ब्रह्माकुमारी सेंटर में समय अनुसार हम ब्रह्माकुमार और कुमारीया यथाशक्ति योग के सकाश का सहयोग निमित सेवा स्थान से देते है। जानिए की योग का सकाश क्या है और इसमें ॐ ध्वनि व सात रंग का कैसे प्रयोग होता है और इसका अभ्यास कैसे हो।
यह सारा ज्ञान हमे परमपिता परमात्मा शिव ने प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा दिया है। अव्यक्त मुरलियो में सकाश देने की विधि बापदादा ने स्पस्ट समझायी है, फिर भी कहते है - हर किसी की अपनी अपनी विधि है।
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प्रश्न :
ओम ध्वनि और रंगों के साथ सकाश ना तो मुरलियों में आया है और ना ही वरिष्ठ भाई बहनों के क्लासेज में इनका कोई उल्लेख आता है ? आप का अनुभव क्या है ? क्या आप इसी रीती से सकाश देते हैं ?*
उत्तर : यदि आप स्मृतिस्वरुप बन गये हो तो इनकी आवश्यकता नहीं । जब तक नहीं बने हैं तब तक इनका सहारा लेना पड़ता है । सतयुग में तो परमात्मा की भी आवश्यकता नहीं पड़ती । यज्ञ की शुरुआत भी ओम की ध्वनी से हुई थी । जब हम *ओम शांति* बोलते हैं तो वह एक तो formality की रीती से हो सकता है जिससे कोई वास्तविक लाभ नहीं मिलता केवल ऊपर का दिखावा मात्र होता है l
दूसरा
ज्ञान युक्त होकर बोलते हैं जिससे स्वयं को और सामने वाले को आत्मिक स्मृति दिलाने के उद्देश्य से होता है यह फिर भी पहले वाले से उत्तम है क्योंकि यहाँ पर भी स्मृति युक्त होकर बोलते हैं
और तीसरा
जो सर्वोत्तम है वह है अनुभवयुक्त होकर बोलना इससे हम दूसरों को भी अनुभूति करा सकते हैं जो बाबा और दादीयाँ करती हैं । हर एक गुणों का रंग कोड होता है, विज्ञान भी इस बात को मानता है । रंग के आधार पर योग अनपढ़ भी कर सकते हैं । इससे और गहराई में अनुभूति कर सकते हैं क्योंकि बुद्धि द्वारा visualize करने में सुविधा होती है । फिर भी यह हर एक का व्यक्तिगत अनुभव है जिसे जैसा अच्छा अनुभव हो वैसा करें ।
ओम की ध्वनि के प्रभाव को भी विज्ञान स्वीकार करता है, ध्वनि का भी एक अलग विज्ञान है जो सिद्ध किया जा चुका है । ओम को बीज मंत्र कहा गया है । वेद शास्त्रों में किसी भी मंत्र की शुरुआत में या अंत में इसे अवश्य स्थान दिया गया है । हम ज्ञान में होने के कारण इसे केवल भक्ति की रीती से न करके इसे अर्थसहित स्मृति के साथ उच्चार करने से जरुर लाभ मिलेगा । जैसे ओम का अर्थ जो बाबा ने बताया है कि *मैं आत्मा हूँ* और साथ में गुणों को भी जोड़ देने से अच्छा प्रभाव होगा।
कॉमेंटरी (guided commentary)
मैं एक आत्मा हूँ। मैं गैर-भौतिक प्रकाश का एक बिंदु हूँ। मेरे भीतर से प्रकाश बाहर आ रहा है और सभी दिशाओं में फैल रहा है। मे स्वयं को इस शरीर से अलग आत्मा देख रही हू और महसूस कर रही हू। यह शरीर अलग है और मैं अलग हूं। मुझ आत्मा से निकलता शांति का प्रकाश सारे विश्व पर फैल रहा है l
जहाँ तक स्वयं के अनुभव का प्रश्न है मुझे vibrations की शुद्धिकरण में इन तीनों का अच्छा सहयोग मिला है
१) ओम ध्वनी
२) पाँच स्वरुप का अभ्यास
3) स्वमान अभ्यास
पाँच स्वरूप के अभ्यास के लिए यह 2 वीडियो है . 1. पाँच स्वरूप पर गीत: https://www.youtube.com/watch?v=8fPj2kP1bSw 2. पाँच स्वरूप की कॉमेंटरी (हिन्दी) - सूरज भाई: https://www.youtube.com/watch?v=_pJiawrxSVs
स्वमान अभ्यास के लिए कॉमेंटरी: http://bit.ly/Swamaan
समय समय पर जब भी मुझे जरुरत होता है मैं इनका सहयोग लेता हूँ और अनुभूति भी होती है । मुरलियों में जो भी आता है वह in general सभी बच्चों के लिए होता है क्योंकि सब कोई गुह्य ज्ञान अथवा भीतर के वैज्ञानिक पहलूओं को समझने का सामर्थ्य नहीं रखते । विशेष बनने के लिए विशेष गहराई में जाना पड़ता है और विशेष करना भी जरुरी हो जाता है ।
अंत में यही कहूंगा प्रत्येक भाई बहन अपनी अपनी गहराई और योग के प्रयोग द्वारा अनुभूति को सामने रख रहे हैं । उसमें से आप को अपनी प्रकृति और अवस्था अनुसार जो suit याने सुविधाजनक और लाभदायी हो वो फॉलो करें जैसे कभी कभी एक डॉक्टर की औषधि लम्बे काल तक लेने पर भी काम न करे तो बदलाव करना पड़ता है । मैं तो सभी का सहयोग लेकर अपना ही अलग विधि बनाकर स्वयं की संकल्प शक्ति और स्थिति के द्वारा सकाश को शक्तिशाली बनाने पर प्रयोग कर रहा हूँ ।
वायुमंडल का आधार वृत्ति पर, वृत्ति का आधार स्थिति और स्मृति पर होता है फिर वृत्ति अनुसार ही हमारी दृष्टि और कृति होती है । इसलिए स्मृति ( feelings ) और स्थिति ( stage of thoughts) के आधार पर ही सकाश की तीव्रता निर्भर करता है जो श्रेष्ठ और शक्तिशाली बनती है शिवबाबा की स्मृति अथवा याद से* । अभी आप अपना निर्णय स्वयं ले सकते हैं । ओम शांति .
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