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मुरली के शब्दों का अर्थ (Meaning of Words in Murli) Part 3 of 3


Meaning of words said in Gyan Murli by Shiv baba - मुरली के शब्दों का यथार्थ अर्थ l - Part 3 of 3

मुरली शब्दकोष (Murli Dictionary) में रोज की साकार मुरलियो मे आने वाले कठिन शब्दों का अर्थ सरल हिन्दी शब्दों में समझाने का प्रयास किया गया है। कठिन शब्द को कोई परिभाषा नहीं दी जा सकती। देशकाल भाषा की समझ ज्ञान -स्तर में भिन्नता होने के कारण हर किसी के लिए कठिन और सरल शब्द का मापदण्ड अलग अलग हो सकता है।अतएव शब्दों के चुनाव में सामान्यीकरण (common guide for everyone) पर विशेष ध्यान दिया गया है।

वर्तमान समय अनुसार मुरली में आये कठिन शब्दों के भावार्थ जानना आवश्यक हो जाता है। साकार मुरली के शब्दो पर यह हिन्दी स्पास्टीकरण आपके लिए उपयोगी साबित हो ऐसी आशा करते है।

Shiv Baba, Murli words

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शब्द सरल हिन्दी भाषा मे उसका अर्थ

121 . तकदीर को लकीर लगाना - भाग्य बनाने का सुअवसर खो देना

122 . ततत्वम् - तुम भी वही हो अर्थात तुम ही पूज्य थे और फिर तुम ही पुजारी बने।

123 . तत्‍ते तवे - गर्म तवे

124 . तत्त्वज्ञानी - जीवन/संसार के सार या मूल को जाननेवाला

125 . तदबीर - अभीष्ट सिद्धि करने का साधन/उक्ति/तरकीब/यत्न।

126 . तमोगुण - गुणों में सबसे निम्न स्तर (चार कला सम्पन्न कलियुग से/भारत मे अरबों के आक्रमण से शुरू)

127 . ताउसी तख्त - राज्य-भाग

128 . तिजरी की कथा - भक्ति मार्ग की सत्य नारायण की काल्पनिक कथा के मध्य में सुनाई जाने वाली कथा

129 . त्रिलोकीनाथ - तीनों लोकों का मालिक शिव परमात्मा

130 . दग्ध करो - खत्म करो

131 . दिलरूबा - वह जिसमें प्रेम किया जाए/प्‍यारा

132 . दिव्‍य चक्षु - ज्ञान का तीसरा नेत्र

133 . दुम - पूंछ, आत्मा के निकलते ही शरीर रुपी दुम छूट जायेगा

134 . दुस्‍तर - जिसे पार करना कठिन हो/ विकट/कठिन

135 . देवाला - जिसके पास ऋण चुकाने के लिये कुछ न बच गया हो/ जो सर्वथा अभाव की स्थिति में हो

136 . देही - देह को चलाने वाली/मालिक/आत्मा

137 . दो ताजधारी - संगमयुगी ब्राह्मण का और सतयुगी देवता दोनों के आभामंडल की लाइट का ताज धारण करना

138 . दोज़ख - नरक

139 . धणी - मालिक

140 . धरिया - धुरण्डी (होली के अगले दिन का एक त्यौहार)

141 . नंदीगण - बैल की प्रतिकृति जो शिवमन्दिर में होती है कलियुग अन्त में शिव बाबा जिन दो रथों/तन (ब्रह्मा बाबा व गुलजार दादी) का सहारा लेते हैं, यही नन्दीगण के प्रतीक

142 . नट शैल - सार रूप (सारांश)

143 . नब्ज देखना - जांच करना, सूक्ष्म चेकिंग करनी

144 . नम्बरवार - कोई होशियार कोई बुद्धू/क्रमोत्तर गिरती हुई स्थिति में होना।

145 . नष्टोमोहा - पुरानी दुनिया से मोह ममत्व का त्याग, निर्मोही स्थिति

146 . नामाचार - प्रसिद्ध/लोक विश्रुत

147 . नामी-ग्रामी - प्रसिद्ध करने वाला

148 . निधनके - जिसके माँ-बाप न हो

149 . निराकार सो साकार - साकार मे कर्म करते हुए अपने निराकार स्वरूप (stage) की स्मृति/याद में रहना

150 . निर्माण चित्त - जिसका मन निर्मल/साफ हो/निर्माण करने का जिसमें हृदय हो

151 . निर्लेप - जिस पर विकारों का लेप ना लगा हो/निर्विकारी स्थिति स्टेज

152 . निर्वाणधाम - आत्मा-परमात्मा का निवास स्थान/ब्रह्मलोक, मूलवतन भी कहते हैं

153 . निर्विकारी - विकार (बुराइयों) रहित (रजो, तमो से सम्बन्धित)

