top of page
Writer's pictureWebsite Admin

5 May 2018 - BK murli today in Hindi


5 May - Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban -

'प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - स्वयं की सम्भाल करने के लिए रोज़ दो बार ज्ञान स्नान करो। माया तुमसे भूलें कराती, बाप तुमको अभुल बनाते l

"प्रश्नः-किस निश्चय वा पुरुषार्थ के आधार पर बाप की पूरी मदद मिलती है?

उत्तर:-पहले पक्का निश्चय हो कि मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। साथ-साथ पूरी बलि चढ़े अर्थात् ट्रस्टी बन प्यार से सेवा करे। तो ऐसे बच्चे को बाप की पूरी पूरी मदद मिलती है।

गीत:-हमें उन राहों पर चलना है...

ओम् शान्ति।गीत में यह कौन कहते हैं? परमपिता परम आत्मा, ज्ञान का सागर कहते हैं - बच्चे, हम तुम्हें अभी जिस राह पर चला रहे हैं वा माया पर जीत पाने की जो मत अथवा राय दे रहे हैं, उसमें यह तो होगा ही - कोई गिरेंगे तो कोई उठते वा सम्भलते रहेंगे। सुरजीत और मूर्छित होते रहेंगे। सुरजीत होने लिए यह संजीवनी बूटी है। परमपिता परमात्मा की है ज्ञान बूटी। रामायण में भी कहानी है ना कि राम और रावण की युद्ध हुई, लक्ष्मण मूर्छित हो गया, हनूमान संजीवनी बूटी ले आया। अब वास्तव में रामायण तो पीछे बैठ बनाया है। ऐसी कोई बातें हैं नहीं, न कोई मनुष्यों की बनाई हुई गीता भगवान ने बैठ गाई है। बाप तो ज्ञान का सागर है। किसका ज्ञान? सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान देते हैं। जिसका ही मनुष्यों ने गीता शास्त्र बनाया है, उस पर नाम रख दिया है श्रीकृष्ण का। जैसे बाप की जीवन कहानी में अगर कोई बच्चे का नाम लिख दे तो क्या होगा! वैसे ही शिवबाबा ने जन्म दिया गीता को, उस गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है इसलिए अनर्थ हो गया है। गीता खण्डन होने से सभी मनुष्य आत्माओं का बुद्धियोग परमात्मा से टूट गया है। तो मनुष्य पवित्र कैसे बनें! इस योग अग्नि से ही हम पवित्र बनते हैं, न कि गंगाजल से। बाबा है ज्ञान का सागर। ज्ञान अमृत से मनुष्य को देवता बनाते हैं। बाकी अमृत पानी को नहीं कहा जाता है। यह है पढ़ाई। पढ़ाई माना नॉलेज। यह शास्त्र तो भारतवासियों ने द्वापर से बनाये हैं। मनुष्य कहते हैं शास्त्र अनादि हैं। हम कहते हैं ड्रामा ही अनादि है। परन्तु ऐसे नहीं कि यह कोई शास्त्र सतयुग से शुरू हुए हैं। यह सब अनादि है माना ड्रामा में नूँध है। द्वापर से लेकर मनुष्य लिखते ही आये हैं। अब बेहद के बाप ने अपनी सारी जीवन कहानी बताई है। कहते हैं सतयुग त्रेता में मेरा पार्ट नहीं है। सृष्टि ड्रामा अनुसार चलती रहती है। मेरा भी ड्रामा के अन्दर पार्ट नूँधा हुआ है। मैं ड्रामा के बंधन में बाँधा हुआ हूँ। सतयुग-त्रेता में मेरा पार्ट नहीं है। जैसे क्राइस्ट, बुद्ध आदि का सतयुग-त्रेता में पार्ट नहीं है। सब आत्मायें मुक्तिधाम में रहती हैं। ऐसे नहीं, देवी-देवताओं की भी सब आत्मायें उस समय आ जाती हैं। नहीं, वे भी धीरे-धीरे नम्बरवार आती हैं। फिर सतोप्रधान से बदल सतो, रजो, तमो स्टेजेस में आती हैं। फिर सूर्यवंशी ही चन्द्रंशी बनते हैं फिर वृद्धि होती जाती है। यह पूरा राज़ समझना है।