Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban -07-06-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन"
मीठे बच्चे-साइलेन्स के आधार पर तुम विश्व में एक धर्म, एक राज्य की स्थापना करते हो - यह है साइलेन्स का घमन्ड"
प्रश्नः- सारी दुनिया अपने आपको श्रापित कैसे करती और बच्चे कैसे करते ?
उत्तर:- सारी दुनिया भगवान को सर्वव्यापी कह अपने आपको श्रापित करती और बच्चे बाबा-बाबा कह फिर यदि काम अग्नि से स्वयं को भस्म करते तो श्रापित हो जाते। माया का थप्पड़ लग जाता है। बाबा कहते - हे मीठी लाडली आत्मायें, अब सतोप्रधान बनो, भस्मासुर नहीं।
ओम् शान्ति।बच्चे जानते हैं कि हम अभी अन्धियारे से रोशनी में जाते हैं। चन्द्रमा की रोशनी ऐसी है जैसे सूक्ष्मवतन। सूर्य निकलता है तो उसकी तपत (गर्मी) हो जाती है। चन्द्रमा शीतलता देता है। अब यह लाइट तो इन आंखों के लिए है। आत्मा को भी आंखे हैं। आत्मा को बुद्धि की आंखे मिलती हैं। आत्मा जानती है - बरोबर अभी बेहद के बाप को भी जानते हैं और इन आंखों से ब्रह्मा रथ जिसमें शिवबाबा प्रवेश करते हैं उनको भी जानते हैं। तुम बच्चों को पहचान हुई है। यह पहचान तब होती है जबकि सम्मुख मिला जाता है। नंदीगण, भागीरथ भी कहते हैं। नंदीगण हमेशा बैल को दिखाते हैं। भागीरथ फिर मनुष्य को दिखाते हैं। एक शंकर का चित्र दिखाते हैं, समझते हैं उनसे गंगा आई। अब पानी की गंगा तो है नहीं। यह अभी तुम जान गये हो। अभी तुम ब्राह्मणों को सभी शास्त्रों आदि का ज्ञान है। सभी वेदों, ग्रंथों, उपनिषदों आदि का तुम सार समझाते हो। कई बच्चियां हैं जिन्होंने कभी कोई शास्त्र आदि पढ़ा और सुना ही नहीं है। परन्तु सब वेदों शास्त्रों के सार को समझ रही हैं। अनपढ़ और ही पढ़े हुए से तीखे जाते हैं। अनपढ़े आगे पढ़े हुए भरी ढोयेंगे। नहीं तो अनपढ़े, पढ़े के आगे भरी ढोते हैं। यहाँ यह वन्डर है ना। कुछ नहीं पढ़े हुए सब वेद, शास्त्रों, धर्मों, भक्ति मार्ग के कर्म काण्डों को जानते हैं। मनुष्य वानप्रस्थ अवस्था में ही गुरू करते हैं फिर वह बैठ उन्हों को शास्त्र आदि सुनाते हैं। वे समझते हैं इनसे परमात्मा के पास जाने का रास्ता मिलता है। जैसे कोई पहाड़ी है, कहाँ से भी ऊपर चढ़कर जाना है। परन्तु ऐसे तो है नहीं। तुम जो कुछ नहीं जानते थे अभी सब कुछ जान गये हो। कुमारियों द्वारा ही परमपिता परमात्मा ने भीष्म पितामह आदि को ज्ञान बाण मरवाये हैं। दुनिया इन बातों को नहीं जानती। जगत अम्बा सरस्वती कुमारी है ना। बड़े-बड़े पण्डित सरस्वती सरनेम रखाते हैं। वास्तव में ज्ञान सागर से निकली हुई ज्ञान सरस्वती है मम्मा। बरोबर अभी कन्याओं में ताकत जास्ती आती है क्योंकि वह उल्टी सीढ़ी नहीं चढ़ी है। पुरुष जब शादी करता है तो स्त्री में मोह चला जाता है फिर माँ-बाप आदि सबसे मोह निकल स्त्री के मुरीद बन जाते हैं। फिर बच्चे पैदा करते हैं तो उनमें मोह चला जाता है। अभी तुम सबसे नष्टोमोहा बनते हो। अपने को आत्मा निश्चय करते हो। आत्मा का योग है बाप से, योग अर्थात् याद। तुम्हारी बात ही निराली होती है ना। कन्यायें तो पवित्र होती हैं। वह तीर्थ आदि नहीं करती क्योंकि हैं