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1 June 2018 BK muril today in Hindi - Aaj ki Murli


Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban -01-06-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन"

मीठे बच्चे - अशरीरी बनने की ड्रिल नम्बरवन ड्रिल है, इससे वायुमण्डल में सन्नाटा छा जाता है, बाप का डायरेक्शन है - इसी ड्रिल का अभ्यास करो"

प्रश्नः- दुनिया के अनेक विघ्नों के बीच में रहते हुए एकरस और खुशी में कौन रह सकते हैं?

उत्तर:- जो किसी भी विघ्न की परवाह नहीं करते। तुम्हारे दुश्मन तो अनेक हैं, विघ्न डालेंगे, कलंक लगायेंगे, गाली देंगे - लेकिन याद रहे कि कलंक लगने से ही तुम कलंगीघर बनते हो। कहते हैं कृष्ण ने चौथ का चन्द्रमा देखा इसलिए उस पर कलंक लगे। लेकिन अभी तुम बच्चों पर बहुत कलंक लगते हैं। अन्त में तुम कहेंगे - हे भारतवासियों, देखो तुमने बहुत कलंक लगाये और हम अभी कलंगीधर बनते हैं।

ओम् शान्ति।बच्चों प्रति शिवबाबा का फरमान है। शिवबाबा कहते हैं मैं ड्रिल टीचर हूँ ना। कहते हैं अशरीरी भव। बच्चे, स्वधर्म में टिक जाओ। मनमनाभव, मामेकम् याद करो। यह तो जानते हो अब धर्म की ग्लानि है। गीता में है - यदा यदाहि .... यह श्लोक जन्म-जन्मान्तर हम गाते आये हैं। जबसे भक्ति मार्ग शुरू हुआ गीता का पाठ करते आये हैं। शिवबाबा की पूजा करते आये हैं। वही शिवबाबा अब कहते हैं मामेकम् याद करो। तुम पर फिर से माया का परछाया पड़ गया है। अब मैं आया हूँ माया पर जीत पहनाने के लिए इसलिए मनमनाभव क्योंकि तुमको वापिस जाना है मेरे परमधाम में। अगर कृष्ण होता तो कहते - मध्याजीत भव। कृष्ण को कृष्णपुरी में याद करो। ज्ञान का दाता कोई कृष्ण नहीं है। वह तो है शिव। शिव की ही पूजा होती है, उनको परमात्मा कहा जाता है। तो हम आत्माओं को वहाँ जाना है, इसलिए बाबा ड्रिल सिखलाते हैं। यह है नम्बरवन ड्रिल - मनमनाभव, अशरीरी भव। तुम सब ब्राह्मण उनको याद करेंगे, अगर कोई शूद्र यहाँ और कोई ख्यालात में बैठा होगा तो वायुमण्डल को खराब कर देगा। उस एक को जब सभी याद करेंगे तो सन्नाटा छा जायेगा। जैसे कोई मरता है तो सन्नाटा हो जाता है। आत्मा के अशरीरी होने का प्रभाव पड़ता है। तो अब बाबा कहते हैं - तुम सब आत्माओं को वापिस ले जाऊंगा। काल तो एक आत्मा को ले जाता है। मैं तो कालों का काल हूँ। मैं सबको लेने आया हूँ। और मैं आता हूँ साधारण ब्रह्मा तन में। मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप चैतन्य हूँ। मैने ही गीता सुनाई थी। देखो, तुम्हारे पर अब कलष रखा है ना। कृष्ण की गोपियों को भी कलष दिखाते हैं। कहते हैं - कृष्ण ने मटकी तोड़ी। अब वह मटकी काहे की? तुम्हारे सिर पर जो विकारों की मटकी है, उनको तोड़ते हैं और ज्ञान अमृत का कलष देते हैं। बाकी सतयुग में थोड़ेही कोई ऐसी बात हो सकती है। गोपियाँ तुम हो। गोपी वल्लभ की गोपियों पर जो जहर का कलष था - वह फोड़ ज्ञान अमृत का कलष रखते हैं। तो इसमें बुद्धि बहुत अच्छी चाहिए तब धारणा हो सकेगी। गोपियों का वल्लभ (बाप) तो है