ब्रह्माकुमार विजय से यह पत्र मिला जो उन्होने शिव बाबा प्रति लिखा - की आज यज्ञ में कुछ आत्माए ज्ञान, योग व धरना पर पुरुषार्थ न करके डायरेक्ट सेवा में उतर आती है। इसके लिए शिव बाबा की श्रीमत क्या है ?
Original Email Received
प्यारे बाबा,
मेरा ब्राह्मण परिवार ऐसे होना चाहिए जिसमें बहुत कम आत्माएँ हों तो भी एकएक रत्न ब्रह्माबाप समान त्यागमूर्त,गुणमूर्त बने रहे.
पाण्डव गवर्मेंट मेजारिटी दिखाने के लिए नहीं.
आजकल मैं देख रहा हूँ जो ऐसे ही हो रहा है ज्ञान, योग, धारणा - यह एकदम पीछे हो गया सीधा सेवा में लग जाए.. तो Quantity बड़ा सकते लेकिन Quality ? देह अभिमान नहीं होना चाहिए - यह मैं जानता ही हूँ ,सिर्फ मेरे लिए थोडेही बाप आकर ज्ञान देते समय नहीं है - यह कारण भी हो सकता है लेकिन ऐसी सेवा करके कुछ फायदा तो नहीं है न बाबा ?
Our Email Response
बाबा कहते है - यह तुम्हारा परिवार है। गर कोई आत्मा से माया के वशीभूत कोई गलती हो जाती है, तो उसे शक्ति दो और समझाओ।
आप तो बाबा के मधुर बच्चे हो, तो विशेष बच्चो को क्या करना चाहिए?? जो कमजोर है, उनको शक्ति देना - जिसने गलती की उसको सही रास्ता बताना और जो गिरे हुए है, उनका तुम सहारा बनो। बाप से सुनो क्युकी बाप बैठ सुनते है। वो ज्ञान का सागर है। किसी भाई बेहेन पर फ़िदा कभी नहीं होना। बच्चे अंन्त में जान जायेंगे की सेवा तो सब बाबा ने की - यहाँ होगी बाप की प्रत्यक्षता।
यह तुम्हारा अंतिम जनम है। यही जनम अनमोल है। अभी ही आप विशेष बच्चो का बड़ा पार्ट है। आपको सभी आत्माओ में विशेषता देखनी और दिखानी है। तुम्हारा केवल एक लक्ष्य है -मनुष्य से दैवी गुणों वाला देवता बनना। तुम्हारा केवल एक विरोधी दुसमन है - माया रावण। और कोई नहीं।
बाप तुम बच्चो का संगम में साथी है ही। याद किया और हाज़िर है। दूसरी साथी है यह ज्ञान की मुरली।
बच्चे योग में बैठते है - शिव बाबा निराकार है, बच्चे साकार है। आत्मा अभिमानी स्थिति चाहिए। देह अभिमान नहीं होना चाहिए - हर बात में स्वयं को आत्मा समझो - यही सहज उत्तम पुरुषार्थ है।
अच्छा
नमस्ते
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