ही पवित्र। मनुष्य तीर्थों पर जाते हैं पाप काटने। समझते हैं गंगा पतित-पावनी है। पतित-पावन तो एक होना चाहिए ना। गंगा पतित-पावनी है तो फिर वहाँ क्यों जाते हैं। वहाँ देखने जाते हैं। कहते हैं तीर मारा फिर गंगा निकली। कुछ न कुछ गऊमुख आदि बनाकर रखते हैं। तो बाप बैठ समझाते हैं - बच्चे, तुम आत्मा हो। अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो। वह बाप भी है। सतगुरू भी है। मन्दिरों में कृष्ण के पांव दिखाते हैं। शिवबाबा को तो अपने पैर हैं नहीं क्योंकि उनको शरीर ही नहीं है जो कोई चरणों की धूल बनें। बाबा कहते हैं - बच्चे, तुमको शिवबाबा के चरणों की धूल नहीं बनना है। मैं इन सब कलियुगी रस्म-रिवाजों से तुम बच्चों को आकर छुड़ाता हूँ। मेरे चरण हैं नहीं। शिव को तो शरीर है नहीं। यह तो ब्रह्मा का तन है इसलिए तुम शिवबाबा की पूजा नहीं कर सकते। इस भाग्यशाली रथ में शिव आया है। भक्तिमार्ग में शिवोहम् कहने वालों पर फूल आदि चढ़ाते हैं। यह है सब भक्ति मार्ग की रस्म-रिवाज। अर्थ कुछ भी समझते नहीं। कहते हैं स्त्रियों को लिंग की पूजा नहीं करनी चाहिए। परन्तु वह कौन है - यह भी समझते नहीं। वास्तव में शिव कोई ऐसा लिंग रूप तो है नहीं। वह तो स्टार है, उनकी पूजा क्यों नहीं कर सकते। शिव माना ही है परमपिता परमात्मा कल्याणकारी। वास्तव में उनकी पूजा तो बहुत होनी चाहिए। शिव कल्याणकारी एक ही है। वही पतित से पावन बनाते हैं। सबका कल्याण करते हैं। जो पहले नम्बर में लक्ष्मी-नारायण थे वही 84 जन्म ले पतित बनें हैं तो सब पतित हो गये। सतोप्रधान से रजो तमो में सब आ गये हैं। सबका कल्याण करने वाला एक ही बाप ठहरा। इस समय मनुष्य सब पतित बने हैं। पहले आने से ही पतित नहीं होते हैं। पहले तो पावन होते हैं। यह बाप बैठ समझाते हैं - मेरे लाडले सिकीलधे बच्चे वा सालिग्रामों, सुनते हो बाप इस मुख से क्या कह रहे हैं? और कोई तो कह न सके। कोई भी सन्यासी आदि कह न सकें कि हम एवर पावन इस शरीर द्वारा तुम आत्माओं से बोल रहा हूँ। बाप ही कह सकते हैं। कई बाबा-बाबा कह कर भी फिर भस्मासुर बन जाते हैं। माया थप्पड़ लगा देती है तो अपने को भस्म कर देते हैं। काम अग्नि है ना। बाप आकर इस भस्मासुर-पने से छुड़ाते हैं। समझाते हैं - मीठे-मीठे बच्चे तुम मेरी सन्तान हो। तुम ब्रह्माण्ड में रहते हो। वहाँ तुम अशरीरी हो इसलिए कोई संकल्प विकल्प नहीं चलता है, फिर पार्ट में आते हो - यह भी ड्रामा बना हुआ है। अभी तुम्हारी प्रालब्ध खड़ी है। अभी तुम हो त्रिकालदर्शी। यह संस्कार तुम्हारे यहाँ ही प्राय:लोप हो जाते हैं। यह ज्ञान वहाँ नहीं रहेगा। जब तक यहाँ हो तो ज्ञान है। समझो कोई यहाँ से संस्कार ले जाते हैं वह फिर इमर्ज होते हैं तो उसी अनुसार इस शक्ति सेना में आकर दाखिल हो सकते हैं। (लड़ाई वालों का मिसाल) उनमें थोड़ा बड़ा होने से ही मिलेट्री में दाखिल हो जाते हैं। कोई को यहाँ आना होगा तो संस्कार जो ले जाते हैं उस अनुसार अच्छे घर में जाकर जन्म लेते हैं फिर ऐसे संस्कारों वाले छोटे बच्चे भी यहाँ आते हैं। फिर स्वर्ग में नया जन्म लेंगे, तो यहाँ के संस्कार खत्म हो जायेंगे। फिर राजधानी के संस्कार आयेंगे प्रालब्ध भोगने के लिए। यह संस्कार मर्ज हो जाते हैं। कई बच्चों का बहुत लव रहता है। तो वह आत्मा देखकर खुश होती है। परन्तु आरगन्स छोटे होने कारण बोल नहीं सकते हैं। बड़ा होने से संस्कार इमर्ज होते जायेंगे। बाप कितनी बातें समझाते हैं।