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*** शिवरात्रि पर विशेष *** * भक्ति और ज्ञान में अंतर * 1. भक्ति मार्ग में भक्तगण शिवलिंग पर जल बूँद की धारा को कलश द्वारा ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहित करते हैं जबकि ज्ञान मार्ग में आत्मा रूपी बच्चे बुद्धि रूपी कलश द्वारा *परमधाम में ज्योतिबिंदु निराकार शिव परमात्मा* पर *शुद्ध संकल्पों की, महिमा की और तन,मन धन से सहयोग के बूंदों की धारा* को नीचे से ऊपर की ओर प्रवाहित करते हैं। 2. भक्तिमार्ग में भक्त व्रत रखते हैं और अन्न अथवा जल का स्थूल उपवास करते हैं तो ज्ञान मार्ग में *तन मन की पवित्रता का और व्यर्थ संकल्पों का व्रत* रखते हैं तथा मन, बुद्धि से परमात्मा के समीप वास करते हैं। 3.भक्तिमार्ग में भक्त रात्रि को स्थूल जागरण करते हैं तो ज्ञानमार्ग में *आत्मा का जागरण* करते हैं अर्थात आत्मा को *अज्ञान निद्रा से जगाते* हैं जिससे उसकी सुप्त शक्तियाँ पुनः जागृत हो जाती है। 4. भक्ति करते करते हम अज्ञानान्धकार की ओर बढ़ते जाते हैं जबकि ज्ञानमार्ग में आत्मा को *ज्ञान की रोशनी* प्राप्त होती है क्योंकि सत्य परमात्मा द्वारा *सत्य ज्ञान* मिलता है । 5. भक्तिमार्ग में मनुष्य मत से पारलौकिक मातपिता का नाम बदनाम करते हैं तो ज्ञानमार्ग में अपने कर्मों को *श्रीमत के आधार से श्रेष्ठ बनाकर* लौकिक, अलौकिक और पारलौकिक मातपिता का नाम रोशन करते हैं । 6. भक्तिमार्ग में सारी लौकिक अलौकिक संपत्ती को गवाँ देते हैं तो ज्ञान मार्ग में *तीनों लोकों का मालिक* बनते हैं । 7. भक्ति करते करते और ही मंद बुद्धि बनते जाते हैं जबकि ज्ञानमार्ग में *रचयिता और रचना के आदि मध्य अंत का सत्य ज्ञान* प्राप्त हो जाता है । 8.भक्ति मार्ग में लौकिक मातपिता, पति अथवा गुरु को ही भगवान मानते हैं जबकि ज्ञानमार्ग में *पारलौकिक मातपिता याने परमपिता, परमशिक्षक और परम सतगुरु की सत्य पहचान* मिलती है । 9.भक्तिमार्ग के लौकिक मातपिता पतित बनाते हैं तो ज्ञान मार्ग के पारलौकिक मातपिता *पतित से पावन* बनाते हैं । 10. भक्तिमार्ग में लौकिक मातपिता से अल्पकाल का विनाशी वर्सा प्राप्त होता है जबकि पारलौकिक मातपिता द्वारा *स्वर्ग में 21 जन्मों का अविनाशी वर्सा* प्राप्त होता है।
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