शिवबाबा। कृष्ण को वल्लभ नहीं कह सकते। लिखा है कि गोपियों को भगाया। अब बाप थोड़ेही भगायेंगे। यह तो कायदा नहीं है। बाबा समझाते हैं जब कोई महात्मा कहे कि शिवोहम् तो बोलो कि एक तरफ कहते हो महात्मा यानि महान् आत्मा फिर अपने को परमात्मा अथवा शिवोहम् क्यों कहते हो? महान् आत्मा तो पवित्र आत्मा ठहरे। यह राज़ समझाना है। इसको ज्ञान का धर्म युद्ध कहा जाता है। उन्हों के पास है शास्त्रों की मत और तुम्हारे पास है श्रीमत। बाबा कहते हैं - मैं आता ही तब हूँ जब राजयोग सिखलाना है। भारत के ऊपर ही यह सारा खेल है। हीरो-हीरोइन का पार्ट भारतवासियों को मिला हुआ है। वास्तव में वन्दे मातरम् भी इन माताओं को कहा जाता है। वह कांग्रेसी लोग तो भूमि को मातरम् कहते हैं। भूमि तो तत्व है। उनको थोड़ेही माता कहा जा सकता है। इस धरनी में रहने वाली तुम मातायें हो। तुमको वन्दे मातरम् कहा जाता है। वह भूमि को वन्दे मातरम् कहते हैं, तो भूत पूजा हो गई। अभी तुम बच्चे योगबल से अपनी बादशाही लेते हो। सब मेहनत करते रहते हैं - पवित्र बन बादशाही लेने लिए। जिस तरफ साक्षात् सर्व समर्थ सर्वशक्तिमान है, उनकी ही जीत होनी है। परमात्मा की महिमा बिल्कुल अलग है। वह आकर ड्रिल सिखलाते हैं कि मामेकम् याद करो। और सब तुमको दु:ख देने वाले हैं। सभी दुश्मन बन विघ्न डालते हैं। यह कोई नई बात नहीं है। हमको कोई दुनिया की परवाह थोड़ेही है। कृष्ण के लिए कहते हैं - चौथ का चन्द्रमा देखा तब इतनी गाली खाई। कलंक जिन पर लगाते हैं वही फिर कलंगीधर बनेंगे। फिर अन्त में कहेंगे - अरे भारतवासियों, तुमने हमें कितनी गाली दी! देखो, हम यह बन रहे हैं, राज्य-भाग्य ले रहे हैं। लड़ाई के मैदान पर तो बहुत सहन करना पड़ता है। तो जो राज्य-भाग्य देते हैं, उन पर बलिहार जाना पड़ता है। यह शिवबाबा समझा रहे हैं। यह दादा अपने को भगवान नहीं समझते हैं इसलिए शिवबाबा कहते हैं - बच्चे, यह तुम्हारा कल्प-कल्प का पार्ट है। तुम भी कहेंगे जब-जब धर्म की ग्लानि होती है तब बाबा आते हैं। अब बाबा आया हुआ है और हम बाबा से वर्सा ले रहे हैं। निमंत्रण पत्र में भी लौकिक बाप के हद के वर्से और पारलौकिक बाप के वर्से वाली प्वॉइन्ट बहुत अच्छी लिखी हुई है। बेहद के बाप से ही बेहद का वर्सा मिलता है। लक्ष्मी-नारायण को बेहद का वर्सा किसने दिया? बाबा ने। तो यह सब समझने की बातें हैं। हमारा यह सितम सहन करने का भी पार्ट है। 21 जन्मों के लिए बादशाही मिलती है। तो इसमें मेहनत करनी पड़ती है। गाया जाता है सन शोज़ फादर, स्टूडेन्ट शोज़ टीचर। अब तुम्हारा रीयल पार्ट है। तुम समझा सकते हो वही हमारा बाप, टीचर, सत्गुरू है। वही मनुष्य सृष्टि का बीजरूप रचयिता है। सब जीव आत्माओं का बाप है। उनको सर्वव्यापी कैसे कहेंगे! बाप तो ऊपर रहने वाला है तब तो दु:ख में उनको याद करते हैं। वह आते तब हैं जब धर्म ग्लानि होती है। बाबा कहते हैं हमारी जन्म भूमि भारत के रहवासी जब दु:खी होते हैं तब मुझे आना पड़ता है। परमात्मा की जन्म भूमि भारत है। यह अक्षर कोई के मुख से कभी निकलेगा नहीं। अगर सब परमात्मा हों