तुम जानते हो जो अधूरा पवित्र बनेंगे उन्हें राज्य भी अधूरा मिलेगा। जो ज्ञान-योग में तीखे जायेंगे वे ही पहले राजे बनेंगे। यह राजधानी बन रही है। पूरा पुरुषार्थ करना है। शिवबाबा समझाते हैं - तुमको हीरे समान बनना है। मैं ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर हूँ। तुमको फिर मास्टर ज्ञान सागर बनना पड़े। शान्ति का अर्थ एक दो से लड़ना नहीं है। सन्यासी समझते हैं प्राणायाम चढ़ा दें, यहाँ ऐसे नहीं है। बाबा रस्सी खींच लेते हैं। छोटी बच्चियों की भी बाबा रस्सी खींच लेते हैं तो ध्यान में चली जाती हैं। इसको कहा जाता है ईश्वरीय वरदान। भक्ति में भी साक्षात्कार होता है। यह दिव्य दृष्टि देना बाप के सिवाए और किसकी ताकत नहीं है। अब तो बाप सम्मुख है, कहते हैं भक्तों के पास भगवान को आना पड़ता है - माया की जंजीरों से लिबरेट करने। बाबा कहते हैं - मैं जानता हूँ, यह माया की युद्ध है, कभी चढ़ेंगे, कभी गिरेंगे। योग टूटता है तो मन्सा, वाचा, कर्मणा में भी भूलें होती हैं। परीक्षा सब पर आती है। कुछ भी माया का वार न हो, फिर तो शरीर ही छूट जाए। सम्पूर्ण कोई बना नहीं है। यह घुड़दौड़ है। राजस्व अश्वमेध यज्ञ कहते हैं। राजाई के लिए अश्व यानी रथ को शिवबाबा पर बलि चढ़ाना है अर्थात् बच्चा बन पूरी सेवा करनी है। ट्रस्टी बन फिर पुरुषार्थ करना है तो मदद भी मिलेगी। पक्का निश्चय चाहिए - मेरा तो एक शिव-बाबा दूसरा न कोई। मरना तो सबको है।परमपिता परमात्मा जो कि बाप-टीचर-सतगुरू है, उनसे अपना वर्सा लेने का हर एक को हक है। सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। सबको इकट्ठा मरना है। जब आफ्तें आती हैं तो सब इकट्ठे मरते हैं ना। थोड़े बहुत गोले गिरेंगे तो मकान टूट पड़ेंगे। तो अभी सबका मौत है, इसलिए बच्चों को भी कमाई कराओ। यह है सच्ची कमाई। जो करेगा सो पायेगा। ऐसे नहीं, बाप कमाई करेगा तो बच्चों को मिल जायेगी। नहीं। बच्चों को भी यह सच्ची कमाई करानी है। यह हैं समझने की बातें। इसमें परहेज बहुत चाहिए। हम देवता बन रहे हैं तो कोई अशुद्ध वस्तु खा नहीं सकते हैं। कोई समझते हैं मछली खाने में पाप नहीं है, ब्राह्मणों को भी खिलाते हैं। सब रस्म-रिवाज ही उल्टा हो गया है। बाप कहते हैं बिल्कुल पवित्र बनना है। पहले ज्ञान चिता पर बैठना है। मन्सा में विकल्प कितने भी आयें परन्तु कर्मेन्द्रियों से कोई भी विकर्म नहीं करना। जब तुम बाबा के बनते हो तो माया की युद्ध शुरू हो जाती है। प्रजा बनने वालों से माया इतना टक्कर नहीं खाती है। माया-जीत जगत-जीत बनना है। प्रजा जगत-जीत नहीं बनती है। जगत-जीत माना सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी बनना। मेहनत कर 3-4 वर्ष पवित्र रह फिर थप्पड़ खा लेते हैं। फिर चिट्ठी लिखते हैं - बाबा म़ाफ करना। यहाँ कायदे भी हैं। बच्चा बना तो सारे जीवन के पाप भी लिखने पड़े - धर्मराज शिवबाबा, इस जन्म में मैंने यह-यह पाप किये हैं तो आधा माफ हो जाता है। यह भी लॉ है। आगे जज के आगे सच बोलते थे तो सजा कम हो जाती थी। भूल करके लिखे नहीं तो 100 गुणा दण्ड हो जाता। बच्चों के लिए बहुत परहेज है। बाहर वालों के लिए इतनी नहीं है इसलिए डरते हैं। बेहद का बाप अथवा साजन जो सौभाग्यशाली बनाते हैं उनके बनते नहीं। भूलें तो होती हैं परन्तु आखरीन अभुल जरूर बनना है। यहाँ बहुत परहेज रखनी है। समर्थ का हाथ पकड़ा है तो बाप सम्भाल भी करेंगे। सौतेले बच्चों की थोड़े-ही करेंगे। सगे बहुत थोड़े हैं तो भी कितने बच्चे हैं जो बाबा को चिट्ठी लिखते हैं। कितनी पोस्ट रोज़ आती है। बाप का तो एक हाथ है, हरेक लिखे मुझे अलग पत्र लिखो... अभी तो बहुत वृद्धि होगी। इतनी बैग पोस्ट की और कोई की नहीं निकलती होगी। यह है ही गुप्त गवर्मेन्ट। अन्डरग्राउण्ड है। रिलीजोपोलिटीकल है। कोई हथियार आदि नहीं है। मंजिल ऊंची है। चढ़े तो चाखे... गिरे तो राजाई गँवाए प्रजा बन जाते हैं। समझा।