सार➙ हर आत्मा में सात मूल गुण होते हैं जो स्वयं परमात्मा द्वारा दिए गए हैं। यह हैं पवित्रता, शांति, प्रेम, सुख, आनंद, शक्ति व ज्ञान। आइये हम इन सद्गुणों को अच्छे से जानें और उन्हें अपने जीवन मेंधारण करे।
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➤ आत्मा के गुणों पर एक कमेंटरी: यह वीडियो देखे (बी.के. अनिल)
1. पवित्रता
पवित्रता,आत्मा का पहला गुण भी है और सुख - शांति की जननी भी है। पवित्रता का अर्थ केवल ब्रह्मचर्य नहीं है क्योंकि ब्रह्मचर्य सिर्फ शरीर से सम्बंधित है किन्तु पवित्रता का वास्तविक अर्थ है मन - वचन - कर्म से पवित्र रहना जिसे संपूर्ण पवित्रता कहते हैं। हम अधिकतर पवित्रता को शारीरिक रूप से आंकते हैं लेकिन आत्मा को पवित्र तब कहेंगे जब उसके संकल्प भी पवित्र हों। संकल्प हमारे मन की रचना होते हैं इसलिये यदि संकल्प शुद्ध हों तो वचन भी सार्थक निकलेंगे और कर्म भी अच्छा होगा। संकल्प में पवित्रता अर्थात सभी को आत्मा रूपी भाई जान सुख देना, दुःख न देना। मन, वचन और शरीर से पवित्र होने का विषय आध्यात्मिकता की ओर पहला कदम है।
लेख➤ पवित्रता का अर्थ
अभ्यास: मैं एक पवित्र आत्मा हूँ। मेरा हर विचार पवित्र है। दुनिया की सभी आत्माओं के लिए मेरी शुभकामनाएं हैं। मेरा हर शब्द उच्च और प्रेरक है। मेरे विचारों में नकारात्मकता का कोई निशान नहीं है।
2. शांति
"शांति आपके गले का हार है" - शिव बाबा (स्त्रोत : मुरली) आज प्रत्येक मनुष्य शांति की तलाश में है परन्तु शांति की तलाश कहाँ से कर सकते हैं ? वास्तव में शांति आत्मा का स्वधर्म है। जरा सोचिये - जब आपके मन में किसी प्रकार के प्रश्न या व्यर्थ संकल्प न हों, किसी प्रकार का भार न हो ,तब वहां एक स्थिति होती है जिसमें सब कुछ स्पष्ट हो जाता है। यही शांति है यही आत्मा की स्वस्थिति है और इसे प्राप्त करने के लिये हमें अपने संकल्पों को सही दिशा देनी होगी। हम मन को न सोचने के लिए नहीं दबा सकते। विचारों का निर्माण करना हमारे मन का मुख्य काम है। इसलिए हम केवल अपने विचारों को सकारात्मक होने का मार्गदर्शन कर सकते हैं। मन का यह सही प्रशिक्षण राजयोग का मुख्य भाग है।
अभ्यास: मैं एक शांत आत्मा हूं। शांति मेरा मूल स्वरूप है। मैं सभी को शांति की तरंगें भेज रहा हूं, जो सभी आत्माओं तक पहुंच रहे हैं, उन्हें शांत कर रही हैं और उन्हें आराम दे रही हैं।
3. प्रेम
माना जाता है कि ईश्वर प्यार का सागर है। प्रेम आत्मा की मौलिक अनुभूति है। हम हर उस व्यक्ति से प्रेम करते हैं जो हमारे समान होता हैं या हमें प्रभावित करता हैं। जब हम इस शरीर, धर्म, जाति, रंग-भेद को भूल जाते हैं तब स्वयं व अन्य सभी को एक ज्योति बिंदु (आत्मा) के रूप में देख पाते हैं। तब हमें सभी एक समान व विशिष्ठ अनुभव होते हैं। एक आत्मा किसी अन्य आत्मा को बिना शरीर हानि नहीं पहुंचा सकती। स्वानुभूति द्वारा ही हम सभी अन्य जीवात्माओं से जुड़ सकते हैं और एक परिवार के रूप में अनुभव कर सकते हैं - यही प्रेम है।
अभ्यास: मैं आत्मा परम आत्मा का बच्चा हूँ। मैं अपने सभी भाइयों और बहनों के लिए प्यार से भरा हुआ हूं। मैं भगवान के प्यार में आराम का अनुभव करता हूं और उसी प्यार को मैं दुनिया में फैला रहा हूं।
4. सुख