परमपिता परमात्मा है तो पिता से वर्सा जरूर मिलना चाहिए। वह है ही स्वर्ग का रचता। नर्क का रचता नहीं कहेंगे। तुम बच्चे जानते हो हम बाबा से स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। कल्प पहले भी लिया था। इसी समय पर ही बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा मिलता है। यह सिर्फ तुम ही कह सकते हो। यह हैं बिल्कुल नई बातें। तुम समझाते हो गीता है माई बाप। बाकी सब शास्त्र हैं उनके बाल-बच्चे। गीता से ही राजयोग का व स्वर्ग की राजाई का वर्सा मिलता है। बाकी बाल-बच्चों से वर्सा क्या मिलेगा। तुम तो अब पारसबुद्धि बनते हो, तुम्हारे महल आदि भी बहुत क्वीक बनेंगे। तुम्हारा है साइलेन्स का घमन्ड, उन्हों का है साइंस का घमण्ड। तुम सर्वशक्तिमान बाप से राजाई लेते हो। भारत के तुम मालिक बनते हो। यह हमेशा बुद्धि में रखो - विश्व का रचता हमको विश्व का मालिक बनाने लिए पढ़ाते हैं। एक सेकेण्ड में जीवन्मुक्ति देते हैं तो क्या एक सेकेण्ड में बाप इसमें प्रवेश नहीं कर सकेंगे। एक सेकेण्ड में आत्मा यहाँ से लण्डन-अमेरिका आदि में जाए जन्म लेती है। आत्मा एकदम फ्लाइंग स्क्वाइड है। है कितना छोटा स्टार। पुन-र्जन्म तो जरूर मानेंगे। तुमने कितने पुनर्जन्म लिए हैं। 84 जन्मों में जरूर आना है जो बिल्कुल ही पतित शूद्र बुद्धि हैं वे आकर फिर से स्वच्छ बुद्धि बनते हैं। स्वच्छ बुद्धि का संग जरूर ऐसा ही बनायेगा। अभी तुम मास्टर ज्ञान सागर ठहरे। जो बाप में गुण हैं वह तुम धारण करते हो। तुम भी कहते हो मन्मनाभव। तो तुम्हारी आत्मा स्वच्छ हो जायेगी। बाकी दिव्य दृष्टि की चाबी बाबा के पास ही है। तुम मनुष्य से देवता बनते हो इसलिए बच्चे को भी ताज दिखाते हैं। नहीं तो छोटे बच्चों को ताज नहीं होता। वह प्रिन्स ही देखते हैं। मातायें साक्षात्कार में देखती है - हम जाकर महारानी बनेंगी। ज्ञान से भी समझ सकते हैं अभी हमारी आत्मा पतित है। मैं कारपेन्टर हूँ, मैं गरीब हूँ - यह आत्मा बोलती है। अभी तुम जानते हो शिवबाबा द्वारा हम देवता बन रहे हैं। आत्मा ही पतित और पावन बनती है। अभी मैं आत्मा पतित हूँ तो शरीर भी ऐसे पतित हैं। खाद पड़ी है। ऐसे-ऐसे अपने साथ बातें करते विचार सागर मंथन करते रहना चाहिए। तो फिर आदत पड़ जायेगी। विचार सागर मंथन तुम बच्चों को करना है - राइट क्या है, रांग क्या है।अपने को आत्मा निश्चय करना है। मैं ब्राह्मण हूँ। शरीर द्वारा आत्मा को ही बुलाते हैं। शरीर को क्यों नहीं बुलाते। खिलाते भी आत्मा को है। अच्छा, आत्मा कैसे खायेगी? ब्राह्मण के शरीर द्वारा खायेगी ना। स्त्री समझती है पति की आत्मा को बुलाया है। किसको स्त्री में प्यार होता है जब उनकी आत्मा को बुलाते हैं तो समझते हैं अब इनको क्या सौगात दें। फिर उनको अंगूठी वा फुल्ली पहना देते हैं। है तो आत्मा शरीर तो नहीं आ सकता। वास्तव