Brahma Kumari murli today Hindi BapDada Madhuban 10-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - सत का संग एक ही है जिससे तुम्हारी सद्गति होती है, आत्मा पावन बनती है, बाकी सब हैं कुसंग, इसलिए कहा जाता - संग तारे कुसंग बोरे''
प्रश्नः- बाप का ऐसा कौनसा कर्तव्य है जो कोई भी धर्म स्थापक नहीं कर सकता?
उत्तर:- बाप का कर्तव्य है सबको पतित से पावन बनाकर वापिस घर ले जाना। बाप आते हैं - सबको इन शरीरों से मुक्त करने अर्थात् मौत देने। यह काम कोई धर्म स्थापक नहीं कर सकता। उनके पिछाड़ी तो उनके धर्म की पावन आत्मायें ऊपर से उतरती हैं और अपना-अपना पार्ट बजाए पावन से पतित बनती हैं।
गीत:- जाग सजनिया जाग.......
ओम् शान्ति।बच्चों ने गीत सुना। किसने सुनाया? साजन ने। सब हैं सजनियां जिसको भक्तियां कहा जाता है। भगवान् एक है, जिसको भक्त याद करते हैं। तो उसको कहा जाता है साजन। भक्त कहने से मेल अथवा फीमेल दोनों उसमें आ जाते हैं। तो सब हो गई सीतायें। राम एक है। भक्त अनेक हैं, भगवान् एक है। उस भगवान् को कहा जाता है परमपिता। लौकिक बाप को परमपिता नहीं कहेंगे। वह है लौकिक शरीर देने वाला पिता। परमपिता है परमधाम में रहने वाला, सब आत्माओं का पिता। हर एक मनुष्य को दो बाप हैं - एक लौकिक, दूसरा पारलौकिक बाप। लौकिक बाप का जन्म बाई जन्म वर्सा अलग होता है। हर एक जन्म में बाप अलग-अलग रहते हैं। तुम विचार करो कितने जन्म लेते हैं, कितने बाप मिलते होंगे? (84) हाँ 84 जन्मों में जरूर 84 बाप और 84 माँ मिलेंगे। हर जन्म में एक ही लौकिक बाप और एक ही माँ रहती है। दूसरा बाप है परमपिता परमात्मा। परन्तु सतयुग-त्रेता में कभी ओ गॉड फादर कह याद नहीं करते। हे परमपिता परमात्मा मेहर करो - ऐसे कभी नहीं कहते इसलिए समझाया जाता है - सतयुग-त्रेता में एक ही बाप होता है। फिर द्वापर-कलियुग, जिसको भक्ति मार्ग कहा जाता है - वहाँ सबको दो बाप हैं। मेल अथवा फीमेल सबको दो बाप हैं। पारलौकिक बाप को याद करते हैं क्योंकि यह दु:खधाम है। दु:खधाम में दो बाप, सुखधाम में है एक ही बाप। यहाँ तो एक लौकिक बाप है, दूसरा फिर सबके दु:ख निवारण करने वाला बाप है। जिसको सभी याद करते हैं कि इस दु:ख से छुड़ाओ, रहम करो। आधाकल्प है दु:खधाम, आधाकल्प है सुखधाम। सतयुग है नया युग, कलियुग है पुराना युग। बाप कहते हैं अब हम सतयुग नई दुनिया की स्थापना कर रहे हैं। कलियुग पुराने युग का विनाश होना है। कलियुग के बाद फिर सतयुग आना है। कलियुग के अन्त, सतयुग के आदि को कल्प का संगम कहा जाता है। यह है कल्याणकारी युग क्योंकि पतित से पावन बनना होता है। कलियुग में हैं पतित मनुष्य, सतयुग में हैं पावन देवतायें। बाप समझाते हैं कि यह आसुरी रावण सम्प्रदाय है। हरेक के अन्दर 5 विकारों की प्रवेशता है। उसको कहेंगे रावण ओमनी प्रेजेन्ट, गॉड ओमनी प्रेजेन्ट नहीं। 5 विकार प्रवेश हैं, इसलिए इनको पतित दुनिया कहा जाता है। सतयुग-त्रेता को पावन दुनिया शिवालय कहा जाता है। कलियुग है वेश्यालय। तो शिव परमपिता परमात्मा आकर नव युग की स्थापना करते हैं। बाप समझाते हैं अब जागो, नव युग अथवा सुखधाम का समय अब आया है। लक्ष्मी-नारायण का राज्य आ रहा है। यह है ही राजयोग। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं है। एक होता है सत संग, दूसरा होता है झूठा संग, कुसंग। सत का संग तारे, कुसंग बोरे....... सत तो एक ही बाप है। उनको कहते हैं पतित-पावन आओ। वही आकर पावन बनाते हैं - आधाकल्प के लिए। फिर माया रावण आकर आधाकल्प पतित बनाती है। ऐसे नहीं, बाप ही पतित बनाते हैं। अभी है ही रावण राज्य। जब तक सत बाप न आये तब तक सतसंग नहीं। सब हैं झूठ संग अथवा कुसंग। तुम हो सीतायें, तुम भक्ति करती हो। समझती हो भक्ति का फल भगवान् आकर देंगे। तो जरूर जब भक्ति का समय समाप्त होना होगा तब तो आयेंगे ना। आधाकल्प है ज्ञान की प्रालब्ध और आधाकल्प है भक्ति की प्रालब्ध। अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो भगवान् की श्रीमत पर। भगवान् एक होता है, वह है निराकार परमपिता परमात्मा, आत्माओं का बाप। वह आते ही हैं संगम पर। द्वापर-कलियुग को भक्ति काण्ड कहा जाता है। सतयुग-त्रेता को ज्ञान काण्ड कहा जाता है। ज्ञान है ही ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा के पास। शास्त्रों का ज्ञान कोई ज्ञान नहीं। अगर उनमें ज्ञान होता तो सद्गति होती। भारत जो हीरे जैसा था अब है नहीं। फिर बाप बनाते हैं। तुम अब हीरे जैसा बन रहे हो। तुम्हारा जीवन पलट रहा है। आत्मा दैवीगुण धारण कर रही है। यूँ तो मनुष्य बैरिस्टर, इन्जीनियर, सर्जन आदि बनते हैं। बाकी मनुष्य को देवता बनाना यह परमपिता परमात्मा, ज्ञान सागर का कर्तव्य है। उनको ही ट्रुथ कहा जाता है। वही सच बतलाते हैं अर्थात् सचखण्ड की स्थापना करते हैं। बाकी सब हैं झूठ बोलने वाले, झूठ खण्ड की स्थापना करते हैं। रावण की मत पर चलते हैं। तुम श्रीमत से श्रेष्ठ बनते हो। नये युग में भारत नया था। वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी कहा जाता था। लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। उन्हों को किसने यह राज्य भाग्य दिया? जरूर जो स्वर्ग की स्थापना करने वाला होगा। अभी वह वर्सा गँवाया है - 84 जन्म लेकर। अब फिर चक्र पूरा होता है। सबको वापिस जाना है। लिबरेटर एक ही बाप है। वही लिबरेट कर सबको ले जाते हैं इसलिए उनको कालों का काल भी कहा जाता है। बाप कहते हैं अब तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए। अब वापिस चलना है। यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है - सो बाप बैठ समझाते हैं अर्थात् त्रिकालदर्शी बनाते हैं। तीनों लोकों, तीनों कालों की नॉलेज देते हैं। वही पतित-पावन, ज्ञान सागर, बीजरूप है। उनसे ही सचखण्ड का तुमको वर्सा मिलता है। यहाँ तुम आये हो परमपिता परमात्मा से वर्सा लेने के लिए, जो स्वर्ग की स्थापना करने वाला है। तुम जानते हो हम ही फिर स्वर्ग के मालिक बनेंगे।सतयुग के लक्ष्मी-नारायण आदि को कहा जाता है डीटी रिलीजन, वह है श्रेष्ठ धर्म। उन्हों का धर्म भी श्रेष्ठ है तो कर्म भी श्रेष्ठ है। वहाँ भ्रष्टाचारी कोई नहीं रहते। द्वापर-कलियुग में फिर एक भी श्रेष्ठाचारी नहीं रहते। बाप को भूलने के कारण ही बुरी गति होती है। फिर बाप आकर पतित से पावन बनाते हैं। धर्म स्थापक कोई पतित से पावन बनाने नहीं आते। पतित-पावन तो एक ही बाप है। वही सच्चा गुरू है। बाकी वह तो आकर अपना धर्म स्थापन करते हैं। ऊपर से पावन आत्मायें आती हैं फिर पतित बनती हैं। इस समय सब पतित हैं। सबको पावन बनाना बाप का ही काम है। वही पतित-पावन है। गुरूनानक ने भी उस सतगुरू की महिमा की है। इस पुरानी दुनिया के विनाश लिए ही यह महाभारत लड़ाई है। बाकी ऐसे नहीं, तुमको लड़ाई के मैदान में ज्ञान देते हैं। ज्ञान के लिए तो एकान्त चाहिए। 