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14 Feb 2019 आज की मुरली BK murli in Hindi


Brahma Kumaris murli today in Hindi Aaj ki murli Madhuban 14-02-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - भारतवासियों को सिद्धकर बताओ कि शिव जयन्ती ही गीता जयन्ती है, गीता से फिर होती है श्रीकृष्ण जयन्ती''

प्रश्नः-

किसी भी धर्म की स्थापना का मुख्य आधार क्या है? धर्म स्थापक कौन-सा कार्य नहीं करते जो बाप करते हैं?

उत्तर:-

किसी भी धर्म की स्थापना के लिए पवित्रता का बल चाहिए। सभी धर्म पवित्रता के बल से स्थापन हुए। लेकिन कोई भी धर्म स्थापक किसी को पावन नहीं बनाते क्योंकि जब धर्म स्थापन होते हैं तब माया का राज्य है, सबको पतित बनना ही है। पतितों को पावन बनाना - यह बाप का ही काम है। वही पावन बनने की श्रीमत देते हैं।

ओम् शान्ति। अब बच्चों ने समझ लिया है कि पाप की दुनिया किसको और पुण्य की दुनिया अथवा पावन दुनिया किसको कहा जाता है। वास्तव में पाप की दुनिया यह भारत ही है और भारत ही फिर पुण्य की दुनिया स्वर्ग बनता है। भारत ही बहिश्त था, भारत ही दोज़क बना है क्योंकि काम चिता पर जलते रहते हैं। वहाँ काम चिता पर कोई जलता नहीं, वहाँ काम चिता है ही नहीं। ऐसे भी नहीं कहेंगे कि सतयुग में काम चिता है, यह समझने की बातें हैं ना। पहले-पहले प्रश्न उठता है भारत जो पतित-दु:खी है सो वही भारत पावन-सुखी था जरूर। कहते भी हैं आदि सनातन हिन्दू धर्म था। अब आदि सनातन किसको कहा जाता है? आदि माना क्या और सनातन माना क्या? आदि माना सतयुग। तो सतयुग में कौन थे? यह तो सबको मालूम है कि लक्ष्मी-नारायण थे। जरूर वे भी किसकी सन्तान होंगे जो फिर सतयुग के मालिक बनें। सतयुग स्थापन करने वाला था परमपिता परमात्मा, उनकी सन्तान थे। परन्तु इस समय अपने को उनकी सन्तान नहीं समझते। अगर सन्तान समझते तो बाप को जानते, बाप को तो जानते ही नहीं। अब हिन्दू धर्म तो गीता में है नहीं। गीता में तो भारत नाम पड़ा है वह कहलाते हैं हिन्दू महासभा।

अब श्रीमत भगवत गीता है सर्वशास्त्रमई शिरोमणी। गीता जयन्ती भी मनाई जाती है, शिव जयन्ती भी मनाई जाती है। अब शिव जयन्ती कब हुई है - यह भी मालूम होना चाहिए। फिर है कृष्ण जयन्ती। अभी तुम बच्चे जान चुके हो कि शिव जयन्ती के बाद है गीता जयन्ती। गीता जयन्ती के बाद है कृष्ण जयन्ती। गीता जयन्ती से ही देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है। फिर गीता जयन्ती के साथ महाभारत का भी कनेक्शन है। उसमें फिर आती है युद्ध की बात। दिखाते हैं युद्ध के मैदान में 3 सेनायें थी। यादव, कौरव और पाण्डव दिखाते हैं। यादव मूसल निकालते हैं। वहाँ शराब पिया और मूसल निकाले। तुम जानते हो अभी बरोबर मूसल भी निकल रहे हैं। वह भी अपने कुल का विनाश करने एक-दूसरे को धमकी दे रहे हैं। सब क्रिश्चियन लोग हैं। वही यूरोपवासी यादव ठहरे। तो एक है उन्हों की सभा। उनका विनाश हुआ, आपस में लड़ मरे। उसमें सारा यूरोप आ गया। उसमें इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन सब आ जाते हैं। यहाँ फिर है कौरव और पाण्डव। कौरव भी विनाश को प्राप्त हुए और विजय पाण्डवों की हुई। अब प्रश्न उठता है गीता का भगवान् कौन, जिसने सहज योग और सहज ज्ञान सिखलाकर राजाओं का राजा बनाया अथवा पावन दुनिया स्थापन की? क्या श्रीकृष्ण आया? कौरव तो कलियुग में थे। कौरव-पाण्डवों के समय श्रीकृष्ण कैसे आ सकता?