तो सबकी जन्म भूमि भारत होगी। बाबा कहते हैं सभी प्रीसेप्टर्स को भी मैं मुक्तिधाम ले जाता हूँ। जब उन्हों को यह मालूम पड़े कि हमको मुक्ति देने वाला बाबा है, वह भारत में जन्म लेते हैं तो भारत बहुत बड़ा भारी तीर्थ बन जाये। समझो, सभी को मालूम पड़े परन्तु आ कैसे सकें! सभी तो भारत में आ न सकें। इतना तो अन्न नहीं है भारत में। यह सुनकर बहुत-बहुत खुश होंगे कि ओहो, हमारा बाबा, जो इन गुरूओं आदि को भी मुक्ति देते हैं उनका जन्म भारत में होता है! पहचानेंगे तो नॉलेज से ना और क्या देखेंगे! ब्राह्मणों में जब किसकी सोल आती है तो उनके भी बोलने से पहचानते हैं ना। बिगर बोलने पहचान कैसे हो सकती? बात करने से मालूम पड़ेगा - बरोबर फलानी आत्मा है। शिवबाबा भी जब नॉलेज दें तब समझें कि शिवबाबा बोलते हैं। ज्ञान यह तो दे न सकें। यह सिवाए बाप के कोई समझा न सके।कभी-कभी कोई कहते हैं - हम शिवबाबा से बात करें, परन्तु उनको पहचानेंगे कैसे? समझ भी नहीं सकेंगे। बुद्धि से समझना चाहिए कि यह नॉलेज बाबा के सिवाए कोई दे नहीं सकता। देखो, कहाँ-कहाँ बच्चियाँ बिगर देखे तड़फ रही हैं - शिवबाबा से मिलने। जरूर उनकी ताकत है जो खींचती है, कशिश होती है। तो उन्हों को सफेद-पोश का साक्षात्कार कराते हैं इसलिए बाबा कभी हमारी ड्रेस बदलने नहीं देते हैं। तो उनकी नॉलेज से मालूम पड़ता है। बहुतों को भिन्न-भिन्न प्रकार के साक्षात्कार भी होते हैं। परन्तु उनसे क्या फायदा? तुम्हारा काम नॉलेज से है। यह नॉलेज कोई दे न सके। तो यह सारा गुप्त पार्ट हुआ। कहते हैं - मैं आत्मा का रूप धारण कर इसमें प्रवेश हो जाता हूँ। तो यह नॉलेज इतनी बाबा ही देते हैं। हम थोड़ेही जानते थे। बाबा देखो कितनी कमाल करते हैं! कहते हैं - मुझे अपना वारिस बनाओ। मैं तुम्हारी इतनी सेवा करूँगा जो तुम्हारा बच्चा भी कभी नहीं कर सकेगा। मैं तुमको 21 जन्म के लिए राज्य-भाग्य दूँगा। फिर भी अगर वारिस न बनावे तो तकदीर कहा जाता। तुम बच्चियाँ जानती हो - हम शिवबाबा से वर्सा लेने लिए यहाँ आये हैं। शिवबाबा को और वैकुण्ठ को तुम सिवाए दिव्य दृष्टि के देख न सको। ज्ञान तो बिल्कुल क्लीयर मिल रहा है ना। हमको बाबा राजयोग सिखलाते हैं। ऊंच ते ऊंच वर्सा है वैकुण्ठ की बादशाही। सो भी पढ़ाई से मिलती है। कोई भी राजयोग सिखला न सके। हम नर से नारायण बनते हैं। यह राजयोग सिखलाते ही अन्त में हैं तब तो फिर सतयुग में राजा-रानी बनेंगे। यह मूसलों की लड़ाई प्रसिद्ध है। गीता से देवी-देवता धर्म की स्थापना हुई। उस समय तो और कोई धर्म था नहीं। वे सब कहाँ गये? विनाश हुआ। बिल्कुल सहज बात है। ट्रेन में तो तुम बच्चे बहुत सर्विस कर सकते हो फिर भी प्रजा तो बन जायेगी। गाड़ी का डिब्बा ही तुम्हारी प्रजा बन जायेगी। बैठकर सुनेंगे तो उनको बहुत अच्छा लगेगा। लिटरेचर हाथ में होना चाहिए। साथ में लाडला श्रीकृष्ण भी होना चाहिए। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1- 21 जन्मों की तकदीर बनाने के लिए शिवबाबा को अपना वारिस बनाना है। हर कर्म से बाप, टीचर, सतगुरू - तीनों का शो करना है।

