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स्वर्णिम नव प्रभात लाओ
खोलकर अपने ज्ञान नयन, करो शिव का नमन
अब स्वर्णिम नवयुग का, होने वाला है आगमन
दुख भरी दुनिया की उम्र, प्रतिपल घटती जाए
सुखमई प्रभात किरण, हर ओर बिखरती जाए
अलसाना अब छोड़ो तुम, पलकें अपनी खोलो
आत्मस्वरूप में टिककर, सबसे ॐ शांति बोलो
समाई हुई खुशियां अनेक, सुप्त पड़ी कलियों में
सुख के दाने भी निकलेंगे, बन्द पड़ी फलियों में
दिव्यता भरी हवाओं में, मन पंछी को उड़ने दो
मिले जहाँ सुख चैन, उस गली में इसे मुड़ने दो
एकजुट होकर पंछियों सा, कलरव करते जाओ
सबकी अज्ञान निद्रा को, खण्डित करते जाओ
नवजीवन नवयुग का, कर लो सृजन मिलकर
नजर आओ सबको, कमल पुष्प सा खिलकर
सुगन्धित पुष्प समान, अपनी आभा फैलाओ
दिव्य प्रकाशपुंज बनकर, नव प्रभात ले आओ ||
" ॐ शांति "
𝐀𝐮𝐭𝐡𝐨𝐫: BK Mukesh Modi
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