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सच्ची होली: बीती को बीती करना

𝐏𝐨𝐞𝐭: BrahmaKumaris, Mt Abu

बीती बातें यूं लगे, जैसे पुराने जन्म की हों
लगन बस पुरूषार्थ-गति को तेज कराने की हो
बीती बात ना चित्त में हो
ना तो चिंतन में हो और रखें हम ध्यान, कि ना ही वर्णन में हो।

लगे बाप के संग का रंग, मधुर-मधुर बन जाएं
बीती को भूलें तो फिर, सरल-सरल हो जाएं
सरल-सरल चलन, नयन-मुख मधुरता बरसाए
होली में दिलखुश मिठाई खाएं और खिलाएं।

मधुर-मधुर बनकर के संस्कार मिलन हो जाए
संस्कार-मिलन से पुरूषार्थ फिर सिद्धी को पाए
संस्कार-मिलन हेतु ज़रूरी मिलन दिलों का हो
कुछ मिटाना, कुछ समाना व कुछ भुलाना हो।

हरेक आत्मा को हम सहृदय स्वीकार करें
एक-दूजे की बातों का सदा ही सम्मान करें
इन धारणाओं को जीवन में अपनाकर
सफलता-संपूर्णता का जन्मसिद्ध अधिकार लें।

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