7 रोज भट्ठी में रहना पड़े। बाकी तो है भक्ति की सामग्री। भक्तों में भी कोई बड़े तीखे-तीखे होते हैं। रूद्र माला भी है तो भक्त माला भी है। वह है भक्तों की माला, यह है ज्ञान माला। ऊपर में शिव फिर युगल दाना फिर है उनकी वंशावली जो माला मनुष्य सिमरते हैं। राम-राम कहते रहते हैं क्योंकि दु:खी हैं, रावण सम्प्रदाय राम को याद करते हैं कि आकर अपना बनाओ। अभी तुम ईश्वरीय गोद में आये हो। वास्तव में सब आत्मायें परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं। मनुष्य सृष्टि प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान है। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रची है। आत्मा तो अविनाशी है। आत्माओं का अविनाशी बाप है। अभी तुमको दो बाप हैं - एक विनाशी, दूसरा अविनाशी। ब्रह्मा भी शरीर छोड़ देते हैं। शिवबाबा को तो अपना शरीर है नहीं। वह तो जन्म-मरण रहित है। जन्म-मरण में तुम बच्चे आते हो। तुम आदि सनातन देवी-देवताओं के ही 84 जन्म हैं। हिसाब है ना। गुरूनानक को तो 500 वर्ष हुए। तो इतने में 84 जन्म कैसे लेंगे। बाकी लाखों जन्म की तो बात ही नहीं। बाप समझाते हैं अभी सबके जन्म आकर पूरे हुए हैं। फिर नयेसिर खेल सतयुग से शुरू होगा। सतयुग में तो थोड़े चाहिए। बाकी इतने सब कहाँ जायेंगे? उन्हों के लिए ही यह भंभोर को आग लगनी है। इन बाम्बस नैचरल कैलेमिटीज आदि से सब ख़त्म हो जायेंगे। बाकी आत्मायें सब चली जायेंगी मुक्तिधाम। यह कयामत का समय है, सबको वापिस जाना है। भारत को अविनाशी खण्ड कहा जाता है क्योंकि भारत ही बाप का जन्म स्थान है। शिवबाबा भारत में ही आते हैं। पतित-पावन बाप यहाँ जन्म लेते हैं तो गोया सभी धर्म वालों के लिए भारत बड़े ते बड़ा तीर्थ स्थान है। इतना भारत का महत्व है परन्तु महत्व को उड़ा दिया है। यह भी ड्रामा का खेल है जो बाप ही आकर समझाते हैं। बाप कहते हैं मैं ही ज्ञान का सागर हूँ। लक्ष्मी-नारायण को ज्ञान सागर नहीं कहा जाता। उनमें रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान नहीं है।वह ज्ञान जरूर तुम्हारे में है। तुम ही मनुष्य से देवता बनते हो। तुम यहाँ आते हो पतित से पावन बन पावन दुनिया का मालिक बनने। बाप आत्माओं से बैठ बात करते हैं। निराकार बाप इनके आरगन्स का लोन लेकर पढ़ाते हैं। तुम्हारी आत्मा भी इन आरगन्स से सुनती है। बाबा ने समझाया है आत्मा स्टॉर है, जो भ्रकुटी के बीच रहती है और वह बाप है सुप्रीम आत्मा। वह सुप्रीम आकर इनको आप समान सुप्रीम बनाए साथ ले जाते हैं। सब आत्माओं का गाइड है। उनको ही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता कहा जाता है। दु:ख से तुमको लिबरेट कर ले जायेंगे। सतयुग में दु:ख होता नहीं। नवयुग की नॉलेज भी नई है ना। यह बातें मनुष्यों ने कभी सुनी नहीं हैं। भल अच्छे और बुरे मनुष्य हैं। परन्तु हैं सब पतित, तब तो गंगा पर स्नान करने, पावन बनने जाते हैं। गंगा का पतित-पावनी नाम रख दिया है। वास्तव में पतित-पावन तो बाप को ही कहा जाता है। पतित दुनिया के बाद फिर पावन दुनिया की स्थापना होती है। सतयुग को वाइसलेस वर्ल्ड कहा जाता है। और वह है साइलेन्स इनकारपोरिअल वर्ल्ड। आत्मायें यहाँ आकर पार्ट बजाती हैं। पार्ट है 84 जन्मों का। तुम आलराउन्ड