Q : भाईजी आप २१ साल से ऊपर इस ज्ञान में हैं, कितने ही इस ज्ञान में आते हैं और फिर चले जाते हैं, तीन बार विनाश की तारीख फेल हो गयी, इस वजह से कितनों ने इस संस्था को छोड़ दिया, क्या आप का विश्वास नहीं डगमगाया, कृपया अपना अनुभव बतायें, इसके बाद भी आप इस संस्था में कैसे टिके हुए हैं ?* Visit: General Articles (Hindi and English)
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A: मैं जब भक्ति मार्ग में था तब बहुत किताबें पढ़ता था, अनगिनित किताबें पढ़ी होगी । डायरीयां भर गई और न जाने कितने प्रवचन सुने । ज्ञान के लिए भी जगह जगह भटका क्योंकि ज्ञान की सच्ची प्यास थी । परमात्मा को जानने के लिये सच्ची खोज थी । ब्रह्माकुमारी में तो मैं आना ही नहीं चाहता था क्योंकि यहाँ पर मुझे यकीन ही नहीं था कि इतने सहज और साधारण माहौल में परमात्मा का सत्य ज्ञान मिल सकता है । लेकिन ड्रामा अनुसार जिन्हें ( श्री कृष्ण) को में अपना इष्ट मानता था उनके बारे में जब इस संस्था में बताया गया कि ब्रह्मा बाबा का सतयुगी आदि जन्म ही श्री कृष्ण के रूप में होता है तो गहराई में स्पष्टिकरण और इन दोनों का कनेक्शन जानने के लिए सात दिवसीय कोर्स किया तब थोड़े ही पता था कि यहाँ ही सदा के लिए टिक जाऊँगा । वैसे देखा जाए तो टिकने का प्रमुख कारण है ज्ञान मुरली । विशेषतः मुरली में आये वो परमात्मा के स्नेहयुक्त बोल *“मीठे बच्चे, लाडले बच्चे, प्यारे बच्चे, महावीर बच्चे, दिलतख्तनशीन, गॉडली स्टूडेंट, नूरे रत्न, विजयी रत्न”* इत्यादि इत्यादि। इन शब्दों में समाया *रूहानी प्यार* ही मुझे इस संस्था से जोड़े रखा और अन्यत्र कही जाने से रोके रखा । यह *अव्यक्त ईश्वरीय पालना* ही मुख्य वजह बनी । ये शब्द मुझे संसार के किसी भी किताब में, संस्था में अथवा गुरु के मुखारविंद से सुनने को नहीं मिला । यदि मुरली के इन शब्दों अथवा ईश्वरीय महावाक्य से मेरा रूबरू ( सामना ) नहीं होता तो शायद यहाँ सदा के लिए नहीं टिकता । मुरली ही मुझमें वह बल भरती आ रही है जिससे में आगे बढ़ रहा हूँ । यूँ कहें वह मेरे ब्राह्मण जीवन का प्राणाधार है । आज तक जो इस ईश्वरीय संस्था से जुड़ा हूँ वह परमात्मा के *निःस्वार्थ, निर्मल निष्काम, निरहंकार प्रेम* के कारण, मुरली के सत्य मधुर वाणी के कारण, सच्चा गीता ज्ञान के कारण, पवित्रता की धारणा के कारण, बुद्धि की स्थिरता व सच्चे मन की शान्ति के कारण। यह केवल मेरी ही बात नहीं चाहे वह एक दिन का ही बच्चा क्यों न हो या कैसा भी संस्कार वाला हो *सभी के प्रति समान रूहानी दृष्टि एवं समानता का व्यवहार, आदरयुक्त रूहानी पालना, श्रेष्ठ कर्म व श्रेष्ठ पुरुषार्थ द्वारा उंच स्थिति और सर्वश्रेष्ठ भाग्य बनाने के लिए प्रेरणा देना* यह सभी गुण मैंने साधारण मानव तन में अवतरित परमात्मा में अनुभव किया । मुझे मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य एवं प्राप्ति का मार्ग यहाँ ही मिला जिससे जीवन में स्थिरता एवं परिपक्वता आयी । एक परमात्मा से ही सर्व संबंधों का रस एवं सर्वप्राप्ति होने से और व्यर्थ अथवा झरमुई झगमुई बातों (gossips) में मन जाता ही नहीं, सदैव ज्ञान चिंतन में व्यस्त रहना ही मुझे माया के प्रभाव से सेफ (safe) रखता है । रही बात औरों के स्वभाव संस्कार की इसमें पहले से ही मेरी रूचि नहीं रही इसलिये कौन भाई बहन क्या करते हैं, कितना ज्ञान को फॉलो करते हैं इस तरफ ध्यान न देकर स्वपुरुषार्थ पर ही फोकस किया । विनाश की डेट कितनी बार फेल हुआ या आगे भी होगा, श्री कृष्ण का जन्म कब होगा या सतयुग कब आएगा इन सभी प्रश्नों को भी अब ड्रामा पर छोड़ दिया है क्योंकि जो होगा वह तो अपने समय पर ही होगा और कल्याणकारी ही होगा जिसका पक्का राज़ तो ईश्वर ही जानता है किसी मानव आत्मा में वह सामर्थ्य नहीं । *देखा जाए तो वर्तमान समय ही हमारे सामने है जो सत्य है और अपने हाथ में है । इसलिये वर्तमान अनमोल पल को ज्ञान मंथन में सफल करना और परमात्मा से सर्वसंबंधों के रस की अनुभूति एवं सर्व प्राप्तियों के नशे में रह संतुष्टता का अनुभव करने में ही संगम समय का सार्थक होना समझता हूँ । चाहे बाबा साकार तन में आये या ना आये अव्यक्त मिलन के अनमोल घड़ी का सुख, कंबाइंड स्वरुप का आनंद पूरे संगमयुग में अनुभव करता रहूँगा ।* by BK Anil Kumar pathakau71@gmail.com
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