
आओ! होलिका जलाएँ
𝐏𝐨𝐞𝐭: BrahmaKumaris, Mt Abu
दमक रहे हैं सभी चेहरे रंगीन मौसम के संग
दिल में हिलोरें ले रही हैं खुशियों की उमंग
फागुन की धूप अब यह संदेश दे रही
चढ़े अब ऐसा रंग, जो कभी उतरे नहीं |
होली का त्योहार है, संगमयुग का यादगार
आत्माओं से मिलन मनाता परमात्मा निराकार
होली का आध्यात्मिक रहस्य, आओ हम जानें
अवतरित हुए धरा पर, भगवान को पहचानें |
प्रभु प्रेम के रंग में रंग जाता जब तन-मन ज्ञान के गुलाल से
आत्मा बन जाती पावन पवित्रता के श्वेत रंग से
कर्मों में दिव्यता आती
आत्मीयता की रोली चेहरे पर मुस्कान सजाती |
आओ! बीती को बीती करें, जो हो ली सो होली
मधुरता के गुण अपनाकर, बोलें सब मीठी बोली
इस होली पर 'होली' अर्थात् पावन हम बन जाएँ
पुराने संस्कार और विकारों की होलिका जलाएँ |
तब ही आत्मा रूपी 'प्रह्लाद' रह पाएगा सुरक्षित
अधर्म-अनीति रूपी हिरण्यकश्यप वृत्ति से रक्षित
ज्ञान गुणों के रंग से, आत्मा पर लगी जंक मिटाएँ
आओ! सत्य परमात्म-संग से जीवन रंगीन बनाएँ ||
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