पार्ट बजाते हो। यह है बना-बनाया ड्रामा। हरेक में अपना-अपना पार्ट अविनाशी है। वह कभी मिटता नहीं है। तुम 84 जन्म भोगते रहेंगे। चक्र का आदि, अन्त नहीं है। ड्रामा कब शुरू हुआ - यह प्रश्न नहीं उठता। न आदि है, न अन्त है। सतयुग आदि सत, है भी सत, होसी भी सत......। इस चक्र को समझने से तुम स्वर्ग के चक्रवर्ती महाराजा महारानी बनते हो। उसको वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी राज्य कहा जाता है, जो वर्ल्ड आलमाइटी बाप से मिलता है। तुम बेहद के बाप से 21 पीढ़ी के लिए सदा सुख का वर्सा पाते हो। बाप को कहा जाता है हेविनली गॉड फादर। हेविन का वर्सा देने वाला बाप कहते हैं मैं कल्प के संगमयुग पर आकर स्वर्ग का वर्सा देता हूँ। जो पुरुषार्थ करेंगे वह सूर्यवंशी राजाई में आयेंगे। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं। यह है गाडली युनिवर्सिटी। भगवानुवाच है ना। भगवान् पढ़ाकर मनुष्य को देवता बनाते हैं। ऐसा कोई सतसंग नहीं होगा जिसमें कहें कि हम मनुष्य से देवता बनायेंगे।अभी तुम बच्चे नई दुनिया में देवी-देवता पद पाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। समझाना चाहिए दो बाप होते हैं - एक बेहद का बाप, एक हद का। हम बेहद के बाप से वर्सा ले रहे हैं। तुमको भी राय देते हैं वर्सा लो। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ परमपिता परमात्मा की मत पर चलने से तुम स्वर्ग का मालिक बनेंगे। सच्चा है ही एक बाप। वह आकर पढ़ाते हैं। इनके आरगन्स द्वारा कहते हैं ब्रह्मा तन से ब्रह्मा मुख वंशावली को वर्सा देता हूँ। ब्रह्मा द्वारा तुमको दादे का वर्सा मिलता है। दादे के वर्से पर सभी आत्माओं का हक है। लौकिक सम्बन्ध में सिर्फ मेल को वर्सा मिलता है। तुम तो आत्मायें हो। सब ब्रदर्स ठहरे। सबको शिवबाबा से वर्सा मिलता है। तुमको दादे से वर्सा मिल रहा है।बाप कहते हैं हम तुमको मन्दिर लायक बनाते हैं। मनुष्यों में देखो क्रोध कितना है। एक-दो का विनाश कर देते हैं। यह है वेश्यालय। शिवालय था, सो फिर अब बनना है। परमपिता परमात्मा शिव आकर शिवालय बनाते हैं। वेश्यालय से लिबरेट कर फिर गाइड बन सबको वापिस शिवालय में ले जाते हैं। सभी अपने पुराने शरीरों से मुक्त हो मेरे साथ चलेंगे। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दैवी गुण धारण कर स्वयं की जीवन को पलटाना है। सचखण्ड में चलने के लिए सच्चे बाप से सच्चा रहना है।
2) एक सत बाप के संग में रहना है। मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई अच्छी तरह पढ़कर बेहद का वर्सा लेना है।
वरदान:- श्रेष्ठ कर्मधारी बन ऊंची तकदीर बनाने वाले पदमापदम भाग्यशाली भव l
जिसके जितने श्रेष्ठ कर्म हैं उसकी तकदीर की लकीर उतनी लम्बी और स्पष्ट है। तकदीर बनाने का साधन है ही श्रेष्ठ कर्म। तो श्रेष्ठ कर्मधारी बनो और पदमापदम भाग्यशाली की तकदीर प्राप्त करो। लेकिन श्रेष्ठ कर्म का आधार है श्रेष्ठ स्मृति। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाप की स्मृति में रहने से ही श्रेष्ठ कर्म होंगे इसलिए जितना चाहो उतना लम्बी भाग्य की लकीर खींच लो। इस एक जन्म में अनेक जन्मों की तकदीर बन सकती है।
स्लोगन:- अपने सन्तुष्टता की पर्सनैलिटी द्वारा अनेकों को सन्तुष्ट करना ही सन्तुष्टमणि बनना है।
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