श्रीकृष्ण जयन्ती मनाते हैं, सतयुग आदि में 16 कला। श्रीकृष्ण के बाद फिर त्रेता में 14 कला राम की। कृष्ण है राजाओं का राजा अथवा प्रिन्स का प्रिन्स। विकारी प्रिन्स लोग भी श्रीकृष्ण को पूजते हैं क्योंकि जानते हैं वह सतयुग का 16 कला सम्पूर्ण प्रिन्स था, हम विकारी हैं। जरूर प्रिन्स लोग भी ऐसे कहेंगे ना। अब फिर शिव जयन्ती भी है, मन्दिर भी बड़े से बड़ा उनका ही बना हुआ है। वह है निराकार शिव का मन्दिर। उनको ही परमपिता परमात्मा कहेंगे। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर भी देवता ही ठहरे। शिव जयन्ती भारत में ही मनाई जाती है। अब देखो शिव जयन्ती आने वाली है। सिद्धकर समझाना है शिव को ही कहा जाता है ज्ञान का सागर अर्थात् सृष्टि को पावन करने वाला परमपिता परमात्मा। गांधी भी गाते थे, कृष्ण का नाम नहीं लेते थे। अब प्रश्न उठता है शिव जयन्ती सो गीता जयन्ती या कृष्ण जयन्ती सो गीता जयन्ती? अब कृष्ण जयन्ती तो सतयुग में कहेंगे। शिव की जयन्ती कब हुई थी - किसको पता नहीं। शिव तो है निराकार परमपिता परमात्मा, उसने सृष्टि रची संगम पर। सतयुग में था श्रीकृष्ण का राज्य। तो जरूर पहले शिव जयन्ती होगी। बच्चे जो ब्राह्मण कुल भूषण सर्विस में तत्पर रहते हैं उन्हों को यह बातें बुद्धि में लानी हैं कि भारतवासियों को कैसे सिद्धकर बतायें कि शिवजयन्ती सो गीता जयन्ती। फिर गीता से होती है कृष्ण जयन्ती अथवा राजाओं के राजा की जयन्ती। कृष्ण है पावन दुनिया का राजा। वहाँ तो है राजाई। वहाँ श्रीकृष्ण ने जन्म लेकर गीता तो गाई नहीं और सतयुग में महाभारत लड़ाई आदि तो हो नहीं सकती। वह जरूर संगम पर हुई होगी। तुम बच्चों को अच्छी तरह इन बातों पर समझाना है।पाण्डव और कौरव सभा मशहूर है। पाण्डव पति दिखलाते हैं श्रीकृष्ण को।

समझते हैं उसने सहज ज्ञान और सहज राजयोग सिखलाया। अब वास्तव में लड़ाई की तो कोई बात ही नहीं। विजय पाण्डवों की हुई है, जिन्हों को परमपिता परमात्मा ने सहज राजयोग सिखलाया। वही 21 जन्म सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी बन गये। तो पहले समझाना है, हिन्दू महासभा वालों को। सभायें तो और भी हैं - लोक सभा, राज्य सभा। यह हिन्दू सभा है मुख्य। जैसे 3 सेनायें गाई हुई हैं यादव, कौरव और पाण्डव... और यह हुए भी संगम पर। अभी सतयुग की स्थापना हो रही है। कृष्ण के जन्म की तैयारी हो रही है। गीता जरूर संगम पर ही गाई है। अब संगम पर किसको लायें? कृष्ण तो आ न सकें। उनको क्या पड़ी है जो पावन दुनिया छोड़ पतित दुनिया में आये और कृष्ण तो है भी नहीं। तुम जानते हो अब वह 84वें जन्म में है कई लोग फिर समझते हैं श्रीकृष्ण हाज़िराहज़ूर है, सर्वव्यापी है। कृष्ण के भक्त कहेंगे यह सब कृष्ण ही कृष्ण हैं। कृष्ण ने यह रूप धरे हैं। राधे पंथी होंगे वह फिर कहेंगे राधे ही राधे... हम भी राधे, तुम भी राधे। अनेक मतें निकल पड़ी हैं, कोई कहे ईश्वर सर्वव्यापी, कोई कहे कृष्ण सर्वव्यापी, कोई कहे राधे सर्वव्यापी। अब बाप तुम बच्चों को समझाते हैं। वह बाप वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी है तो अब तुम बच्चों को भी अथॉरिटी दे रहे हैं कि कैसे इन सबको समझायें। हिन्दू महासभा वालों को समझाओ, वह इन बातों को समझ सकेंगे। वह अपने को रिलीजस माइन्डेड मानते हैं। गवर्मेन्ट तो कोई धर्म को मानती नहीं। वह खुद ही मूंझ गये हैं।

