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होली आई रे

𝐏𝐨𝐞𝐭: BrahmaKumaris, Mt Abu

दूर करो सब भेदभाव, अब होली आई रे
मन में जगाओ सद्भाव, अब होली आई रे;
नया दिवस लेकर आता है प्रतिदिन नया सवेरा
घोर निशा फिर छिप जाती है लेकर साथ अंधेरा |

श्रेष्ठ मार्ग के द्वार खोल लो, अब तो जागो आंखें खोलो
कल तक जो हो ली सो होली, आज ज्ञान से रंग लो चोली |

प्रेमभाव से गले मिलो, अब होली आई रे
दूर करो सब भेदभाव, अब होली आई रे।

एक चमन के सभी फूल हैं, हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई
भारत माता के बच्चे हैं, आपस में सब भाई-भाई |

घर की फूट बुरी होती है, लाभ दूसरे ले जाते हैं
बिल्ली माखन खा जाती है, बन्दर लड़ते रह जाते हैं |

हिल-मिल मंगल-मिलन मनाएं,
वैर-द्वेष कुछ पास ना आये
परिवर्तन के नये वस्त्र हों, होली आई रे
दूर करो सब भेदभाव, अब होली आई रे |

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