंत में ये अंतर खाई समान बन जाता
बेहद सृष्टि का झाड़ जब पूर्ण वृद्धि को पा जाता
ऐसे में बुद्धि का अंतर भी चरम पर पहुंच जाता
जितनी होगी जनसंख्या उतने ही अलग संस्कार
इसीलिये टकराते आपस में एक दूजे के संस्कार
दोष नहीं किसी का इसमें यह बना बनाया खेल
संस्कारों का आपस में पूर्णतः ना हो सकता मेल
चिंतन हो सकारत्मक अपना यही एक समाधान
योग में रहकर प्रभु से करो संस्कारों का मिलान
हर आत्मा जब प्रभु से अपने संस्कार मिलाएगी
संस्कारों की भिन्नता जड़ से समाप्त हो जायेगी
*ॐ शांति*
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कविता 5 - Poem 5
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* सतोप्रधान जीवन *
जीवन नहीं रुकता ये है अनवरत और गतिमान
इसकी गति को देख सकना इतना नहीं आसान
अति सूक्ष्म धीमी गति से जीवन अपना चलता
गहराई से देखें तो हर पल रूप इसका बदलता
परमधाम से आते यहां और वापस भी हम जाते
नया चक्र लगाने की खातिर जीवन फिर से पाते
इस जीवन यात्रा में भौतिक परिवर्तन भी आता
हमारी बुद्धि की सतोप्रधानता धीमे धीमे घटाता
सतो रजो तमो की प्रक्रिया हमेशा चलती जाती
मानव के संग पंच तत्व भी तमोप्रधान बनाती
आत्मा के गुणों का जब सन्तुलन बिगड़ जाता
पंच तत्वों का आक्रोश तभी सारे जग में छाता
तमो से सतोप्रधान बनना समझो नहीं आसान
आत्मबल से मिटाना होगा विकारों का तूफान
सतोप्रधान जीवन पाने की विधि यही अपनाना
प्रभु स्मृति द्वारा बुद्धि को सम्पूर्ण पावन बनाना
सतोप्रधान मानव जीवन सुख का मूल आधार
तत्वों को भी सतोप्रधान जीवन सहज स्वीकार
* ॐ शांति *
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Part 2 of Murli Poems in Hindi
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