शिव परमात्मा है निराकार ज्ञान सागर और कोई को ज्ञान का सागर कह नहीं सकते। वह जब सम्मुख आकर ज्ञान दे, तब राजाई स्थापन हो। फिर तो बस राजाई स्थापन हो गई फिर सम्मुख तब आए जब राजाई गंवाओ। तो तुमको सिद्ध करना है शिव परमात्मा है निराकार ज्ञान सागर, शिव जयन्ती सो गीता जयन्ती। इस पर नाटक बनाने हैं, जो मनुष्यों की बुद्धि से कृष्ण की बात निकल जाये। निराकार शिव परमात्मा को ही पतित-पावन कहा जाता है। शास्त्र आदि जो भी बने हैं। वह सब मनुष्य मत पर, मनुष्यों ने बनाये हैं। बाबा का शास्त्र तो कोई है नहीं। बाप कहते हैं मैं सम्मुख आकर तुम बच्चों को बेगर टू प्रिन्स बनाता हूँ और फिर मैं चला जाता हूँ। यह नॉलेज मैं ही सम्मुख सुना सकता हूँ। वह गीता सुनाने वाले भल गीता सुनाते हैं परन्तु वहाँ भगवान् सम्मुख तो है नहीं। कहते हैं गीता का भगवान् सम्मुख था जो स्वर्ग बनाकर चला गया। तो क्या वह गीता सुनने से कोई मनुष्य स्वर्गवासी हो सकता है? मरने समय भी मनुष्यों को गीता सुनाते हैं और कोई शास्त्र नहीं सुनाते हैं। समझते हैं गीता से स्वर्ग की स्थापना हुई है इसलिए गीता ही सुनाते हैं। तो वह गीता एक होनी चाहिए ना। दूसरे धर्म सब पीछे आये हैं। और कोई कह नहीं सकते तुम स्वर्गवासी बनेंगे। फिर मनुष्यों को पिलाते भी गंगा जल है, जमुना जल नहीं पिलाते। गंगा जल का ही महत्व है। बहुत वैष्णव लोग जाते हैं, मटके भरकर ले आते हैं। फिर उनमें से बूंद-बूंद डालकर पीते रहते कि सब रोग मिट जायें। वास्तव में है यह ज्ञान अमृत की धारा जिससे 21 जन्म के दु:ख मिट जाते हैं। तुम चैतन्य ज्ञान गंगाओं में स्नान करने से मनुष्य स्वर्गवासी बन जाते हैं। तो जरूर पिछाड़ी में ज्ञान गंगायें निकली होंगी। वह पानी की नदियां तो हैं ही हैं। ऐसे थोड़ेही कोई पानी पीने से देवता बन जायेंगे। यहाँ कोई थोड़ा ही ज्ञान सुनते हैं तो स्वर्ग के हकदार बन जाते हैं। यह है ज्ञान के सागर शिवबाबा की ज्ञान गंगायें। ज्ञान सागर, गीता ज्ञान दाता एक शिव है, कृष्ण नहीं है। सतयुग में पतित कोई होता नहीं, जिसको ज्ञान दें। यह सब बातें भगवान् बैठ समझाते हैं। हे अर्जुन वा हे संजय.... नाम मशहूर हो गया है। लिखने में बहुत तीखा है, निमित्त बना हुआ है।

