top of page
Writer's pictureWebsite Admin

BK murli today in Hindi 25 Aug 2018 Aaj ki Murli


Brahma kumari murli today Hindi -BapDada -Madhuban -25-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - पवित्र रहने की कसम लेना ही सच्चा रक्षाबंधन है, बाप कल्प में एक ही बार यह राखी तुम बच्चों को बांधते हैं"

प्रश्नः- पवित्रता की प्रतिज्ञा करने वालों को भी योग में रहने का इशारा क्यों मिलता है?

उत्तर:- क्योंकि योग की शक्ति से ही वायुमण्डल को शान्त बना सकते हो। सारी दुनिया को शान्ति का वर्सा देने का उपाय ही योग है। तुम बाप को याद करते हो - विश्व में शान्ति फैलाने के लिए। जितना बाप को याद करेंगे उतना माया का असर नहीं होगा। बाप का यही फ़रमान है - बच्चे, अशरीरी भव।

गीत:- भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना.......

ओम् शान्ति।बेहद के बाप का बच्चों प्रति फ़रमान है कि अशरीरी होकर रहो अर्थात् अपने को आत्मा निश्चय कर इन कर्मेन्द्रियों से अपने को अलग समझो। यह शरीर डिपेन्ड करता ही है आत्मा के ऊपर। आत्मा अलग हो जाती है तो शरीर कोई काम की चीज़ नहीं रहता, जिसको फिर जलाया जाता है। जब आत्मा निकल जाती है तो जैसे मुर्दा, किचड़ा हो जाता। किचड़ा होता है तो कहते हैं कि इस किचड़े को जला दो। आत्मा बिगर यह शरीर काम का नहीं है। तो अहम् आत्मा इमार्टल है। यह शरीर जो पार्ट बजाने लिए मिलता है, यह विनाशी है। आत्मा निकल जाती है तो यह शरीर कोई काम का नहीं रहता। बदबू हो जाती है। शरीर के बिगर आत्मा साइलेन्स रहती है। बाप समझाते हैं तुम्हारी आत्मा का स्वधर्म है साइलेन्स। तुम जानते हो हम आत्मा वास्तव में परमधाम की रहने वाली हैं। परमपिता परमात्मा भी वहाँ रहते हैं। जब कोई दु:ख होता है तो बाप को याद करते हैं - मुझे इस दु:ख से छुड़ाओ। आत्मा ही सुख-दु:ख में आती है। बहुत सन्यासी आदि हैं जो कहते हैं आत्मा निर्लेप है परन्तु नहीं, आत्मा में ही खाद पड़ती है। सच्चे सोने में सिलवर पड़ती है तो सोना 24 कैरेट से 22 कैरेट बन जाता है। सच्चे सोने में खाद डाल देते हैं तो जेवर मुलम्मे का हो जाता है। आत्मा ही मुख्य है। आत्माओं का बाप है परमपिता परमात्मा। वही आकर इस समय बच्चों को कहते हैं अब शरीर का भान छोड़ दो। मैं आत्मा हूँ, बाप के पास जाता हूँ। हम हैं पाण्डव। पाण्डवों का प्लैन यह है। पहले यादव यूरोपवासी फिर कौरव और यह हैं पाण्डव। बरोबर महाभारी लड़ाई लगी और फिर जयजयकार हो गया। यह राजयोग है ही नई दुनिया स्वर्ग के लिए। पाण्डवों की जयजयकार हुई और सब ख़लास हो गये। जयजयकार होती ही है सतयुग में।राखी का त्योहार भारतवासी मनाते हैं। राखी बांधते हैं। अभी यह बच्चे जानते हैं राखी एक ही बार बांधते हैं, जो फिर हम 21 जन्म पवित्र रहें। तो जरूर कलियुग अन्त में राखी बांधने वाला चाहिए। राखी कौन आकर बांधते हैं? कौन प्रतिज्ञा कराते हैं? स्वयं बाप और जो उनके वंशावली ब्राह्मण हैं। सच्चे-सच्चे ब्राह्मण तुम हो। ब्राह्मण ही राखी बांधते हैं। बहन भाई को बांधे - यह भी झूठी बनावट है। बुजुर्ग लोग जानते हैं - आगे ब्राह्मण ही आकर धागे की राखी बांधते थे। वह कोई ऐसे नहीं कहते कि तुमको पवित्र रहना है। पवित्रता को वह जानते ही नहीं। तो यह राखी उत्सव जरूर संगम पर हुआ है। कितना वर्ष हुआ? 5 हजार वर्ष। संगम पर बाप ने राखी बांधी फिर हम सतयुग-त्रेता अन्त तक पवित्र रहे फिर भक्ति मार्ग से यह राखी त्योहार शुरू हो गया। कहते हैं - यह उत्सव परम्परा से मनाते आये हैं। परन्तु ऐसे तो है नहीं। 