2- ज्ञान क्लीयर मिल रहा है इसलिए साक्षात्कार की आश नहीं रखनी है। साक्षात् सर्व समर्थ बाप हमारे साथ है - इसलिए विघ्नों से घबराना नहीं है।

वरदान:- अलौकिक स्वरूप की स्मृति द्वारा अलौकिक कर्म करने वाले सदा समर्थ आत्मा भव l

ब्राह्मण जीवन अर्थात् अलौकिक, हीरे तुल्य अमूल्य जीवन। इस अलौकिक जीवन की स्मृति से वा अलौकिक स्वरूप में स्थित रहने से साधारण चलन, साधारण कर्म नहीं हो सकता। जो भी कर्म करेंगे वह अलौकिक ही होगा क्योंकि जैसी स्मृति होती है वैसी स्थिति होती है। स्मृति में रहे एक बाप दूसरा न कोई। तो बाप की स्मृति सदा समर्थ बना देगी इसलिए हर कर्म भी श्रेष्ठ, अलौकिक होगा।स्लोगन:-स्व-उन्नति का यथार्थ चश्मा पहन लो तो सबकी विशेषतायें ही दिखाई देंगी।

मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य'

सृष्टि की आदि कैसे होगी?

"बहुत मनुष्य यह प्रश्न पूछते हैं कि परमात्मा ने सृष्टि कैसे रची है? आदि में कौनसा मनुष्य रचा अब उसका नाम रूप समझना चाहते हैं। अब उस पर उन्हों को समझाया जाता है कि परमात्मा ने सृष्टि की आदि ब्रह्मा तन से की है, पहला आदमी ब्रह्मा रचा है। तो जिस परमात्मा ने सृष्टि की आदि की है तो अवश्य परमात्मा ने भी इस सृष्टि में अपना पार्ट अवश्य बजाया है। अब परमात्मा ने कैसे पार्ट बजाया? पहले तो परमात्मा ने सृष्टि को रचा, उसमें भी पहले ब्रह्मा को रचा तो गोया पहले ब्रह्मा की पवित्र आत्मा हुई वही जाकर श्रीकृष्ण बनी, उसी तन द्वारा फिर देवी देवताओं के सृष्टि की स्थापना की। तो दैवी सृष्टि की रचना ब्रह्मा तन द्वारा कराई, तो देवी देवतायें का आदि पिता ठहरा ब्रह्मा, ब्रह्मा सो श्रीकृष्ण बनता है वही श्रीकृष्ण का फिर अन्त का जन्म ब्रह्मा तन है। अब ऐसे ही सृष्टि का नियम चलता आता है। अब वही आत्मा सुख का पार्ट पूरा कर दु:ख के पार्ट में आती है तो रजो तमो अवस्था पास कर फिर शूद्र से ब्राह्मण बनते हैं। तो हम हैं ब्रह्मा वंशी सो शिव वंशी सच्चे ब्राह्मण। अब ब्रह्मा वंशी उसको कहते हैं - जो ब्रह्मा के द्वारा अविनाशी ज्ञान लेकर पवित्र बनते हैं तो इससे सिद्ध है कि इस सृष्टि का आदि पिता है बाबा ब्रह्मा। अच्छा। ओम् शान्ति।

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