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दिव्यता के गगन में
𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi
प्रभु के आगे अपनी सारी, मनमत अर्पित कर दो
तन मन धन के संग, खुद को भी समर्पित कर दो
इच्छाओं के मकड़ जाल से, निकल तभी पाओगे
प्रभु इच्छा में अपनी, हर इच्छा विसर्जित कर दो
पांच विकारों में खुद को, कितना और गिराओगे
सम्पूर्ण पावन बनने का, लक्ष्य निर्धारित कर दो
मान करेगा जग सारा, और पूजे भी तुम जाओगे
पहले खुद का आचरण, सम्पूर्ण मर्यादित कर दो
ना पाओगे ठौर ठिकाना, खुद को यूं भटकाने से
ईश्वरीय शाला में खुद को, पूर्ण उपस्थित कर दो
जीवन के नव सृजन का, समय अवश्य पाओगे
अपनी दिनचर्या को तुम, पूर्ण व्यवस्थित कर दो
फरिश्ता रूप में सबको, एक दिन नजर आओगे
मन से हर अवगुण को, पूरा निष्कासित कर दो
हर सांसारिक बन्धन से, खुद को मुक्ति दिलाकर
दिव्यता के गगन में, खुद को आच्छादित कर दो ||
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