5 हजार वर्ष में हम एक ही बार राखी बांधते हैं। जब द्वापर से पतित बनते हैं तो वर्ष-वर्ष राखी बांधते हैं क्योंकि अपवित्र बनते हैं। जैसे वर्ष-वर्ष रावण को भी जलाते हैं, वैसे वर्ष-वर्ष राखी भी बांधते हैं। वास्तव में इनका अर्थ तुम समझते हो। बाप आकर कहते हैं - बच्चे, प्रतिज्ञा करो। राखी बांधने से कुछ नहीं होता है। यह तो कसम उठाया जाता है कि - बाबा, हम अभी पवित्र रहेंगे। तो ड्रामा में इन उत्सवों की नूँध है। सतयुग-त्रेता में राखी बांधने की दरकार नहीं रहती। वह है ही वाइसलेस वर्ल्ड। इस समय अपनी है चढ़ती कला। फिर तो उतरना होता है। हम फिर सो सतोप्रधान देवता बनेंगे। ब्राह्मण कहते हैं हम अभी ईश्वर की सन्तान है फिर सो देवता बनते हैं। बनाने वाला है परमपिता परमात्मा। मनुष्य से देवता निराकार परमपिता परमात्मा बनाते हैं। मनुष्य नहीं बना सकते। उन्होंने मनुष्य का नाम डाल दिया है। कृष्ण को भी द्वापर में ले गये हैं। तुम पतित से पावन कलियुग अन्त में बनते हो। फिर सतयुग आना है। अगर द्वापर में आये तो फिर कलियुग का नाम गुम हो जाना चाहिए। यह रांग बात है, जब रांग हो तब तो बाप आकर राइट बनाये ना। अभी सब झूठे हैं। झूठी माया, झूठी काया........। बाप आकर बच्चों को सच्चा बनाते हैं। सतयुग-त्रेता में कभी झूठ बोलते ही नहीं। यहाँ तो पाप करते झूठ बोलते रहते हैं। पाप आत्माओं को पुण्य आत्मा तो बाप ही बनायेंगे। जैसे दीपमाला पर सारे वर्ष का हिसाब-किताब चुक्तू करते हैं ना। तुम्हारा फिर आधाकल्प का जो पापों का खाता है वह भस्म होता है और पुण्य का खाता तुम जमा करते जाते हो। यहाँ ही जमा करेंगे तब 21 जन्म लिए फल मिलेगा। बाप को याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे। नया कोई पाप नहीं करना चाहिए। पुराना खाता ख़लास करना है। बाप को बतलाते हैं कि बाबा हमसे यह पाप हुआ। अच्छा, आधा माफ है। इस जीवन में भी छोटेपन में पाप किया है तो वह बतलाने से आधा दण्ड कट जायेगा। बाकी आधा के लिए फिर भी मेहनत करनी पड़ेगी। इस जन्म की जीवन कहानी से आगे का भी पता पड़ जाता है क्योंकि संस्कार ले आते हैं ना। फिर उनकी अवस्था का पता पड़ जाता। यह तो समझते हैं दिन-प्रतिदिन नीचे ही गिरते आये हैं। दुनिया तमोप्रधान बनती जाती। पाप बढ़ते जाते हैं। फिर पतित-पावन बाप आकर राखी बांधते हैं अर्थात् प्रतिज्ञा कराते हैं तो तुम पवित्र बन जाते हो। परम्परा अर्थात् हर पांच हजार वर्ष बाद यह सच्ची-सच्ची राखी बाप से बंधवाते फिर उसकी रस्म-रिवाज आधा कल्प चलती है। उसका महत्व बहुत है। पहले-पहले महत्व है जो राखी बांधते हैं। उनका उत्सव है मुख्य। ऊंच ते ऊंच उत्सव है शिव जयन्ती, जिसका कोई को पता नहीं है कि वह कब आये, क्या आकर किया? इब्राहिम, बुद्ध, क्राइस्ट आदि कब आये यह तो सब जानते हैं ना। उनसे आगे सतयुग-त्रेता में क्या था - वह हिस्ट्री-जॉग्राफी कोई जानते नहीं। देवी-देवताओं की राजधानी कैसे स्थापन हुई, कितना समय चली - यह कोई जानते नहीं। मुख से कहते हैं - सतयुग के लक्ष्मी-नारायण सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी थे। लक्ष्मी-नारायण तो हुए महाराजा-महारानी। उन्हों का बचपन भी चाहिए। बच्चों का किसको पता नहीं हैं। राधे-कृष्ण को फिर उल्टा द्वापर में ले जाते हैं। यह मनुष्यों की अपनी कल्पना है। सतयुग की आयु भी लाखों वर्ष लिख दी है, इतनी तो होनी नहीं चाहिए। खुद भी कहते हैं - 3 हजार वर्ष बिफोर क्राइस्ट बरोबर देवी-देवताओं का राज्य था। तो फिर सतयुग को इतने वर्ष क्यों देते हैं? सहज बात है ना। परन्तु माया पत्थरबुद्धि बना देती है जो बिल्कुल ही भूल जाते हैं कि हम देवी-देवता थे। नम्बरवन ही जब नारायण बनता तो उनको यह ज्ञान नहीं होता। ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है। बाप कहते हैं अभी तुमको ज्ञान देता हूँ - मनुष्य से देवता बनाने का। देवता बन गये फिर क्या सिखलायेंगे? दरकार ही नहीं। तो राखी का उत्सव भी तुम जानते हो। यह सब उत्सव वर्ष-वर्ष होते हैं। कुम्भ का मेला, सागर-नदी का मेला भी बड़ा भारी लगता है। सागर और ब्रह्म पुत्रा नदी का मेला मशहूर है। सागर तो बाप है। उनसे पहले यह ब्रह्म पुत्रा निकली फिर वृद्धि होती जाती है। सागर और ब्रह्म पुत्रा का मेला देखने में आता है। वहाँ फिर है नदियों का मेला, उसमें भी साफ पानी और मैला पानी दिखाई पड़ता है। वहाँ भी हर वर्ष मेला लगता है। वर्ष-वर्ष जाकर पतित से पावन बनने स्नान करते हैं। अभी तुम संगमयुग पर हो। बरोबर इस समय तुम ज्ञान सागर से आकर मिले हो। यह है संगम का सुहावना समय जबकि आत्माओं का परमपिता परमात्मा से मिलन होता है।तुम बच्चे जानते हो - जो भी पर्व मनाते हैं वह सब अभी के हैं। आज है रक्षाबन्धन। बाबा थोड़ी राखी भी ले आये हैं। अब बाबा पूछते हैं - किसको शिवबाबा से राखी बंधवानी है वह हाथ उठावें (पहले दो चार ने हाथ उठाया) फिर बाबा ने कहा - शिवबाबा से जिनको राखी बंधवानी हो वह हाथ उठावे। (मैजारिटी ने हाथ उठाया) बापदादा बोले - क्या तुम सब पावन नहीं बने हो जो राखी बंधवाते हो? फिर मम्मा से बापदादा ने पूछा तो मम्मा बोली राखी तो बांधी ही हुई है। देखो, बाबा ने बच्चों की परीक्षा ली तो सब फेल हो गये। मम्मा ने ठीक कहा। तुम तो पवित्र हो ही। बाकी ज्ञान की धारणा पर मदार है। खजाना तो मिलता ही रहेगा। जब तक जीते हो तब तक खजाना इकट्ठा करते रहो। पवित्र तो तुम हो परन्तु याद में रहने से तुम वायुमण्डल को शान्त बनाते हो। सारी दुनिया को शान्ति का वर्सा दे रहे हो। पवित्रता की ही प्रतिज्ञा की जाती है। बाप को याद करते हो - शान्ति फैलाने लिए। यह भी तुम जानते हो जितना बाप को याद करेंगे, माया का असर नहीं होगा। माया के तूफान भी आते हैं ना। बाप तुम बच्चों को पढ़ाकर त्रिकालदर्शी बना रहे हैं। ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को तुम जानते हो। तुम्हारा यह भूलना भी ड्रामा में है इसलिए फिर से मुझे आना पड़ता है - तुम बच्चों को राजयोग सिखलाने। शिव जयन्ती मनाते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते। बाबा ने राखी लाई थी क्योंकि एक बच्चा नया आया था। यह पान का बीड़ा उठाना होता है। बाबा हम राखी बंधवाते हैं। हम पवित्र बन क्यों नहीं बेहद के बाप से वर्सा लेंगे क्योंकि इसमें पवित्रता है फर्स्ट। बेहद का बाप कहते हैं आधा कल्प तुमने विषय गटर में बहुत गोते खाये हैं। यह है ही कुम्भी पाक नर्क। 63 जन्म गोते खाये हैं अब प्रतिज्ञा करो - बाबा, हम भी पवित्र दुनिया में चल सुख का वर्सा लूँगा। परन्तु हिम्मत नहीं देखते हैं। यह है ज्ञान मान सरोवर। इसमें ज्ञान स्नान करने से मनुष्य स्वर्ग की परी बन जाते हैं। भारतवासी लक्ष्मी-नारायण आदि के मन्दिर बनाते हैं परन्तु उनको पता थोड़ेही है कि वह कब आये थे, तो यह हुई अन्धश्रद्धा।