सुख, प्राप्तियों व स्वतंत्रता का एक मिश्रित अनुभव है। सुख का आधार प्राप्तियां हैं। बहुत से लोग भौतिक उपलब्धियों जैसे कि धन, प्रसिद्धि, अच्छे परिवार, सम्मान आदि मिलने पर खुशी महसूस करते हैं। फिर भी सच्चा आनंद मिलता है आध्यात्मिक प्राप्ति से। तो जरा सोचिये - क्या आप सदा सुखी हैं? जब किसी के जीवन में शांति व प्रेम की प्राप्ति होती है तो उसे सुखी कहा जाता है। वास्तव में सुख और कुछ नहीं बल्कि जीवन में शांति व प्रेमपूर्ण संबंधों की उपस्थिति है। सुख वास्तव में स्वयं की इस संसार में उपस्थिति का एक गहरा अनुभव है जरा सोचिये यह अनुभव तभी हो सकता है जब आप इस संसार में उपस्थित हों।
अभ्यास: मैं एक सुख चित आत्मा हूं। मैं जो कुछ भी करता हूं, ख़ुशी से करता हूं। यह मेरी जीने की स्वाभाविक स्थिति बन गई है। मेरा हर कर्म मेरी आंतरिक खुशी को दर्शाता है।
5. आनंद
आनंद , सुख की सर्वोच्च अवस्था है। यह सुख - दुःख से परे अवस्था का अनुभव है और यही आत्मा की सतयुगी अवस्था है। आनंद का अर्थ है शरीर की 5 कर्मइंद्रियों के अनुभवों से 'मुक्त' हो जाना। सत्य अर्थ में आत्मा, परमात्मा के संग में आनंद का अनुभव करती है और यही राजयोग है। आनंद की झलक पाने के लिए मन - बुद्धि परमात्मा को समर्पित कर एक परमात्मा से ही सर्व संबंधों का अनुभव करना होगा।
अभ्यास: मैं आत्मा इस शरीर से अलग हूँ ... शारीरिक कर्मइंद्रियों से अलग, मैं आकाश में उड़ रही हूँ.. मैं अंतरिक्ष से इस खूबसूरत दुनिया (पृथ्वी) को देख रही हूँ... मैं अपने सबसे प्यारे आध्यात्मिक पिता शिव बाबा की कंपनी में हूँ... मुझे मुक्त, मुझे प्यार, मेरी रक्षा, मुझे सशक्त एवं मेरी पालना स्वयं भगवान करते हैं।
6. शक्ति
ये आत्मा की आध्यात्मिक शक्तियाँ हैं, जिनका उपयोग हम जीवन की कई परिस्थितियों में करते हैं। अष्ट शक्तियां आत्मा का गुण है। कभी गुप्त, कभी जागृत अवस्था में यह शक्तियाँ हम सभी में है। जब इन शक्तियों का दैनिक जीवन में उपयोग किया जाता है तो यह जाग्रत एवं जब उपयोग नहीं किया जाता तब यह सुप्त अवस्था में होती हैं। राजयोग के अभ्यास द्वारा इन शक्तियों को जाग्रत किया जा सकता है। समाने की शक्ति, सहन शक्ति, समेटने की शक्ति, सामना करने की शक्ति, परखने की शक्ति, निर्णय करने की शक्ति, सहयोग करने की शक्ति और विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति।
इन्हें जानने के लिए देखे पृष्ठ ➙ आत्मा की ८ शक्तिया
7. ज्ञान
आत्मिक अर्थात रूहानी ज्ञान सभी गुणों का स्त्रोत है। सत्य ज्ञान का अर्थ है आत्मा, परमात्मा (रचता)और प्रकृति (रचना) का यथार्थ ज्ञान जिससे आत्मा में रोशनी आ जाती है, बुद्धि का बल आता है। यह ज्ञान सभी प्राप्तियों का स्रोत है और हमारे मूल गुणों को पुनः उभारने की विधि है। इस ज्ञान का केवल एक ही स्त्रोत है - स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा। वह स्वयं आकर रचना, रचयिता और इस सृष्टि चक्र का ज्ञान देते हैं।
परमात्मा ही इस पूरी कहानी को जानता है एवं इसका गुह्य राज बता सकता है। हमारे अस्तित्व के बारे में सच्चाई जानना (मैं कौन हूं?) - रचैता और उसकी रचना, अर्थात्, भगवान और विश्व चक्र के ज्ञान को आध्यात्मिक ज्ञान कहा जाता है। अब हम ज्ञान मुरली के द्वारा यह जानते हैं कि जैसे जैसे आत्मा ज्ञान से परिपूर्ण होती जाती है वैसे ही वह अधिक निर्विकारी (पवित्र) व शक्तिशाली होती जाती है। हम सभी ऐसे पवित्र, शांत, हर्षित, प्यारे और शक्तिशाली आत्माएं हैं, जो परम आत्मा (शिव बाबा) के बच्चे हैं। तो आईये अपने नेत्रों से अज्ञानता के परदे को हटा इस सत्य ज्ञान प्रकाश को आने दें।
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