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दिव्य चरित्र का निर्माण

𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi

पाप कर्मों के बीज विषैले, मन में ना उपजाना
अमूल्य जीवन को दुखों का, जंगल ना बनाना

विशुद्ध प्रेम की भाषा ही, सबके मन को भाती
क्लेश खत्म हो जाता, और सुख शान्ति आती

अशुद्ध मन लेकर आता, जीवन में पाँच विकार
मन बुद्धि पर बढ़ता रहता, समस्याओं का भार

मर जाती आत्म चेतना, जीवन नर्क बन जाता
अपने विकर्मों के जाल में, मानव फंसता जाता

संस्कार शुद्धि का केवल, उपाय यही अपनाना
अपनी देह भुलाकर, आत्म स्मृति में खो जाना

हर जहरीला संस्कार तब, समाप्त होता जाएगा
संकल्पों का शुद्धिकरण, आसान होता जाएगा

शुद्ध संकल्पों की शक्ति, दिखला देगी चमत्कार
टिक ना सकेगा बुद्धि में, फिर कोई भी विकार

सत्कर्मों का बीजारोपण, बुद्धि में होता जाएगा
तेरा चरित्र दिव्यता से, सुसज्जित होता जाएगा ||

" ॐ शान्ति "

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