अब शिवजयन्ती आती है तो उस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखना है। शिव हो गया निराकार। उनको ज्ञान सागर, ब्लिसफुल कहा जाता है। कृष्ण को नॉलेजफुल, ब्लिसफुल नहीं कहेंगे। शिव परमात्मा ही नॉलेज देते हैं, रहम करते हैं। नॉलेज ही रहम है। मास्टर रहम कर पढ़ाते हैं तो बैरिस्टर, इन्जीनियर आदि बन जाते है। सतयुग में ब्लिस की दरकार नहीं। तो पहले-पहले सिद्ध करना है कि निराकार ज्ञान सागर शिवजयन्ती सो गीता जयन्ती वा सतयुगी साकार कृष्ण जयन्ती सो गीता जयन्ती। यह है तुम बच्चों को सिद्ध करना।तुम जानते हो जो भी पैगम्बर आदि आते हैं वह पावन नहीं बनाते। द्वापर से माया का राज्य होने से सब पतित हो जाते हैं। फिर जब तंग होते हैं तो चाहते हैं हम जायें। जो धर्म स्थापन करते हैं वही फिर वृद्धि को पाते हैं। पवित्रता के बल से धर्म स्थापन करते हैं फिर अपवित्र बनना ही है। मुख्य हैं 4 धर्म, इनसे ही वृद्धि होती है। टाल-टालियाँ निकलती हैं। शिव जयन्ती, गीता जयन्ती सिद्ध होने से और सब शास्त्र उड़ जायेंगे क्योंकि वह हैं मनुष्यों के बनाये हुए। वास्तव में भारत का शास्त्र एक ही गीता है। मोस्ट बिलवेड बाप कितना सहज कर समझाते हैं। उनकी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत है। अब तुमको यह सिद्ध करना है कि निराकार ज्ञान सागर जयन्ती सो गीता जयन्ती या सतयुगी साकार श्रीकृष्ण जयन्ती सो गीता जयन्ती? इनके लिए बड़ी कान्फ्रेन्स बुलानी पड़े। यह बात सिद्ध हो जाये तो फिर सब पण्डित तुमसे आकर यह लक्ष्य लेंगे। शिव जयन्ती पर कुछ तो करना है ना। हिन्दू महासभा वालों का समझाओ, उनकी बड़ी संस्था है। सतयुग में है आदि सनातन देवी-देवता धर्म। बाकी सभा आदि कोई नहीं। सभायें हैं संगम पर। पहले-पहले तो सिद्ध करना है कि वास्तव में आदि सनातन सभा है यह ब्राह्मणों की, पाण्डवों की। पाण्डवों ने ही विजय पाई जो फिर स्वर्गवासी हुए। अब तो कोई आदि सनातन देवी-देवताओं की सभा कह न सके। देवताओं की सभा नहीं कहेंगे, वह है सावरन्टी। कल्प के संगम पर यह सभायें थी। उनमें एक थी पाण्डव सभा, जिसको आदि सनातन ब्राह्मणों की सभा कहेंगे। यह कोई नही जानते। कृष्ण के नाम से ब्राह्मण हैं नहीं। ब्राह्मणों की चोटी ब्रह्मा के नाम से है। ब्रह्मा के नाम से तुम ब्राह्मण सभा कहेंगे। यह बातें समझाने वाला भी बुद्धिवान चाहिए। इसमें ज्ञान की पराकाष्ठा चाहिए। निराकार शिव ही गीता ज्ञान दाता दिव्य चक्षु विधाता है। यह सब धारण कर फिर कान्फ्रेंस बुलाते हैं, जो समझते हैं हम सिद्धकर बता सकेंगे उनको आपस में मिलना चाहिए। लड़ाई के मैदान में मेजर्स, कमान्डर्स आदि की सभा होती है। यहाँ कमान्डर महारथी को कहा जाता है। बाबा क्रियेटर, डायरेक्टर हैं, स्वर्ग की रचना करते हैं फिर डायरेक्शन देते हैं - महासभा बनाओ फिर इस बात को उठाओ। गीता का भगवान् सिद्ध होने से फिर सब समझेंगे कि उनसे योग लगाना चाहिए। बाबा कहते हैं मैं गाइड बनकर आया हूँ, तुम उड़ने लायक तो बनो। माया ने पंख तोड़ डाले हैं। योग लगाने से तुम्हारी आत्मा पवित्र हो जायेगी और उड़ेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) ज्ञान अमृत धारा से सबको निरोगी वा स्वर्गवासी बनाने की सेवा करनी है। मनुष्यों को देवता बनाना है। बाप समान मास्टर रहमदिल बनना है।

2) ज्ञान की पराकाष्ठा से बुद्धिवान बन शिवजयन्ती पर सिद्ध करना है कि शिव जयन्ती ही गीता जयन्ती है, गीता ज्ञान से ही श्रीकृष्ण का जन्म होता है।

वरदान:-

बाप के स्नेह को दिल में धारण कर सर्व आकर्षणों से मुक्त रहने वाले सच्चे स्नेही भव

बाप सभी बच्चों को एक जैसा स्नेह देते हैं लेकिन बच्चे अपनी शक्ति अनुसार स्नेह को धारण करते हैं। जो अमृतवेले के आदि समय पर बाप के स्नेह को धारण कर लेते हैं, तो दिल में परमात्म स्नेह समाया होने के कारण और कोई स्नेह उन्हें आकर्षित नहीं करता। अगर दिल में पूरा स्नेह धारण नहीं करते तो दिल में जगह होने के कारण माया भिन्न-भिन्न रूप से अनेक स्नेह में आकर्षित कर लेती है इसलिए सच्चे स्नेही बन परमात्म प्यार से भरपूर रहो।

स्लोगन:-

देह, देह की पुरानी दुनिया और सम्बन्धों से ऊपर उड़ने वाले ही इन्द्रप्रस्थ निवासी हैं।

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