154 . निवृत्ति मार्ग - सांसारिक विषयों का किया जानेवाला त्याग, प्रवित्ति का अभाव होना, सांसारिक कार्यों के लगाव से परे

155 . नूँथ होना माला में पिरोया हुआ

156 . नूँध - पहले से लिखा हुआ

157 . नेष्टा - एक जगह शान्ति में बैठकर योग का अभ्‍यास कराना। वैसे नेष्‍ठा एक प्रकार की योग की अत्‍यन्‍त कठिन क्रिया है। नेष्‍ठ नेत्र और देहातीत बनाने वाली शक्‍तिशाली दृष्‍टि है।

158 . नैन चैन - आंख की हलचल व व्यवहार द्वारा

159 . नौंधा (नवधा भक्‍ति) - भक्‍तिमार्ग में भक्‍त ईश्‍वर का साक्षात्‍कार के लिये नौ प्रकार की भक्‍ति श्रवण, कीर्तन, स्‍मरण, पाद सेवन, अर्चन, वंदन, संख्‍य, दास्‍य और आत्‍मनिवेदन करता हुआ सर्वस्‍व ईश्‍वर पर न्‍यौछावर कर देता है। मुरली सन्‍दर्भ में भाव यह है कि तुम अपने सारे विकारों कादान कर शिव बाबा पर न्‍यौछावर होते हो जाओ तो तुम्‍हे भी साक्षात्‍कार होगा।

160 . न्यारा और प्यारा - सबसे न्यारा/अलग होते हुए भी सबका प्यारा होना

161 . पक्का महावीर - विजयी, सफल, दृढ़, सफलतामूर्त

162 . पत्थरना - थमाया/विकारों के वशीभूत

163 . पत्थरपुरी - कलियुगी/दिलोदिमाग पत्थर सदृश (पत्थर पूजे हरि मिले, तो.....)

164 . पथ प्रदर्शक - पैगम्बर/रास्ता दिखाने वाला/गाइड

165 . पदमापदम, पदमगुणा - गणित में सोलहवें स्थान की संख्या (१०० नील) जो इस प्रकार लिखी जाती हैं—१००,००,००,००,००,००,००० (१ नील - सौ अरब।) संगम पर किया हुआ पुराषार्थ पदमापदम/पदमगुणा फलदाई होता है।

166 . पद्मपति - जजअखुट सम्पत्ति (ज्ञान/योग/धन) का स्वामी

167 . परमधाम - आत्मा-परमात्मा का निवास स्थान

168 . परिस्तान - फरिश्तों की दुनिया/सतयुगी दुनिया

169 . पवित्रता - मन-वचन-कर्म से पावन, निश्छलता, स्वछता, चतुराई रहित, सरल, साफ, शुभ वृत्ति, शुभ विचार कामना या इच्छा रहित, निस्वार्थ

170 . पसारा - विस्‍तार से

171 . पाण्डव - जिनको ईश्वरीय नियम वा मर्यादाओं पर सम्पुर्ण निश्चय है और ईश्वरीय पार्ट को पहचान कर ईश्वरिय ज्ञान को जीवन मे धारण करते है वही सच्चे पांडव कहलाते है, परमात्मा भी इनके साथी बनते हैं।

172 . पारलौकिक - इस साकारी लोक या दुनिया से पार/बहुत दूर/सूक्ष्मलोक से भी ऊपर/दुनियावी रिश्तों से परे

173 . पारसनाथ - परमात्मा/पारस सदृश बनाने वाला

174 . पारसपुरी - स्वर्ग/सतयुग दिलोदिमाग जहाँ पारस पत्थर जैसा हो

175 . पित्र खिलाना - परम्परा से चली आ रही भारतीय रस्म जिसमें लोग मृत व्यक्ति की आत्मा को ब्राह्मणों के शरीर में आह्वान कर पितरों की इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास किया जाता है ।

176 . पुरूषार्थ - कर्म, वह मुख्य उद्देश्य या प्रयोजन जिसकी प्राप्ति या सिद्धि के लिए प्रयत्न करना आवश्यक और कर्त्तव्य हो।

177 . पैगामसन्देश

178 . पोतामेल - हिसाब-किताब, रोजनिशी, आत्मा जो मन वाणी कर्म द्वारा कार्य करे उसके रोज का हिसाब-किताब

179 . प्रकृतिस्व - भाव, तासीर, कुदरत।

180 . प्रजापिता - सभी मनुस्य आत्माओ का पूर्वज, जिनके द्वारा परमात्मा शिव रचना रचते है l

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