तुम बच्चे जानते हो भारत जो हीरे मिसल था वह कौड़ी मिसल बन गया है। अभी तो तुम कहेंगे हम नर्क-वासी से स्वर्गवासी बनने का पुरुषार्थ करते हैं। हम सदा सौभाग्यशाली बनने आये हैं। बाबा पतित से पावन बना रहे हैं। फिर यह रावण राज्य नीचे चला जायेगा। यह चक्र फिरता है ना। रावण राज्य नीचे तो राम राज्य ऊपर आ जायेगा। अपने को बहुत सम्भालना भी है। सम्भाल वही सकेंगे जो रोज़ ज्ञान-स्नान करेंगे। रॉयल मनुष्य दिन में दो बारी स्नान करते हैं। यह भी अमृतवेले और नुमाशाम दो बारी ज्ञान-स्नान जरूर करना चाहिए। एक बारी एक घण्टा पढ़कर फिर दूसरा बारी मुरली को रिवाइज जरूर करना है। धारणा करनी और करानी है। बच्चों को, स्त्री को भी सच्ची कमाई करानी है। 21 जन्मों का राज्य-भाग्य लेना कोई मासी का घर नहीं है। समझा जाता है कौन-कौन तीखा पुरुषार्थ करते हैं। बीमार हो तो डोली में बिठाकर ले आना चाहिए। ज्ञान-अमृत मुख में हो तब प्राण तन से निकलें। अन्धा-बहेरा कोई भी कमाई कर सकता है। ज्ञान तो बड़ा सहज है। बाप से वर्सा लेना है। एक ही बार बाप सम्मुख आकर बादशाही देते हैं। बच्चे सुखी हुए तो बाप वानप्रस्थ में चले जाते हैं। बेहद का बाप सबको सुखी कर खुद परमधाम में जाए बैठ जाते हैं। फिर आत्मायें नम्बरवार वहाँ से आती रहती हैं। कोई को भेजते नहीं हैं। यह कहने में आता है लेकिन यह आटोमेटिकली ड्रामा चलता रहता है। अपने टाइम पर धर्म स्थापन करने आना ही है। तुम जानते हो हम ब्रह्मा वंशी ब्राह्मण हैं। शिव वंशी तो सारी दुनिया है। फिर जिस्मानी बाप हो गया ब्रह्मा। ब्रह्मा के बच्चे हम भाई-बहन ठहरे। अभी हम हैं ईश्वरीय धर्म के। सतयुग में होंगे देवी-देवता धर्म के। अब ईश्वर के पास जन्म लिया है। अभी हम उनके बन गये हैं। मनुष्य रचता को न जानने कारण, रचना के आदि-मध्य-अन्त को भी नहीं जानते हैं। उनको कहा जाता है नास्तिक, कौड़ी तुल्य। बरोबर अभी हम आस्तिक बने हैं तो हम हीरे तुल्य बन जाते हैं। रचता और रचना को जानने से हमको राजाई मिलती है। बाबा हमको वर्थ पाउण्ड बनाते हैं तो बनना चाहिए ना। सचखण्ड का बादशाह, सचखण्ड का मालिक बना रहा है। चमड़ापोश कहा जाता है। एक खुदा दोस्त की कहानी भी है। तो अब वह खुदा हमारा दोस्त है। खुदा दोस्त, अल्लाह अवलदीन और हातमताई का खेल सारा अभी का है। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सच्ची कमाई करनी और सबको करानी है। परीक्षायें वा तूफान आते भी कर्मेन्द्रियों से कोई भूल नहीं करनी है। माया-जीत जगत-जीत बनना है।2) देवता बनने के लिए खान-पान की पूरी परहेज रखनी है। कोई भी अशुद्ध वस्तु नहीं खानी है। दो बारी ज्ञान स्नान जरूर करना है।

वरदान:-ब्राह्मण जीवन की विशेषता को जानकर उसे कार्य में लगाने वाले सर्व विशेषता सम्पन्न भव l

ड्रामा के नियम प्रमाण संगमयुग पर हर एक ब्राह्मण आत्मा को कोई न कोई विशेषता मिली हुई है। चाहे माला का लास्ट दाना हो, उसमें भी कोई न कोई विशेषता है, तो ब्राह्मण जन्म के भाग्य की विशेषता को पहचानो और उसे कार्य में लगाओ। एक विशेषता कार्य में लगाई तो और भी विशेषतायें स्वत: आती जायेंगी, एक के आगे बिन्दी लगते-लगते सर्व विशेषताओं में सम्पन्न बन जायेंगे।

स्लोगन:-मनमनाभव के मंत्र की सदा स्मृति रहे तो मन का भटकना बन्द हो जायेगा।

17 views

Related Posts

See All

Comments


bottom of page