में आत्मा कोई आती भी नहीं है। यह सब ड्रामा में नूंध है। यह भी एक खेल है। वह समझते हैं फलाना आया हुआ है। मैं उनको खिलाता हूँ। बड़े आदमी को धूमधाम से खिलाते हैं। यह रस्म-रिवाज है। वास्तव में ब्राह्मणों को कोई नौकरी नहीं करनी है। परन्तु आजकल पेट के लिए सब कुछ करते हैं। नहीं तो ब्राह्मण लोग अपने को बहुत ऊंच समझते हैं। परन्तु वह हैं कुख वंशावली। तुम हो मुख वंशावली ब्राह्मण। तुम्हारी बहुत महिमा है। तुम अब समझ गये हो। हम सारे सृष्टि के आदि मध्य अन्त की नॉलेज को जानते हैं। सिवाए एक बाप के और कोई को नॉलेजफुल नहीं कहेंगे। जिनको मनुष्य से देवता बनाते हैं उनको भी गोद जरूर चाहिए क्योंकि यह है मात-पिता। बाप आकर तुमको इन द्वारा रचते हैं। यह बातें और कोई की समझ में मुश्किल आती हैं। कितनी वन्डरफुल बातें हैं! कहते हैं दिन-प्रतिदिन तुमको गुह्य राज़ सुनाता हूँ। अन्त तक यह नॉलेज धारण करनी है। पिछाड़ी में जाकर कर्मातीत अवस्था होगी। 8 पास विद ऑनर होते हैं। मिलेट्री में मरते हैं तो उनको पूरा सम्मान देते हैं। यह सब पुरुषार्थ कर रहे हैं, कर्मातीत बनने की रेस है। कौन अच्छी रीति योग लगाते और रूद्र माला में जाते हैं। मम्मा-बाबा तो प्रसिद्ध हैं फिर हैं नम्बरवार। पास विद आनर्स को फुल मार्क्स मिलते हैं। वह सजा आदि कुछ नहीं खाते हैं। उन्हों का मान बहुत है। हमेशा 9 रत्न गाये जाते हैं, 8 नहीं। 4 की जोड़ी हो जाती। बाकी है एक बीच में बाप। वह लोग तो अर्थ को नहीं समझते। जिसने जो राय दी वह बना देते हैं। जैनी लोग कितना हठयोग करते हैं, बाल निकालते हैं। यह तो हिंसा हो गई। यह सन्यास तो दु:ख देने वाला है। तुमको तो कुछ भी नहीं करना पड़ता है। तुमको तो टैम्पटेशन देकर तुमसे विकारों का सन्यास कराते हैं। यह नॉलेज भी तुम्हारे सिवाए और कोई में नहीं है। बरोबर 84 जन्मों का चक्र लगाया। अभी हम वापिस जाते हैं। जितना योग में रहेंगे तो पवित्र बन सकेंगे। याद में रहते और सर्विस करते रहें तो उनको जास्ती फल मिलेगा। मोस्ट बिलवेड बाप है जिससे 21 जन्मों के लिए सुख का वर्सा मिलता है। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कर्मातीत बनने की रेस करनी है। अच्छा फल प्राप्त करने के लिए याद में रहकर सर्विस करनी है।
2) स्वच्छ बुद्धि वालों का संग करके स्वच्छ बनना है। बाप के गुणों को स्वयं में धारण करना है। स्वयं को कभी भी श्रापित नहीं करना है।
वरदान:- मालिक बन कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाले कर्मयोगी, कर्मबन्धनमुक्त भव l
ब्राह्मण जीवन कर्मबन्धन का जीवन नहीं, कर्मयोगी जीवन है। कर्मेन्द्रियों के मालिक बन जो चाहो, जैसे चाहो, जितना समय कर्म करने चाहो वैसे कर्मेन्द्रियों से कराते चलो तो ब्राह्मण सो फरिश्ता बन जायेंगे। कर्मबन्धन समाप्त हो जायेंगे। यह देह सेवा के अर्थ मिली है, कर्मबन्धन के हिसाब-किताब की जीवन समाप्त हुई। पुरानी देह और देह की दुनिया का संबंध समाप्त हुआ, इसलिए इसे मरजीवा जीवन कहते हैं।
स्लोगन:- दिलाराम के साथ का अनुभव करना है तो साक्षीपन की स्थिति में रहो।
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