तुम बच्चों को अब बाप ने आप समान मास्टर ज्ञान सागर बनाया है। जैसे बैरिस्टर पढ़कर आप समान बनाते हैं, फिर नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार पास होते हैं। यह भी पढ़ाई है। एम ऑब्जेक्ट क्लीयर लिखा हुआ है। शिवबाबा का भी चित्र है। परन्तु समझते कुछ नहीं हैं। गाते हैं पतित-पावन सीताराम। यह है ही रावण सम्प्र दाय इसलिए बाप कहते हैं अपनी शक्ल देखो - 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी हो? अपने को आत्मा निश्चय करते हो? तुम्हारी आत्मा का बाप कौन है? उनको नहीं जानते तो तुम नास्तिक ठहरे। फिर नास्तिक लक्ष्मी को कैसे वरेंगे? तुम जानते हो बरोबर हम बन्दर सम्प्रनदाय थे। अब हम श्री नारायण को वरने लायक बनते हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको माया रावण के राज्य से लिबरेट करने आया हूँ। फिर रावण का बुत कभी जलायेंगे ही नहीं। यह समझने की बातें हैं। जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना अच्छा वर्सा पायेंगे। बाबा बता सकते हैं - तुम इस समय के पुरुषार्थ अनुसार क्या बनेंगे? आजकल मनुष्यों की मौत तो बड़ी चीप (सस्ती) है। वहाँ तो समय पर आयु पूरी हुई झट मालूम पड़ेगा हमको यह चोला छोड़ दूसरा नया लेना है। नई-नई आत्मायें आती हैं तो पहले-पहले उन्हों की महिमा होती है, फिर कम हो जाती है। सतो, रजो, तमो से हरेक को पास करना पड़ता है। बाबा आकर सतोप्रधान बनाते हैं। यह भी वन्डर है। इतनी करोड़ आत्माओं को अपना अविनाशी पार्ट मिला हुआ है जो कभी विनाश नहीं हो सकता। आत्मा इतनी छोटी-सी बिन्दी है, उनमें सारा अविनाशी पार्ट भरा हुआ है, इसको कुदरत कहा जाता है। नया कोई इन बातों को समझ न सके। बड़ी गुह्य बातें हैं। शिव का रूप तो यही दिखाते हैं ना। अगर हम इनका रूप बदला दें तो कहें इनकी तो दुनिया से न्यारी बातें हैं। नई दुनिया के लिए नई बातें अभी तुम सुनते हो। फिर कल्प बाद भी तुम ही आकर सुनेंगे। तो पतित-पावन बाप ने प्रतिज्ञा कराई थी, जिन्हों ने यह प्रतिज्ञा की वही स्वर्ग के मालिक बनें इसलिए यह त्योहार मनाया जाता है। सच्चे-सच्चे ब्राह्मण तुम हो। सरस्वती ब्राह्मणी ऊंची गाई जाती है। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) पुराने विकर्मों का खाता ख़लास कर पुण्य का खाता जमा करना है। याद में रह शान्ति का वायुमण्डल बनाना है।

2) पवित्रता की प्रतिज्ञा कर पवित्र रहने की सच्ची राखी हरेक को बांधनी है।

वरदान:- एक बाप के लव में लवलीन रह सर्व बातों से सेफ रहने वाले मायाप्रूफ भव l

जो बच्चे एक बाप के लव में लवलीन रहते हैं वे सहज ही चारों ओर के वायब्रेशन से, वायुमण्डल से दूर रहते हैं क्योंकि लीन रहना अर्थात् बाप समान शक्तिशाली सर्व बातों से सेफ रहना। लीन रहना अर्थात् समाया हुआ रहना, जो समाये हुए हैं वही मायाप्रूफ हैं। यही है सहज पुरुषार्थ, लेकिन सहज पुरुषार्थ के नाम पर अलबेले नहीं बनना। अलबेले पुरुषार्थी का मन अन्दर से खाता है और बाहर से वह अपनी महिमा के गीत गाता है।

स्लोगन:- पूर्वज पन की पोजीशन पर स्थित रहो तो माया और प्रकृति के बन्धनों से मुक्त हो जायेंगे।

36 views

Related Posts

See All

Comentarios


bottom of page