
प्रकृति को पवित्र बनाओ
𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi
जहरीले धुएं से हर शहर, भरा हुआ नजर आता
कैसे जीवन बचेगा, ये बिलकुल समझ न आता
शुद्ध हवा में सांस लेना, हो गई वर्षों पुरानी बात
अब तो हम धुंआ ही पीते, सुबह शाम दिन रात
आधुनिकता ने चारों और, ऐसा आतंक मचाया
इसमें घिरने वाला हर कोई, लाचार नजर आया
प्रदूषण फैलाने के लिए, इंसान हो गया मजबूर
भौतिक साधन का त्याग, उसने किया नामंजूर
लुप्त हुई प्यारे भारत से, सात्विक जीवन शैली
इसीलिए सम्पूर्ण प्रकृति, हो गई कितनी मैली
रहता हो कोई बंगले में, या चलाए मोटर गाड़ी
इंसान अपने पैरों पर, ख़ुद मार रहा कुल्हाड़ी
भौतिकता का आकर्षण, सभ्यता को मिटाएगा
एक दिन इंसान रोगों का, संग्रहालय बन जाएगा
यदि आने वाली पीढ़ी को, तुम चाहते हो बचाना
सात्विक जीवन शैली अभी, शुरू करो अपनाना
प्रदूषण मिटाने की, नई विधियां निकालते जाओ
प्रदूषण फैलाने वाले, साधन का उपयोग घटाओ
अपने आसपास चारों और, पेड़ ही पेड़ लगाओ
बंजर पड़ी हर जमीन को, तुम हरी भरी बनाओ
प्रकृति को पवित्र बनाने का, आन्दोलन चलाओ
इस आन्दोलन को सारे, संसार में तुम फैलाओ ||
" ॐ शांति "
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